पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४८

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art । इस चीठी को बारी-बारी से सभों ने पढ़ा। कमलिनी-मगर इस चीटी में काई ऐसी बात नहीं लिखी है जिससे लक्ष्मीदेवी के साथ हमदर्दी पाई जाती हा 'जब हाथ दुखाने बैठे ही थे तो एक चीठी इनके नाम की भी लिख डाली होती । इन्हें नहीं तो मुझी को कुछ लिख भेजा होता मेरा उनका सामना हुए भी ता बहुत दिन नहीं हुए। मालूम होता है कि थोडे ही दिनों में वे बेमुरोक्त और कृतन भी हो गए। कृष्णा-कृतज का शब्द तुमने बहुत ठीक कहा ! मालूम होता है कि तुम उन पर अपनी कारवाइयों का अहसान डाला चाहती हो? कमलिनी-(क्रोध से क्यों नहीं? क्या मैंने उनके लिये थोडी मेहनत की है ? और इसका क्या यही बदला था? कृष्णा--जब अहसान और उसके बटले का ख्याल आ गया तो मुहब्बत केसी और प्रेम कैसा? मुहब्बत और प्रेम में अहसान और बदला चुकाने का तो खयाल ही नहीं होना चाहिए। यह तो रोजगार और लेने-देने का सौदा हो गया ! और अगर तुम इसी तरह उदला चुकाने दाली कर्रवाई को प्रेमभाव समझती हो तो घबराती क्यों हो ? समझ लो कि दूकानदार नादेहन्द है मगर बदला देने योग्य है कभी न कभी बदला चुक ही जायेगा। हाय हाय औरतें भी कितना जल्द अहसान जताने लगती है | क्या तुमने कभी यह भी सोचा है कि तुम पर किसने अहसान किया और तुम उसका बदला किस तरह चुका सकती हो ? अगर तुम्हारा ऐसा ही मिजाज है और बदला चुकाये जाने की तुम ऐसी ही भूखी हो तो बस हो चुका! तुम्हारे हाथों से किसी गरीब असमर्थ या दीन-दुखिया का भला कैसे हो सकता है क्योंकि उर्स तो तुम बदला चुकाने लायक समझोगी ही नहीं । कम-( कुछ शमा कर ) क्या राजा गोपालसिह भी असमर्थ ओर दीन है ? कृष्णा नहीं है ! तो तुमने राजा साहब के उन पर अहसान किया था? अगर ऐसा है तो में तुम्हें उनसे बहुत स रूपया दिलवा सकता हूँ। कमलिनी-जी मैं रुपये की गूखी नहीं हूँ। कृष्णा-यहुत ठीक तब तुम प्रेम की भूखी होगी । कमलिनी-बेशक । कृष्णा-अच्छा तो जो आदमी प्रेम का भूखा है उसे दीन,असमर्थ और समर्थ में अहसान करते समय भेद क्यों दिखने लगा और इसके देखने की जरत ही क्या है ? ऐसी अवस्था में भी यही जान पड़ता है कि तुम्हारे हाथों से गरीब ओर दुखिया को लाभ नहीं पहुच सकता क्योंकि वे न तो समर्थ है और न तुम उनस उस अहसान के बदले में प्रेम ही पकर खुश हा सकती हो। कमलिनी-आपके इस कहने से मेरी बात नहीं कटती। प्रेमभाव का बर्ताव करके तो अमीर और गरीब आदमी भी अहसान का बदला उतार सकता है । और कुछ नहीं तो वह कम से कम अपने ऊपर अहसान करने वाले का कुशलमगल ही चाहेगा। इसके अतिरिक्त अहसार और अहसान का जस माने बिना दोस्ती भी तो नहीं हो सकती। दास्ती की तो बुनियाद ही नेकी है । क्या आप उसके साथ दास्ती कर सकते है जो आपके साथ वदी करे? कृष्णा-अगर तुम केवल उपकार मान लेन ही से खुश हो सकती हो तो चल कर राजा साहब से पूछो कि वह तुम्हारा उपकार मानते हैं या नहीं या उनको कहो कि उपकार मानते हो तो इसकी मुनादी करवा दें जैसा कि लक्ष्मीदेवी ने इन्द्रदेव कर उपकार मान के किया था। लक्ष्मी-(शर्माकर ) में भला उनके अहरगन का बदला क्यों कर अदा कर सकती हूँ और मुनादी कराने से होता ही क्या है? कृष्णा-शायद गजा गापालसिंह भी यही स्पेच कर चुप बैठ रह हों और दिल में तुम्हारी तारीफ करते हो । लक्ष्मी--(कमलिनी से ) तुम व्यर्थ की बातें कर रही हौ इस वाद-विवाद से क्या फायदा होगा। मतलब तो इतना ही है कि में उस घर में नहीं जाना चाहती जहा अपनी इज्जत नहीं पूछ नहीं चाह नहीं और जहा एक दिन भी रही नहीं। कृष्णा- अच्छा इन सब बातों का जाने दो, मैं एक दूसरी बात कहता हूँ उसका जवाब दो! कमलिनी-कहिए। कृष्णा-जरा विचार करके देखो कि तुम उनको तो बेमुरौवत कहती हो इसका खयाल भी नहीं करतीं कि तुम लोग उनसे कहीं बढ कर येमुरोक्त हो । राजा गापालसिह एक चीती अपने हाथ से लिख कर तुम्हारे पास भेज देते तो तुम्हें सन्तोष हा जाता मगर चीठी के बदले में मुझे भेजना तुम लोगों को पसन्द न आया ! अच्छा अहसान जताने का रास्ता तो तुमने खोल ही दिया है खुद गोपालसिह पर अहसान बता चुकी हो, तो अगर मै भी कहू कि मैने तुम लोगों पर अहसान किया है ता क्या बुराइ है? देवकीनन्दन खत्री-समग्र ७४०