पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४६

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आकर देख जाते जिसने उनके साथ कामिनी-( जल्दी से ) हाँ और क्या ? उत्तं भी देखने न आए । उन्हें तो चाहिए था कि रोहतासगढ़ पहुँच कर उसकी बाटी-बेटी अलग कर देते । इस तरह से ये सब बडी देर तक आपुस म बातें करती रही। लक्ष्मीदेवी की अवस्था पर सभों का रज,अफसोस और ताज्जुब था। जय रात ज्यादे बीत गई तो सभों ने चारपाई की शरण ली। दूसरे दिन उन्हें कृष्णाजिन्न के आने की खबर मिली। चौदहवां बयान किशोरी कामिनी कमलिनी लक्ष्मीदेवी,कमला और लाडिली सभी का कृष्णाजिन के आने का इन्तजार था। सभी क दिल में तरह-तरह की बातें पेदा हा रही थीं और सभी को इस बात की आशा लग रही थी कि कृष्णाजिन्न को आने पर इस बात का पता लग जायेगा कि कृष्णाजिन्न कोर है और राजा गोपालसिह ने लक्ष्मीदेवी की सुध क्यों भुला दी। आखिर दूसरे दिन कृष्णाजिन्न भी वहा आ पहुचा। यद्यपि वह एक ऐसा आदमी था जिसकी किसी को भी खबर न थी कोई भी नहीं कह सकता था कि वह कान और कहा का रहने वाला है न कोई उसकी जात बता सकता था और न काई नाकत और सामर्थ्य के विषय में ही कुछ वादविवाद कर सकता था तथापि उसकी हमदर्दी और कार्रवाई स सभी खुश थ और इसलिए कि राजा बीरेन्द्रसिह उस मानते थे सभी उसकी कदर करते थे। गुप्त स्थान में पहुँच वह सभी को चौकन्ना कर चुका था इसलिए किशोरी और लक्ष्मीदेवी इत्यादि का उससे पर्दा करने की कोई आवश्यकता न थी और न ऐसा करन का उन्हें हुक्म था अस्तु कृष्णाजिन्न के आने की खबर पाकर सब खुश हुई और बीच वाले दो मजिले मकान में जिसमें सबका पहिले आकर उसने इन्द्रदय स मुलाकात की थी,चलने के लिए तैयार हो गई मगर उसी समय भैरोसिह ने वगते पर आकर लक्ष्मीदेवी इत्यादि से कहा कि कृष्णाजिन्न स्वयम् वहीं चले आ रहे है। थोडी देर बाद कृष्णाजिन्न बगले पर आ पहुंचा। लक्ष्मीदवी, कमलिनी,लाडिली,किशोरी,कामिनी और कमला ने आग बद कर उसका इस्तकबाल (अगवानी) किया और इज्जत के साथ लाकर एक ऊची गद्दी के ऊपर बैठाया। उसकी आज्ञानुसार इन्द्रदेव और भैरोसिह गद्दी के नीच दाहिनी तरफ बैठे और लक्ष्मीदगी इत्यादि को सामने बैठन के लिए कृष्णाजिन्न ने आज्ञा दी और सभी न खुशी से उसकी आज्ञा स्वीकार की। कृष्णाजिन्न ने सभों का कुशलमगल पूछा और फिर यों बातचीत होने लगी किशोरी-आपकी बदौलत हम लोगों की जान बच गई मगर उन लोडियों के मारे जाने का रज है। कृष्णा-यह राव इश्वर की माया है वह जो चाहता है, करता है। यधपि मनोरमा न कई शैतानों को साथ लेकर तुम लागों का पीछा किया था मगर उसके गिरफ्तार हो जान ही स उन सभों का खौफ जाता रहा। अब जो मै ख्याल करके देखता हूँ ता तुम लोगों का दुश्मन काई भी दिखाई नहीं देता क्योंकि जिन दुष्टों की बदौलत लोग दुश्मन हो रह थे या यों फहो कि जो लोग उनके मुखिया थे गिरफ्तार हो गए यहा तक कि उन लोगों का कैद स छुड़ाने वाला भी कोई न रहा। कमलिनी-ठीक है तो अब हम लोगों को छिप कर यहा रहने की क्या जरूरत है ? कृष्णा-(हस कर ) तुम्हें तो तब भी छिप कर रहने की जरूरत नहीं पड़ी जब चारो तरफ दुश्मनों का जोर बधा हुआ था,आज की कोन कहे ? मगर हा (हाथ का इशारा करक) इन बेधारियों को अब यहा रहने की कोई जरूरत नहीं और अब इसीलिए में यहा आया हूँ कि तुभ लागों को जमानिया ले चलू, वहा से फिर जिसको जिधर जाना होगा चला जायगा। लक्ष्मी-तो आप हम लोगों का चुनारगढ क्यों नहीं ले चलते या वहा जाने की आज्ञा क्यों नहीं देते ? कृष्णा- नहीं नहीं तुम लोगों को पहिले जमानिया चलना चाहिए। यह केवल मेरी आज्ञा ही नहीं बल्कि मैं समझता हू कि तुम लोगों को भी यही इच्छा हागी (लक्ष्मीदवी से ) तुम तो जमानिया की रानी ही ठहरी तुम्हारी रिआया खुशी मनाने के लिए उस दिन का इन्तजार कर रही है जिस दिन तुम्हारी सवारी शहर के अन्दर पहुंचेगी और कमलिनी तथा लाडिली तुम्हारी बहिन ही टहरी लक्ष्मीदेवी-(बात काटकर)बस बम, मै बाज आई जमानिया की रानी बनने से वहा जाने की मुझे कोई जरूरत नहीं और मेरी दोनों बहिनें भी,जहा मैं रहूँगी वहीं मर साथ रहेंगी। कृष्णा-क्यों क्यों ऐसा क्यों? लक्ष्मी--में इसलिए विशेष वात कहना नहीं चाहती कि आपने यद्यपि हम लोगों की बड़ी सहायता की है और हम लोग देवकीनन्दन खत्री समग्र ७३८