पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५३

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माधवी ने उस चीठी को बडे गौर भेदोहरा कर पढ़ा और देर तक तरह-तरह की बातें साचती रही। हम नहीं जानते कि उसका दिल किन-किन बातों का फैसला करता रहा या वह किस विचार में देर तक डूबी रही हाथाडी देर बाद उसने सिर उठा चीठी लाने वाले की तरफ देखा और कहा "कुवेरसिह कहा पर है?' ऐयार-यहाँ से थोड़ी दूर पर। माधवी-फिर वह खुद यहीं क्या न आया? ऐयार-इसीलिए कि आप इस समय दूसरों के साथ है जिन्होंने आपको न मालूम किस तरह का मरोसा दिया होगा या आय ही ने शायद उनसे किस तरह का एकरार किया हो, ऐसी अवस्था में आपसे दरियाफ्त किये बिना इस लश्कर में आना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा। माधवी-ठीक है अच्छा तुम जाकर उसे बहुत जल्द मेरे पास ले आओ, कितनी देर में आओगे। ऐयार-( सलाम करके ) आधे घंटे के अन्दर । वह एयार तेजी के साथ दौड़ता हुआ वहाँ से चला गया और माधवी उसी जगह टहलती हुई उसका इन्तजार करने लगी। पर चली

दिन आधे घन्टे से कुछ ज्यादे बाकी था और इस समय माधवी कुछ खुश मालूम होती थी। शिवदत्त और कल्याणसिह का लश्कर एक जगल में छिपा हुआ था और माधवी अपने डेरे से निकल कर सौ कदम की दूरी गई थी। माधवी कुवेरसिह के अक्षर अच्छी तरह पहिचानती थी इसलिए उसे किसी तरह का धोखा खाने का शक कुछ भी न हुआ और वह बेखौफ उसके आने का इन्तजार करने लगी। सध्या होने के पहिले ही उसी एयार को साथ लिए हुए कुबेरसिह माधवी की तरफ आता दिखाई दिया जो थोडी ही दर पहिले उसकी चीठी लेकर आया था। इस समय वह ऐयार भी एक घोडे पर सवार था और कुबेरसिंह अपनी सूरत शक्ल तथा हैसियत को अच्छी तरह सजाये हुए था। माधवी के पास पन्च कर दोनों आदमी घोड से नीचे उतर पड और कुवेरसिह ने माधवी को सलाम करके कहा आज बहुत दिनों के बाद ईश्वर ने मुझे आपसे मिलाया 'मुझे इस बात का बहुत रज है कि आपने लौडियों के भडकाने पर चुपचाप घर छोड जगल का रास्ता लिया और अपने पेरखाह कुवरसिंह (हम) को याद तक न किया। मै खूब जानता हूं कि आपने अपने दीवान अग्निदत्त से डर कर ऐसा किया था मगर उसके बाद भी तो मुझे याद करने का मौका जरूर मिला होगा।' माधवी-(मुस्कराती हुई कुवेरसिह का हाथ पकड के) में घर से निकलने के बाद ऐसी मुसीबत में पड़ गयी थी कि अपनी भलाई-बुराई पर कुछ भी ध्यान न दे सकी ओर जब मैने सुना कि गया और राजगृही में धीरेन्द्रसिह का राज्य हो गया तब और भी हताश हो गई फिर भी मैं अपने उद्योग की बदौलत बहुत कुछ कर गुजरती मगर गया जी में अग्निदत्त की लडकी कामिनी ने मेरे साथ बहुत बुरा यताव किया और मुझे किसी लायक न रक्खा । (अपनी कटी हुई कलाई दिखाकर यह उसी की बदौलत है। कुवेर-यह खानदान का खानदान ही,निमकहराम निकला और इसी फेर में अग्निदत्त मारा भी गया । माधवी-हाँ उसक मरने का हाल मायारानी की सखी मनोरमा की जुबानी मैने सुना था। (पीछे की तरफ दखकर) कौन आ रहा है? कुवेर-आप ही के लश्कर का कोई आदी है शायद आपको बुलान आता हो, नहीं वह दूसरी तरफ घूम गया मगर अब आपको कुछ सोच-विचार करना किसी स मिलना या इस जगह खडखडे बातों में समय नष्ट करना न चाहिये और यह मौका भी पातचीत करने का नहीं है। आप (घोड की तरफ इशारा करक) इस घाडे पर शीघ सवार हाकर मेर साथ चली चले मै आपका तावेदार सब लायक और सब कुछ करने लिये तैयार हूँ, फिर किसी की खुशामद की जरूरत ही क्या है ? यदि कल्याणसिह के लश्कर में आपका कुछ असवाय हो तो उसकी परवाह न कीजिए। माधवी- नहीं अब मुझे किसी की परवाह नहीं रही में तुम्हारे साथ चलने को तैयार है। इतना कहकर माधवी कुचरसिह के घाई पर सवार हा गइ कुवेरसिह अपन ऐयार के घोड पर सवार हुआ तथा पैदल ऐयार को साथ लिए हुए दानों एक तरफ को रवाना हुए। यही सवय या कि शिवदत वगैरह के साथ माधवी राहतासगढ़ के तहसार में दाखिल नहीं हुई। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७४५