पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४७

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Gi जन्म भर आपकी तावेदारी करके भी उसका बदला नहीं चुका सकत तथापि आपका परिचय न पाने के कारण कृष्णा-ठीक है ठीक है अपरिचित पुरुष स दिल खोलकर बात करना कुलवती स्त्रियों का धर्म नहीं है मगर में यद्यपि इस समय अपना परिचय नहीं दे सकता तथापि यह कहे देता हूँ कि नात में राजा गोपालसिह का छोटा भाई हूँ इसलिए तुम्हें भावज मानकर बहुत कुछ कहने और सुनने का हक रखता हूँ। तुम निश्चय रक्खो कि मेरे विषय में राजा गापालसिंह तुम्हें कभी उलाहना न देंगे चाह तुम मुझसे किसी तरह पर बातचीत क्यों न करो !( कुछ सोच कर) मगर मैं समझ रहा हूँ कि तुम जमानिया जाने से क्या इनकार करती हो। शायद तुम्हें इस बात का रज है कि यकायक तुम्हारे जीत रहने की खबर पाकर भी गापालसिह तुम्हें देखने के लिए न आए कमलिनी-दखने के लिए आन्ग तो दूर रहा अपने हाथ से एक पुञ्ज लिख कर यह भी न पूछा कि तेरा मिजाज केसा लाडिली-आने जाने वाले आदमी तक सभी हाल न पूछा ! लक्ष्मी-( धीरे से ) एक कुते की भी इतनी बेकदरी नहीं की जाती । कमलिनी-ऐसी हालत में रज हुआ ही चाहे जय आप यह कहते है कि हम राजा गोपालसितक छोटे भाई है और में समझती हूँ कि आप झूठ भी नहीं कहते होंगे तभी हम लोगों को इतना कहने का हौसला भी होता है। आप ही कहिए कि राजा साहब को क्या यही उचित था? कृष्णा-मगर तुम इस बात का क्या सबूत रखती हो कि राजा साहब ने इनकी रेकदरी की औरतों की भी विचित्र बुद्धि होती है । असल बात तो जानती नहीं और उलाहना देने पर तैयार हो जाती है। कमलिनी-सपूत अब इसस बद कर क्या होगा जो मै कह चुकी हूँ ? अगर एक दिन के लिए चुनारगढ आ जाते ते क्या पैर की मेहदी छूट जाती । कृष्णा-अपने बड़े लोगों के सामने अपनी स्त्री को देखने के लिए आना क्या उचित होता मगर अफसोस तुम लोगों को इस बात की खबर ही नहीं कि राजा गोपालसिह महाराज वीरेन्द्रसिह के भतीजे होते है और इसी सबब से लक्ष्मीदेवी को अपन घर में आ गई जान कर उन्होने किसी तरह की जाहिरदारी को। सब-( ताज्जुब से ) क्या महाराज उनके चाचा होते हैं ? कृष्णा-हा यह यात पहिल कवल हमी दोनों आदमियों को मालूम थी और तिलिस्म तोडते समय दोनों कुमारों को मालूम हुई या आज मरी जुयानी तुम लोगों ने सुनी? खुद महाराज बीरेन्दसिह को भी अभी तक यह बात मालूम नहीं है। लक्ष्मी-अन्धा अच्छा जब नातेदारी इतनी छिपी हुई थी तो कमलिनी- लक्ष्मीदेवी को रोक कर) बहिन तुम रहने दो मै इनकी बातों का जवाब दे लूगी (कृष्णाजिन से) तो क्या गुप्त रीति से वह एक चीठी भी नहीं भेज सकते थे? कृष्णा-चीठी भेजना ले दूर गुप्त रीति से खुद कई दफे आ कर वे इनको देख भी गये हैं। लाडिलो-अगर एसा ही होता तो रज काहे का था । कमलिनी-इस बात को ता वह कदापि साबित नहीं कर सकते । कृष्णा-यह वात बहुत सहज में सावित हो जायेगी और तुम लोग सहज ही में मान भी जाओगी मगर जब उनका और तुम्हारा सामना होगा तब। कमलिनी-तो आपकी राय है कि दिना सन्तोष हुए और बिना बुलाये येइज्जती के साथ हमारी बहिन जमानिया चली जाय ? कृष्णा-विना बुलाये कैसे? आखिर मै यहा किस लिए आया हूं। (जेब से एक चीठी निकाल कर और लक्ष्मीदेवी के हाथ में देकर ) देखो उनके हाथ की लिखी चीठी पदो। चौठी में यह लिखा हुआ था - चिरजीव कृष्णा योग्य लिखी गोपालसिह का आशीर्वाद---आज तीन दिन हुए एक पत्र तुम्हें भेज चुका हूँ। तुम छोटे भाई हो इसलिए विशेष लिखना उचित नहीं समझता केवल इतना लिखता हूँ कि चीठी देखते ही चले आओ और अपना भावज को तथा उनकी दोनों बहिनों को जहा तक जल्दी हो सके यहा ले आओ। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६ ७३९