पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४९

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कमलिनी-कोई बुराई नहीं है और इसमें कोई सन्देह भी नहीं है कि आपने हम लागों पर बहुत बडा अहसान किया है और बड़े वक्त पर ऐसी मदद की है कि कोई दूसरा कर ही नहीं सकता था। हम लोगों का याल-बाल आपके अहसान से बधा हुआ है। कृष्णा-ता अगर मैं ही राजा गोपालसिह वन जाऊ तो ॥ कृष्णाजिन्न की इस आखिरी बात न समों को चौंका दिया। लक्ष्मीदवी कमलिनी और लाडिली कृष्णाजिन्न का मुह देखने लगी। कृष्णाजिन्न इस समय नी ठीक उसी सूरत में था जिस सूरत में अब के पहिले कई दफे हमारे पाठक उसे दख चुके हैं। कृष्णाजिन ने अपन चहर पर से एक झिल्ली सी उत्तार कर अलग रख दी और उसी समय कमलिनी ने चिल्लाकर कहा अहा ये तो स्वय राजा गोपालसिह हे? ओर तब यह कहकर उनके पैरों पर गिर पड़ी आपने तो हम लोगों को अच्छा धाखा दिया ॥

सालहवा भाग समाप्त चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६ ७४१