पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५५

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दि थोडी देर तक भीमसेन और माधवी ने कुशल-मगल पूछने में बिताया। माधवी ने खाने पीने की चीजे तैयार करने का हुक्म दिया क्योंकि उसे अपने अनूठे भाई की खातिरदारी आज मजूर थी और इसलिए बड़ी मुहब्बत के साथ देर तक बातें होती रही। माधवी को इस जगल में आये आज पाच दिन हो चुके है। पाचवे दिन दोपहर के समय भीमसेन से मुलाकात हुई थी। उसका (कुबेरसिह का) ऐयार दुश्मनों की खोज-खबर लगाने के लिए कहीं गया हुआ था क्योंकि माधवी और कुबेरसिह ने इस जगल में पहुचकर निश्चय कर लिया था कि पहिले दुश्मनों का हाल-चाल मालूम करना चाहिए इसके बाद जो कुछ मुनासिब होगा किया जायगा । चौथा बयान कैद से छूटने के बाद लीला को साथ लिए हुए मायारानी ऐसा भागी कि उसने पीछे की तरफ फिर के भी नहीं दखा। ऑधी और पानी के कारण उन दोनों को भागने में बड़ी तकलीफ हुई कई दफे वे दोनों गिरी और चोट भी लगी मगर प्यारी जान को बचाकर ले मागने के ख्याल ने उन्हें किसी तरह दम लेने न दिया। दो घण्टे के बाद ऑधी पानी काजोर जातारहा आसमान साफ हो गया और चन्दमा भी निकल आया उस समय उन दोनों को भागने में सुबीला हुआ और सवेरा होने तक ये दोनों बहुत दूर निकल गई। मायारानी यद्यपि खूबसूरत थी नाजुक थी और अमीरी परले सिरे की कर चुकी थी मगर इस समय ये बातें हवा हो गई। पैरों में छाले पड जाने पर भी उसने भागने मे कसरन की ओर सवेरा हो जान पर भी दम न लिया बराबर भागती ही चली गई। दूसरा दिन भी उसके लिये बहुत अच्छा था आसमान पर बदली छाई हुई थी और धूप को जमीन तक पहुचने का मौका नहीं मिलता था। अब मायारानी यातचीत करती हुई और पिछली यातें लीला को सुनाती हुई रुक कर चलने लगी। थोड़ी दूर जाती फिर जरा दम लेती पुन उठ कर चलती और कुछ दूर बाद दम लेने के लिए बैठ जाती। इसी तरह दूसरा दिन मी मायारानी ने सफर ही में बिता दिया और खाने-पीन की कुछ विशेष परवाह न की। सध्या होन के कुछ पहिलेवेदोनोंएक पहाडी की तराई में पहुंची जहाँ साफ पानी का सुन्दर चश्मा बह रहा था और जगली और तथा मकोय के पेड़ भी बहुतायत से थे। यहाँ पर लीला न मायासनी से कहा कि अब डरने तथा चलते-चलते जान देने की कोई जरूरत नहीं. हम लोग बहुत दूर निकल आये है और ऐसे रास्ते से आये है कि जिधर से किसी मुसाफिर की आमदरफ्त नहीं होती अस्तु अब हम लोगों को बेफिक्री के साथ आराम करना चाहिए। यह जगह इस लायक है कि हम लोग खा-पी कर अपनी आत्मा को सन्तोष दे लें और अपनी-अपनी सूरतें भी अच्छी तरह बदल कर पहिचाने जाने का खटका मिटा लें। लीला की बात मायारानी ने स्वीकार की और चश्मे के पानी से हाथ मुह धोने और जरा दम लेने के बाद सबके पहिल सूरत बदलने का बन्दोबस्त करने लगी क्योंकि दिन नाममात्र को रह गया था और रात हो जाने पर विना रोशनी के सहारे यह काम अच्छी तरह नहीं हो सकता था। सूरत शक्ल के हेर फेर से छुट्टी पाने बाद दोनों ने जगली चैर और मकोय को अच्छे से अच्छा मेवा समझकर भोजन किया और चश्मे का जल पीकर आत्मा को सन्तोष दिया तब निश्चित हो कर बैठी और यो बातचीत करने लगी - माया-अब जराजी ठिकाने हुआ, मगर शरीर चूर-चूर हो गया।खैर किसी तरह तेरी बदौलत जान बच गई नहीं तो मैं हर तरह से नाउम्मीद हो चुकी थी और राह देखती थी कि मेरी जान किस तरह ली जाती है। लीला-चाहे तुम्हारे बिल्कुल नौकर-चाकर तुम्हारे अहसानों को भूल जायें और तुम्हारे नमक का ख्याल न करें मगर मैं कब ऐसा कर सकती है, मुझे दुनिया में तुम्हारे बिना चैन कब पड़ सकता है जब तक तुम्हें कैद से छुडा न लिया अन्न का दाना मुँह में न डाला बल्कि अभी तक जगली बैर और मकोय पर ही गुजारा कर रही है। माया-शाबाश मि तुम्हारे इस अहसान को जन्म भर नहीं भूल सकती जिस तरह आप रहूँगी उसी तरह तुम्हें भी रक्यूँगी यह जान तुमने बचाई है इसलिए जब तक इस दुनिया में रहूगी इस जान का मालिक तुम्हीं को समझूगी। लीला (तिलिस्मीतमचा और गोली मायारानी के सामने रख कर) यह अपनी अमानत आप लीजिए और अब इसे अपने पास रखिये, इसने बड़ा काम किया। माया-(तमचा उठाकर और थोडी सी गोली को देकर ) इन गोलियों को अपने पास रक्खों बिना तमचे के भी ये बड़ा काम देंगी जिस तरफ फेंक दोगी या जहाँ जमीन पर पटकोगी उसी जगह ये अपना गुण दिखलावेगी। चन्द्रका अन्तति भाग १७