पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५४

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ext तीसरा बयान कैद से छुटकारा मिलने के बाद बीमारी के सबब से यद्यपि भीमसेन को घर जाना पड़ा और वहाँ उसकी बीमारी बहुत जल्दी जाती रही मगर घर में रहने का जो सुख उसको मिलना चाहिए वह न मिला क्योंकि एक तो मों के मरने का रज और गम उसे हद्द से ज्यादे था और अब यह घर काटने को दौडता था दूसरे थोड़े ही दिन बाद बाप के मरने की खबर भी उसे पहुची जिससे वह बहुत ही उदास और बेचैन हो गया। इस समय उसके ऐयार लोग भी वहीं मौजूद थे जो बाहर से यह दुखदाई खबर लेकर लौट आये थे। पहिले तो उसके ऐयारों ने उसे बहुत समझाया और राजा वीरेन्दसिह स सुलह कर लेने में बहुत सी भलाइया दिखाई मगर उस नालायक के दिल में एक भी न बैठी और वह राजा वीरेन्द्रसिह से बदला लेने तथा किशोरी को जान से मार डालने की कसम खाकर घर से बाहर निकल पड़ा। बाकरअली खुदाबक्श अजायबसिह और यारअली इत्यादि उसके लालची ऐयारों ने भी लाचार होकर उसका साथ दिया । अबकी दफे भीमसेन ने अपने ऐयारों के सिवाय और किसी को भी साथ न लिया, हौं रुपै अशर्फियाँ जवाहितत की किस्म में से जहाँ तक उससे बना या जो कुछ उसके पास था लेकर अपने ऐयारों को लालच भरी उम्मीदों का सब्जबाग दिखाता रवाना हुआ और थोड़ी दूर जाने के बाद ऐयारों के साथ उसने अपनी भी सूरत बदल ली। 'राजा बीरेन्द्रसिह को किस तरह नीचा दिखाना चाहिये और क्या करना चाहिये? इस विषय पर तीन दिन तक उन लोगों में बहस होती रही और अन्त में यह निश्चय किया गया कि राजा वीरेन्द्रसिह और उनके खानदान तथा आपुस वालों का मुकाबला करने के पहिले उनके दुश्मनों से दोस्ती बढा कर अपना बल पुष्ट कर लेना चाहिये। इस इरादे पर वे लोग बहुत कुछ कायम भी रहे और माधवी,मायारानी तथा तिलिस्मी दारोगा वगैरह से मुलाकात करने की फिक्र करने लगे। - कई दिनों तक सफर करने और घूमने फिरने के बाद एक दिन ये लोग दोपहर होते होते एक घने जंगल में पहुंचे। चार-पाचं घटे आराम कर लेना इन लोगों को बहुत जरूरी मालूम हुआ क्योंकि गर्मी के चलाचली का जमाना था और धूप बहुप कडी और दुखदाई थी। मुसाफिरों को तो जाने दीजिये जगली जानवरों और आकाश में उडने तथा बात की बात में दूर-दूर की खबर लाने वाली चिडियाओं को भी पत्तों की आड से निकलना बुरा मालूम होता था ! इस जगल में एक जगह पानी का झरना भी जारी था और उसके दोनों तरफ पेड़ों की घनाहट के सबब बनिस्बत और जगहों के वढक ज्यादे थी। ये पाचों मुसाफिर भी झरने के किनारे पत्थर की साफ चट्टान देख कर बैठ गए और आपुस में इधर-उधर की बातें करने लगे। इसी समय बातचीत की आहट पाने और निगाह दौडाने पर इन लोगों की निगाह दस बारह सिपाहियों पर पड़ी जिन्हें देख भीमसेन चौंका और उनका पता लगाने के लिए अजायबसिह से कहा क्योंकि दोस्तों और दुश्मनों के ख्याल से उसका जी एक दम के लिए भी विकाने नहीं रहता था और पत्ता खडका चन्दा भडका की कहावत का नमूना बन रहा था। भीमसेन की आज्ञानुसार अजायबसिह,ने उन आदमियों का पीछा किया और दो घण्टे तक लौट कर न आया। तब दूसरे ऐयारों को भी चिन्ता हुई और वे अजायबसिह की खोज में जाने के लिए तैयार हुए मगर इसकी नौबत न पहुची क्योंकि उसी समय अजायबसिह अपने साथ कई सिपाहियों को लिए भीमसेन की तरफ आता दिखाई दिया । अजायबसिह के इस तरह आनेने पहिले तो सभी को खुटके में डाल दिया मगर जब अजायबसिह ने दूर ही से खुशी का इशारा किया तय सभों का जी ठिकाने हुआ और उसके आने का इन्तजार करने लगे। पास आने पर अजायवसिह ने भीमसेन से कहा, इस जगल में आकर टिक जाना हम लोगों के लिए बहुत अच्छा हुआ क्योंकि रानी माधवी से मुलाकात हो गई। आज ही उनका डेरा भी इस जगंल में आया है। कुवेरसिह सेनापति और धार-पाँच सौ सिपाही उनके साथ है। जिन लोगों का मैने पीछा किया था वे भी उन्हीं के सिपाहियों में से थे और ये भी उन्हीं के सिपाही है जो मेर साथ आपको बुलाने के लिए आए है। माधवी की खबर सुन कर भीमसेन उत्तना ही खुश हुआ जितना अजायबसिह की जुबानी भीमसेन के आने की खबर पाकर माधवी खुश हुई थी। अजायबसिह की बात सुनते ही भीमसेन उठ खड़ा हुआ और अपने ऐयारों का साथ लिए हुए घडी भर के अन्दर ही अपनी बेहया बहिन माधवी से जा मिला। ये दोनों एक दूसरे को देख कर बहुत खुश हुए मगर उन दानो को मुलाकात कुधरसिह को अच्छी न मालूम पड़ी जिसका सवय क्या था सो हमारे पाठक लोग खुद ही समझ सकते देवकीनन्दन खत्री समग्र ७४६