पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५६

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लीला-(गोली रखकर ) बेशक ये बड़े वक्त पर काम दे सकती है। अच्छा यह कहिये कि अब हम लोगों को क्या करना और कहाँ जाना चाहिये? भाया इसका जवाब भी तुम्ही बहुत अच्छा दे सकती हो मैं केवल इतना ही कहूगी कि गोपालसिह और कमलिनी को इस दुनिया से उठा देना सबसे पहिला और जरूरी काम समझना चाहिए। किशोरी-कामिनी और कमला को मारकर मनोरमा ने कछ भी न किया, उतनी ही मेहनत अगर गोपालसिह और कमलिनी को मारने के लिए करती तो इस समय भै पुन तिलिस्म की रानी कहलाने लायक हो सकती थी। लीला-ठीक है मगर मुझे (कुछ रुक कर } दखो तो वह कौन सवार जा रहा है । मुझे तो उस छाकरे रामदीन की छा मालूम पड़ती है। यह एचकल्यान मुश्की वाडी भी आप ही अस्तबल की मालूम पडती है । बल्कि माया-(गौर से देखकर) वही है जिस पर में सवार हुआ करती थी और बेशक यह सवार भी रामदीन ही। उस पकडो तो गोपालसिह का ठीक हाल मालूम हो । लीला-पकडना तो काई कठिन काम नहीं है क्योंकि तिलिस्मी तमचा तुम्हारे पास मौजूद है, मगर यह कम्बख्त कुछ बताने वाला नहीं है। माया-खैर जो हो मै गाली चलाती हूँ। इतना कह कर मायारानी न फुती स तिलिस्मी तमय में गाली भर कर सवार की तरफ चलाई गाली घोडी की गर्दन में लगी और तुरन्त फट गई घोडी भडकी और उछली-कूदी मगर गाली से निकले हुए बेहोशी के धुर ने अपना असर करने में उसस भी ज्याद तेजी और फुर्ती दिखाई। घोडी और सवार दानों ही पर बहोशी का असर हो गया। सवार जमीन पर गिर पडा और दो कदम आगे बढकर घाडी भी लेट गई। मायारानी और लीला ने दूर से यह तमाशा देखा और दौडती हुई सवार के पास पहुची। लीला-पहिले इसकी मुश्में बाँधनी चाहिए। माया-क्या जरूरत है? लीला-क्यों फिर इसे बेहोश किस लिये किया? माया-तुम खुद ही कह चुकी हो कि यह कुछ बताने वाला नहीं है फिर मुश्के बॉधने से मतलब? लीला-आखिर फिर किया क्या रायगा? माया-पहिले तुम इसकी तलाशी ले लो फिर जो कुछ करना होगा मै बताऊँगी। लीला-बहुत खूब यह तुमने ठीक कहा। इस समय सध्या पूरे तौर पर हा चुकी थी परन्तु चन्द्रदेव के दर्शन हो रहे थे इसलिए यह नहीं कह सकते कि अन्धकार पल-पल में बढ़ता जाता था। लीला उस सवार की तलाशी लेने लगी और पहिले ही दफे जेर में हाथ डालने से उस दो चीजें मिलीं। एक तो हीरे की कीमती अगूठी जिस पर राजा गोपालसिह का नाम खुदा हुआ था और दूसरी चीज एक चीठी थी जो लिफाफे के तौर पर लपेटी हुई थी। चाहे अन्धकार न हो मगर चीठी और अगूठी पर खुदे हुए नाम को पढने के लिए रोशनी की जरूरत थी और जब तक चीठी का हाल मालूम न हा जाय तब तक कुछ काम करना या आग तलाशी लेना उन दोनों को मजूर न था अस्तु लीला ने अपने ऐयारी के बटुए में से सामान निकाल कर रोशनी पैदा की और मायारानी ने सबके पहिले अंगूठी पर निगाह दौड़ाई। अंगूठी पर श्री गोपाल खुदा हुआ देख उसके रोंगटे खड़े हो गये फिर भी अपनी तबीयतं सम्हाल कर वह चीठी पढनी पड़ी, चीठी में यह लिखा हुआ था - बेनीराम जोग लिखी गोपालसिह आज हमने अपना पर्दा खोल दिया कृष्णाजिन्न के नाम का अन्त हो गया जिनके लिये यह स्वाग रचा गया था उन्हें मालूम हो गया कि गोपालसिह और कृष्णाजिन्न में कोई भेद नहीं है अस्तु अब हमने कामकाज के लिए इस छोकरे को अपनी अगूठी देकर विश्वास का पात्र बनाया है। जब तक यह अंगूठी इसके पास रहेगी तब तक इसका हुक्म हमारे हुक्म के बरायर सभों को मानना होगा। इसका बन्दोवस्त कर देना और दो सौ सवार तथा चार रथ बहुत जल्द पिपलिया - देवकीनन्दन खत्री समग्र ७४८