पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Qy1 ठीक करन . बीरेन्द्रसिह का लश्कर एक सुहावने जगल में पड़ा हुआ था। समय बहुत अच्छा था सध्या होने के पहिले ही से बादलों का शामियाना खडा हो गया था बिजली चमकने लग गई थी. और हवा के झपेटे पेड-पत्तों के साथ हाथापाई कर रहे थ। पहर रात जात-जाते पानी अच्छी तरह बरसने लग गया और उसके बाद तो आधी-पानी न एक भयानक तूफान का रूप धारण कर लिया। उस समय लश्कर वालों को बहुत ही तकलीफ हुई। हजारों सिपाही गरीब बनिये घसियारे और शागिर्द पेश वाले जो मैदान में सोया करते थे इस तूफान से दुखी होकर जान बचाने की फिक्र करने लगे। यद्यपि राजा बीरेन्द्रसिह की रहमदिली और रिआयापरवरी ने बहुतों को आराम दिया और बहुत से आदमी खेमों और शामियानों के अन्दर घुस गये यहाँ तक कि राजा वीरन्दसिह और तेजसिह के खेमों से भी सैकड़ों को पनाह मिल गई मगर फिर भी हजारों आदमी ऐसे रह गये थे जिनकी मूडी किस्मत में दुख भोगना यदा था। यह सब कुछ था मगर लीला को ऐसे समय भी चैन न था ओर वह दुख को दुख नहीं समझती थी क्योंकि उसे अपना काम साधने के लिए बहुत दिनों बाद आज यही एक मौका अच्छा मालूम हुआ। जिस खेने में मायारानी और दारोगा वगैरट कैद थे उससे चालीस या पचास हाथ की दूरी पर सलई का एक बडा और पुराना दरख्त था। इस आधी-पानी और तूफान का खौफ न करके लीला उसी पेड पर चढ गई और कैदियों के खेमे की तरफ मुंह करके तिलिस्मी तमचे का निशाना साधने लगी। जब-जब विजली चमकती तब-तब वह अपने निशाने को उद्याग करती। सम था कि बिजली की चमक में कोई उसे पेड पर चदा हुआ देख लेता मगर जिन सिपाहियों के पहरे में वह खेमा था उस (कैदियों वाल) खेमे के आस-पास जो लोग रहते थे सभी इस तूफान से घबडा कर उसी खेमे के अन्दर घुस मये थे जिसमें मायारानी और दारो वगैरह कैद थे। खेमे के बाहर या उस पेड के पास कोई भी न था जिस पर लीला चढी हुई थी। लीला जब अपने निशाने को ठीक कर चुकी तब उसने एक गोली (बेहोशी वाली) चलाई। हम पहिले के किसी बयान में लिख चुके हैं कि इस तिलिस्मी तमचे के चलाने से किसी तरह की आवाज नहीं होती थी मगर जब गोली जमीन पर गिरती थी तब कुछ हलकी सी अयाज़ पटाखे की तरह होती थी। लीला की चलाई हुई गाली खेम को छद के अन्दर चली गई और एक सिपाही के बदन पर गिरकर फूटी। उस सिपाही का कुछ नुकसान नहीं हुआ जिस पर गोली गिरी थी। न तो उसका कोई अग-भग हुआ और न कपडा जला केवल हलकी सी आवाज हुई और बेहोशी का बहुत ज्यादे धूआ चारों तरफ फैलने लगा। मायारानी उस वक्त बैठी हुई अपनी किस्मत पर रो रही थी। पटाखे की आवाज से वह चौक कर उसी तरफ देखने लगी। और बहुत जल्द समझ गई कि यह उसी तिलिस्मी तमचे से चलाई गई गोली है जो मैं लीला के सुपुर्द कर आयी थी। मायारानी यद्यपि जान से हाथ धो बैठी थी और उसे विश्वास हो गया था कि अब कैद से किसी तरह। छुटकारा नहीं मिल सकता मगर इस समय तिलिस्मी तमधे की गोली ने खेमे के अन्दर पहुच कर उसे विश्वास दिला दिया कि अव भी तेग एक दोस्त मदद करने लायक मौजूद है जो यहा आ पहुचा और कैद से छुडाया ही चाहता है ! वह मायारानी जिसकी आँखों के आगे मौत की भयानक सूरत घूम रही थी और हर तरह से नाउम्मीद हो चुकी थी चौक फर साहल बेटी : बेहोशी का असर करने वाला धूआँ बच रहने की मुबारकबाद देता हुआ आखों के सामने फैलने लगा और तरह-तरह की उम्मीदों ने उसका कलेजा ऊँचा कर दिया। यद्यपि वह जानती कि यह धूआ मुझे भी बेहोश कर देगा मगर फिर भी वह खुशी की निगाहों से चारों तरफ देखने लगी और इतने में ही एक दूसरी गोली भी उसी दंग की वहाँ आकर गिरी। मायारानी और दारोगा का छोड कर जितने आदमी उस खेमे में थे,सभों को उन दोनों मोलियों ने ताज्जुब में डाल दिया। अगर गोली चलातीसमय तमचे में से किसी तरह की आवाज निकलकर उनके कानों तक पहुंचती तो शायद कुछ पता लगान की नीयत से दो-चार आदमी खेमे के बाहर निकलत मगर उस समय सिवाब एक दूसरे का मुंह देखने के किसी को किसी तरह का गुमान न हुआ और घूए ने तेजी के साथ फैल कर अपना असर जमाना शुरू कर दिया। बत की यात में जितने आदमी उस खेम के अन्दर थे सभों का सर घूमने लगा और एक दूसरे के ऊपर गिरते हुए सबके सब बेहाश हो गए मायारानी और दारोगा को भी दीन दुनिया की सुध न रही। पैड पर चढी हुई लीला ने थोडी देर तक इन्तजार किया। जब खेमे के अन्दर से किसी को निकलते न देखा और उसे विश्वास हो गया कि खेमे के अन्दर वाले अब बेहोश हो गये होंगे तब वह पेड से उतरी और खेमे के पास आई। आधी पानी का जोर अभी तक वैसा ही था मगर लीला ने इसे अच्छी तरह सह लिया और कनात के नीचे से झाक कर खेमे के अन्दर देखा तो सभी को बहोश पाया। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७४३