पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५

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041 चीरसेन ने भी इसकी कुछ परवाह न की और उस आदमी को फिर अपने आगे आगे चलने के लिये कहा। आदमी-अच्छा एक घोडे पर आप सवार हो लीजिये और एक पर मैं सवार होकर आपके साथ चलता हू । वीर-नहीं,तुझे पैदल ही चलना होगा। आदमी-एक ता में बीमार हु दूसरे बहुत दूर से पैदल आने के कारण थक गया हू । वीर-(क्रोध से) चलता है या बातें बनाता है ? आदमी-(घोडे की तरफ बढ कर) पैदल तो मैं नहीं चल सकता ! वीरसेन ने क्रोध में आकर उसे एक लात मारी साथ ही उसने भी म्यान से तलवार निकाल ली और वीरसेन पर वार किया। बीरसेन ने फुर्ती से बगल में हट कर अपने को बचा लिया और एक हाथ तलवार का ऐसा लगाया कि उसकी दाहिनी कलाई जिसमें तलवार थी कट कर जमीन पर गिर पड़ी और वह आदमी हक्का बक्का होकर सामने खडा रह गया। बीरसेन ने कहा, अब भी चलेगा या इसी तरह अपनी जान देगा ! मगर वह आदमी भी बडा ही साहसी था। कलाई कट जाने से भी वह सुस्त न हुआ बल्कि उसने अपन कमर से एक रुमाल निकाल कर की हुई कलाई के ऊपर लपेटा और बीरसेन के आगे आगे किले की तरफ रवाना हुआ। थोड़ी दूर चल कर बीरसेन ने उससे कहा. इसमें कोई सन्देह नहीं कि महारानी के गायब होने का हाल तूजानता है बल्कि उस बुरे काममें तू भी साथी रहा है। यदि इसी जगह उसका पूरा पूरा हाल बता दे तो मै तुझे छोड दूंगा नहीं तो समझ रख कि थोड़ी ही देर में तेरा सर धड़ से अलग कर दिया जायगा! आदमी-आप यदि प्रतिज्ञा करें कि महारानी का पता बता देने और हर तरह की मदद देन पर आप मेरी जान छोड देंगतो मै इसमें जो कुछ भेद है आपसे कहू और महारानी का ठीक ठीक पता भी आपको बता दू क्योंकि मुझमे भूल तो हो ही चुकी है और यह भी निश्चय हो गया कि अब किसी तरह जान नहीं बचेगी। इसके साथ ही आपको यह प्रतिज्ञा भी करनी होगी कि आप लोग मेरा नाम और पता न पूछंगे। बीरसेन-यद्यपि तू इस योग्य नहीं है तथापि मै प्रतिज्ञा करता हूं कि महारानी यदि जीती जागती मिल जायगी तो तरी जान छोड दूंगा मगर इस बात को मी खूब याद रखियो कि अगर तू धोखा देने का उद्योग करेगा तो तरी जान बहुत बुरी तरह से ली जायगी। और मै यह प्रतिज्ञा करता हू कि तेरा नाम और पता जानने के लिये जबरदस्ती न की जायगी।' आदमी-आप क्षत्री है आपकी प्रतिज्ञा कभी झूठी नहीं हो सकती न मालूम कौन से क्रूर ग्रह आ पड़े थे कि हमलोग कालिन्दी के धोखे में आ गए और इतना बड़ा अनर्थ कर बैठे। हाय निसन्देह वह काली नागिन है। खैर जो होना था हो गया अब विलम्ब करना उचित नहीं है। अभी तक महारानी बहुत दूर न गई होंगी क्योंकि जो लाग उन्हें ले गए हैं थोडी ही दूर पर एक नियत स्थान पर ठहर कर मेरे और कालिन्दी के आने की राह देखते होंगे। अब खुटका केवल दो बातों का है एक ता यह कि कालिन्दी जो सब बखेडे की जड है और जिसे आपने छोड दिया है वहाँ पहुच कर लोगों को बहका न दे या इस बात की खबर कही बालसिह को न पहुच जाय जिसकी फौज किले के सामने वाले मैदान में पडी हुई है। साथ ही इसके इतना और भी कहे देता हू कि केवल ही अकेले चल कर महारानी को उन दुष्टों क हाथ से नहीं छुडा सकते क्योंकि व लोग लडने और जान देने के लिये तैयार हो जायगे। इतना ही कहते कहते वह आदमी सुस्त होकर जमीन पर बैठ गया क्योंकि उसकी कटी हुई कलाई में जख्म ठण्डा हो जाने के कारण दर्द ज्यादे हो गया था। इस समय बीरसेन तरदुद के मारे किले की तरफ इस तरह दखने लगे मानों किसी के आने की उम्मीद हो। अब आसमान पर चॉद अच्छी तरह निकल आया था जिसकी रोशनी में किले की तरफ से बहुत से आदमियों को अपनी तरफ आत हुए वीरसेन ने देखा और बोले-"लो रनवीरसिह भी आ पहुचे । आदमी-(खडा होकर और किले की तरफ देख कर) अब आप अपना काम बखूबी कर सकेंगे। बीरसेन-तू इस समय कलाई कट जान के कारण तकलीफ में है इसलिये मैं अपने साथ तुझे वहाँ ले जाना उचित नहीं समझता जहाँ महारानी के मिलने की आशा है अस्तु वहाँ का पता मुझे अच्छी तरह बता दे और तू मेरे आदमियों के साथ किले में जा यहाँ तेरे जख्म पर दवा लगाई जायगी। आदमी-बहुत अच्छा मै आपको पता बताए देता हूँ। (हाथ का इशारा करके) आप सीधे इसी तरफ चल जाइये, यहाँ से कोस भर चले जाने वाद एक गाँव मिलेगा। धीरसन-हॉ हॉ वह गाँव हमारा ही है उसका नाम पालमपूर है। आदमी-ठीक है उस गाँव के किनारे ही पर आम की एक बारी है। उसी में आप उन लोगों को पावेंगे जिनके पजे में कुसुम कुमारी १०८३