पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

घाटी में भेज देना। हम किशोरीकामिनी लक्ष्मीदेवी और कमलिनी वगैरह को लेकर आ रहे है। थोडा सा जलपान का सामान उम्दा अलग भेजना। परसों रविवार की शाम तक हम लोग वहाँ पहुच जायेंगे। इस चीठी ने मायारानी का कलेजा दहला दिया और उसने घबडा कर इसे पढने के लिए लीला के हाथ में दे दिया। माया-ओफ ! मुझे स्वप्न में भी इस बात का गुमान न था कि कृष्णाजिन्न वास्तव में गोपालसिह है ! आह जब मैं पिछली बातें याद करती हू तो कलेजा कॉप जाता है और मालूम होता है कि गोपालसिह ने मेरी तरफ से लापरवाही नहीं की बल्कि मुझे बुरी तरह से दुख देने का इरादा कर लिया था। किशोरी कामिनी और कमला के बारे में भी ओफ । बस अब मै इस जगह दम भर भी नहीं ठहर सकती और ठहरना उचित भी नहीं है। लीला-पेशक ऐसा ही है मगर कोई हर्ज नहीं आज यदि कृष्णाजिन्न का भेद खुल गया है तो यह ( अंगूठी और चीठी दिखा फर) चीजें भी बड़ी ही अनूठी मिल गई है। तुम बहुत जल्द देखोगी कि इस चीठी और अंगूठी की बदौलत मैं कैसे-कैसे नामी ऐयारों की आँखों में धूल डालती हू और गोपालसिह तथा उसके सहायकों को किस तरह तडपा-तडपा कर मारती हू! तुम यह भी देखोगी कि तुम्हारे उन लोगों ने जो ऐयारी का बाना पहिने हुए थे और नामी ऐयार कहलाते थे उसका पासगा भी नहीं किया जो मैं अब कर दिखाऊँगी। तो अब यहाँ से चलना चाहिये। माया-बहुत जल्द ही चलना चाहिये, मगर क्या इस छोकरे को जीता ही छाड जाओगी? लीला-नहीं नहीं कदापि नहीं। क्या इसे मै इसलिये जीता छोड जाऊँगी कि यह होश में आकर जमानिया या गोपालसिह के पास चला जाय और मेरी कार्रवाइयों में बट्टा लगाए इतना कह कर लीला ने खजर निकाला और एक ही हाथ में बेचारे रामदीन का सिर काट दिया तब लाश को उसी तरह छोड घोडी को होश में लाने का उद्योग करने लगी। थोड़ी देर में घोडी भी चैतन्य हो गई उस समय लीला के कहे अनुसार मायारानी उस घोड़ी पर सवार हुई और दोनों ने वहाँ से हट कर एक घने जगल का रास्ता लिया। लीला घोडी की रिकाब थामे साथ-साथ बातें करती हुई जाने - लगी। माया-यह मदद मुझे गैष से मिली है, यकायक रामदीन का मिल जाना और उसकी जेब में से अंगूठी तथा चीठी का निकल आना कह देता है कि मेरे बुरे दिन बहुत जल्द खत्म हुआ चाहते हैं। लीला-इसमें क्या शक है ! अबकी दफे तो राजा गोपालसिह सचमुच हमारे कब्जे में आ गए हैं। अफसोस इतना ही है कि हमलोग अकेले है, अगर सौ पचास आदमियों की भी मदद होती तो आज गोपालसिह तथा किशोरी लक्ष्मीदेवी और कमलिनी वगैरह को सहज ही में गिरफ्तार कर लेते। माया-अब उन लोगों को गिरफ्तार करने का ख्याल तो बिल्कुल जाने दे और एकदम से उन लोगों को मार कर बखेडा निपटा डालने की ही फिक्र कर। इस अंगूठी और चीठी के मिल जाने पर यह काम कोई मुश्किल नहीं है। लीला-दीक है जो कुछ तुम चाहती हो मैं पहिले से समझे बैठी हूँ। मेरा इरादा है कि तुम्हें किसी अच्छी और हिफाजत की जगह पर छोडकर मै जमानिया जाऊँ और दीवान साहब से मिलू जिसके नाम गोपालसिह ने यह चीठी लिखी है। माया-बस रामदीन छोकरे की सूरत बना ले और इसी घोडी पर सवार होकर चीठी लेकर जा। इस चीठी के अलावे भी तू जो कुछ दीवान को कहेगी वह उससे इन्कार न करेगा। गोपालसिह के लिखे अनुसार जो कुछ खाने पीने की चीजें लेकर तू उस घाटी की तरफ जायेगी उसमें जहर मिला देना तो तेरे लिए कोई मुश्किल न होगा और इस तरह एक साथ ही कई दुश्मनों की सफाई हो जायगी मगर इसमें भी मुझे एक बात का खुटका होता है। लीला-वह क्या ? माया-जिस वक्त से मुझे यह मालूम हुआ है कि गोपालसिह ही ने कृष्णाजिन्न का रुप धारण किया था उस वक्त से मैं उसे बहुत ही चालाक और धूर्त ऐयार समझने लग गई हू, ताज्जुब नहीं कि वह तेरा भेद मालूम कर ले या वे खाने-पीने की चीजें जो उसने मॅगाई है उनमें से स्वय कुछ भी न खाय । लीला-यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है। मेरा दिल भी यही कहता है कि उसने खाने पीने का बहुत बड़ा ध्यान रक्खा होगा सिवाय अपने हाथ के और किसी का बनाया कदापि न खाता होगा क्योंकि वह तकलीफें उठा चुका है, अब उसे धोखा देना जरा टेढी खीर है, मगर फिर भी तुम देखोगी कि इस अगूठी की बदौलत मैं उसे कैसा धोखा देती हू और । किस तरह अपने पजे में फंसाती हूँ। माया-खैर जो मुनासिब समझ कर, मगर इसमें तो कोई शक नहीं है कि रामदीन छोकरे की सूरत बन और घोडी . चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७४९