पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७६१

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६ - - तुम्हे जाप कर सम्बाधर नई भारती भरा तुम्हारा अब दास्ती और मुहम्मद का नाता त धुका इसलिए I कामाल नही हसरता म्धी-4 का यह परन्द करती है और इस बार में अपन लिगमा सुमन पहिल ही माका गालती इ. भीमा न पन पहा और नाधवी का मुनाया। भौम-इस पर सनावदा काम निकल सकता है 12 कप का लिया है और तुम्हारे हाथ क्योफार लगा तया जिस अगृती का इसमें जिक्र किया गया है वह कहा है ? माया-(अगूट' दिया कर) अगूठी भी मुझ मिल गई है और यह चीठी आज हां लिखो और मरे हाथ लगी है। अभी इसको कारवाई बिल्कुल बाकी है। भीम-अफसीत इतना ही है कि मेरे एयरों में से कोई भी रामदीन नहीं जानता माया-क्या हर्ज है यह मरी एवारा लीला बखूबी उसकी तरह बन कर काम निकाल सकती है तुम्हारे एयार इसकी मदद पर मुस्तैद रह रक्त है और यह जब रामदीन की सूरत बदगी ता इस अच्छी तरह देख भी रहन है। भीम-(चीठी मायारानी के हाथ में देकर भच्छा अर तुम दानों को जो कुछ गुप्त बाते करनी है कर ला पोछमें इस विषय में कुछ कहू-सुनगा। इतना कह कर भीमनन उठ खड़ा हुआ और कुबेरसिह का साथ लिए हुए कुछ दूर चला गया और मौका समझकर लीला भी कुछ पीछे हट गई। माया-जा कुछ पीछे कहो-सुनागी उस मै पहिले ही निपटा दना चाहती हू। सब पृमता मेरी और तुम्हारी अवस्था घराबर है तुम भी विधवा हा और मै भी विधवा इ. क्योंकि मैं वास्तव में गोपालसिह की स्त्री नहीं है और यह बात सभों का मालूम हो गई यल्कि तुम भी सुन ही चुकी होगी। माधवी-हा में सुन सुकी ४, और मैने यह भी सुना था कि दुमन राजा गोशलसिह का वर्षा तक कैद कर रक्खा था पर आदिर कमलिनी न उन्हें घुटा दिया। सो तुमन ऐसा क्यों किया और उन्हें म्गर ही क्यों न डाला? माया-यही मुझत्त मूल हा गई। तिलिस्म के दो-चा दि जो मुझ मालूम न जानन के लिए मैने एसा किया था मुझे उम्मीद थी कि वह पद की तकलीफ उठा कर बता देगा। तब उसे मार डालती तो आज यह दिन दखना नसीवान हातर, म तिलिस्म की बदौलन अकोली ही राजा वीर दसिह जैसे दस का जहन्नुम में पहुचा देन की ताकत रखती थी। अभी अगर गोपालसिह का मैं पकड पाऊ और मार सकूता पुन तिलिस्म की रानी होन स मुझ काई भी नहीं रोक सकता और तब में बात की पाल में तुम्हे राजगृहो और गया कीरानी बना सकती है, मगर उस बात का सिलसिला तो टूटा ही जाता है। तुम भी विधवा हो और मै भी विधवा है, तुम भी नौजवान और आशिक-मिजाजा तथा में भी नौजवान और आशिक-निजाज हा तुम भी इन्द्रजीतसिह के फेर में पड़ कर दुख भोग रही हा और में भी आनन्दत्तिह की मुहब्बत में इस दशा तक आ पहुंची ह, अब भी मेरी और तुम्हारी किस्मतो का फैसला एक साथ और एक ही ठिकान हो सकता है क्योंकि इदजीतसिह और आनदसिह भी आजकल उमानिया ही में निलिस्म ताड़ रहे है अगर आज हम तुम एक हाकर काम करें ता बहुत जल्द दुश्मनों का नामानिशान मिटा कर अपन प्यारों के साथ दुनियाका मुख नेग सकती है मगर मुझ इस समय सुम्हार दो कटक दिखाई दत है। माधवी-हा एक तो मरा भाई भीमसेन और दूसरा मेरा सनापति कुबरसिद्ध मगर तुम इन दोनों का कुछ भी सवाल न करो इस समय हमें इन दोनों को मिलाजुला कर काम ले लेना चाहिए,फिर तुम जैसा हागो वैसा किया जायगा। माया-शाबाश-शाबाश! यही मालूम करने के लिए मैं तुमसे निराले में बातचीत करना चाहती थी क्योंकि य वात एमी है कि सिवाय मेर और तुम्हार किसी तीसर का न जानना ही अच्छा है। माधदी-नि सन्दह एग ही है. हम दोनों के दिल की बाते हवा को भी न मालूम होनी चाहिए। आज बड़ी खुशी का दित है कि हम दोनों जो एक ही तरह का दिल रखती है यहा पर आ मिली। अब हम दाना का हमशानन मिलाप रखन और समय पड़न पर एक दूसरे की मदद करने के लिए कमा साकर मजदूत हा जान्न चाहए। पादक मायारानी और साधी दोनों हा अपगमनलवदवा रहा। दोनो ही दोरीतुदगरज ओस्दानो हो विश्वासपाती है। इस समय कुछ दर एक दानों में मुलभुल करती रही देनी हुए और सभी राई गई। इसके बाद फिर भीमन और बिरस्टिमुलाए गए तथा लीला भी आ गई और आरत ने तस्मों भीम-अच्छा अब क्या निश्चय किया जाता है? रामा गापालरिहा बीटील्फर मायाको अयगा और चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७५३