पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७६

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इस समय महारानी है। वीरसन-मैं उस आम की वारी को भी अच्छी तरह जानता हूँ! इस वीच रनवीरसिह भी अपन साथ सौ सिपाहियों को लिय हुए वहाँ आ पहुचे और वीरसन की तरफ देख केबोले. 'शुक्र है तुमसे बहुत जल्द मुलाकात हो गई तुम्हारे खास आदमी ने मुझे इत्तिला दी थी और उसी क कह मुतायिक मैं सौ आदमियों को साथ लेकर आ रहा हूँ। वीरसेनजी हॉ, में अपने आदमी सताकीद कर आया था कि वह सव हाल आपसे कह कर आपको इधर आने के लिय कह । उस समय आप होश में न थ जन मुझे अपनी कार्रवाई के लिये मजबूरन वहाँ से निकलना पड़ा। वीरसन ने पिछला हाल बहुत थोडे में कहा जिसे रनवीरसिह गौर से सुनकर बाल- कम्बख्त कालिन्दी को तुमने अब भी छोड दिया । खैर अब वहाँ चलने में देर न करनी चाहिये। पाच आदमियों के साथ उस अपरिचित व्यक्ति का जिसकी कलाई कट गई थी किल की तरफ रवाना करके वीरसन और रनवीरसिह अपन बहादुर सिपाहियों को साथ लिये हुए तेजी के साथ पालमपुर की तरफ रवाना हुए और थोडी ही देर में उस आम की पारी में जा पहुच । इन लोगों के वहाँ पहुचते पहुचते तक साफ सवेरा हो गया था इसलिये काम में बहुत हर्ज न हुआ। महारानी कैदियों की तरह जकडी हुई एक डोली के अन्दर जिस चीस आदमी के लगभग घेरे हुए थे पाई गई थी। इन लागों के पहुचने में अगर आघी घडी की भी देर होती तो फिर कुसुमकुमारी का पता न लगता क्योंकि सवेरा हो जाने क कारण वदमाश लोग डाली उठवा कर दो ही कदम आगे बढथे कि बीरसेन और रनवीरसिह वगेरह ने पहुच कर उन लोगों का घेर लिया। मगर अफसोस उत्ती समय नमकहराम जसवन्तसिह और पाच सौ सिपाहियों को साथ लिये हुए दुष्ट वालेसिह भी उस जगह आ पहुचा और वीरसेन और रनवीरसिह वगैरह को चारो तरफ से घेर कर उस डोली पर झुक पड़ा जिसमें वेचारी कुसुमकुमारी थी। बाईसवां बयान कालिन्दी का विश्वास हो गया था कि वीरसन अब मुझे जीतान छोडेगा मगर वहादुर वीरसेन ने लापरवाही के साथ उस छाड़ दिया और अपन सामन से चल जाने के लिये कहा। कालिन्दी ने इसे ही गनीमत समझा और अपनी जान ले कर वहाँ से मागी। यद्यपि अपने स्वभाव और करनी के अनुसार कालिन्दी राक्षसी की पदवी,पाने योग्य थी परन्तु विधाता ने उसमें खूबसूरती और नजाकत कूट कूट कर भर दी थी। उसमें इतनी हिम्मत न थी कि दो तीन कोस पैदल चल सकती परन्तु जान के खौफ से उसे भागना ही पड़ा। राह में वह तरह तरह की बातें साचती जाती थी। 'जसवन्त से मिलूँ या न मिलूं ? अगर मैं उसके पास जाऊँगीता वह अवश्य मरी खातिर करेगा, मगर नहीं वह बडा ही खुदगर्ज है देखो मुझ अकेली छोडके कब्रिस्तान से कैसा भाग निकला नहीं नहीं. इसम उसका कोई कसूर नहीं वह जरा डरपोक है इसी से भाग गया था अब अगर वह मुझे देखेगा तो अवश्य क्षमा मागगा। अस्तु एक दफे पुन उसके पास चलना चाहिये, यदि वह अवभी मुझसे प्रेम न करेगा तो अवश्य उसे यमलोक में पहुंचाऊँगी।' इत्यादि वालों को सोचती विचारती वह वालेसिह के लश्कर की तरफ बढी चली जा रही थी मगर थकावट के कारण भरपूर चल नही पाती थी। चालसिह का लश्कर जब से तेजगढ के सामने आकर पड़ा था तब से वह रात को स्वय थोडे से आदमियों को साथ लेकर इधर उधर घूमा करता था। यद्यपि उसने कई जासूस गुप्त भेदों का पता लगाने चारो तरफ छिप कर घूमने के लिये मुकर्रर किये थ परन्तु जब तक वह स्वय रात को इधर उधर न घूमता उसका जी न नानता। आजभी वह थोडे से सवारों को साथ लेकर घूमने के लिये अपने लश्कर से बाहर निकला ही था कि एक जासूस सामने आकर खड़ा हो गया और बोला, किले के पिछले दर्वार्ज से महारानी कुसुमकुमारी को निकाल ले जाने की नीयत से कई आदमी किले के अन्दर रिश्वत देकर घुसे हैं मुझे ठीक पता मिला है कि यह कार्रवाई कालिन्दी की तरफ से की गई है। मैं अपने दो सिपाहियों को उस जगह छोड़ कर आपको खवर देने के लिये आया हूँ।' यह खबर सुनकर वालेसिह बहुत खुश हुआ और उसी जासूस को हुक्म दिया कि जहॉ तक जल्द हो सके जसवन्तनिह को बुला लावे। जासूस जसवन्तसिह के खेमे की तरफ रवाना हुआ और बालेसिंह खडा होकर सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिये। थाडी देर में जसवन्तसिह भी लड़ाई के सामान से दुरुस्त होकर यालेसिह के पास आ पहुंचा। बालेसिह ने जासूस की जुबानी जा कुछ सुना था उससे कहा और इसके बाद जसवन्तसिह और उस जासूस को साथ लेकर किले के पिछली तरफ रवाना हुआ। जो कुछ सवार तैयार थे उन्हें साथ लेता गया और हुक्म दे गया कि पाँच सौ . देवकीनन्दन खत्री समग्र १०८४