पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७६६

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आठवां बयान कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह तिलिस्म तोडन की धुन में लग हुए थे। मगर उनके दिल से किशोरी और कमलिनी तथा कामिनी और लाडिली की मुहब्बत एक सायत के लिये भी बाहर नहीं होती थीं। जब दोनों कुमारों ने नाग के उत्तर तरफ वाले मकान की खिडकी (छोटे दरवाजे) में से झाकते हुए राजा गोपालसिह की जुबानी किशोरी कमलिनी तथा कामिनी लौर लाडिली का सब हाल सुना और यह भी सुना कि अब वे सब बहुत जल्द जमानिया में लाई जाएगी, तब बहुत खुश हुए और उन लोगों से जल्द मिलने के लिए तिलिस्म तोड़ने की फिक्र उन्हें बहुत ज्याद हो गई। जब गोपालसिह इन्दिरा और इन्ददेव बातचीत करके चले गये तब बर्ड कुमार ने सर्दू से कहा ‘स', हम लोग अब बहुत जल्द तुम्हें अपने साथ लिए हुए इस तिलिस्म के बाहर होंगे। हम लागों को तिलिस्म तोड़ने और दौलत पाने का उतना ख्याल नहीं है जितना तिलिस्म से बाहर निकलने का ध्यान है। इस तिलिस्म स हमलोगों को एक किताब मिलने वाली है जिसके लिए हम लोग जरुर उद्योग करेंगे उसी किताव की बदौलत हम लोग चुनारगढ़ का वह भारी तिलिस्म तोड़ सकेंगे जिसे हमारे पिता ने हमारे लिए छोड रक्खा है और जिसका तोड़ना हम दोनों भाइयों को आवश्यक कहा जाता है। स!--मेरे दिल ने उम्मीदों स भर कर उसी समय विश्वास दिया कि अब तेरा दुध सदैव के लिए तेरा पीछा छोड़ देगा जब आप दोनों भाइयों के दर्शन हुए तथा आप लोगों का परिचय मिला। अब मैं अपना दुख भूल कर बिल्कुल येफिक्र हो रही हू और सिवाय आपकी आज्ञा मानने के कोई दूसरा खयाल मेरे दिल में नहीं है। इन्द्रजीत-अच्छा तो अब तुम हम लोगों के लिए फल तोडो और तब तक हम लोग इस बाग में घूम कर कोई दर्वाजा ढूढते है। ताज्जुब नहीं कि हम लोगों को इस बाग में कई दिन रहना पड़े। सर्दू-जो आज्ञा। इतना कह कर सयू फल तोडने और नहर के किनारे छाया देख कर कुछ जमीन साफ करने के ख्याल में पड़ी और दोनों कुमार बाग में इधर उधर घूम कर दवाजा खोजने का उद्योग करने लगे। पहर भर से ज्यादे देर तक घूमने और पता लगाने के बाद जब कुमार उत्तर तरफ वाली दीवार के नीचे पहुचे जिधर मकान था तब उन्हें पूरब तरफ के कोने की तरफ हट कर जमीन में एक हौज का निशान मालूम हुआ। उसी के पास दीवार में एक छोटे से दर्वाज का चिन्ह भी दिखा जिससे निश्चय हो कि उन लोगों का । इन्हीं दोनों निशानों से चलेगा। इतना सोच कर वे दोनों भाई वहा चले आये,जहा सर्व्व फल तोड और जमीन साफ करके बैठी हुई दोनों भाइयों के आने का इन्तजार कर रही थी। सर्प ने अच्छे-अच्छे और पके हुए फल दोनों भाइयों के लिए तोडे और जल से धोकर साफ पत्थर की चट्टान पर रक्खे थ। दोनों भाइयों ने उसे खाकर,नहर का जल पिया और इसके बाद मर्य को भी खाने के लिए कह के उसी ठिकाने चले गए जहा हौज और दर्वाजे का निशान पाया था। होज में मिट्टी भरी हुई थी जिसे दोनों भाइयों ने खजर मे खोद-खोदके निकालना शुरू किया और थोड़ी देर में मर्दू भी उनके पास पहुच कर मिट्टी फेकने में .. मदद करने लगी। सध्या हो जाने पर सभों ने उस काम से हाथ खींचा और नहर के किनारे जाकर आराम किया। हौज की सफाई में इन लोगों को चार दिन लग गए पाचवें दिन दोपहर होते होते वह हौज साफ हुआऔर मालूम होने लगा केयह वास्तव में एक फौवारा है ।वह हौज सगमर्मर का बना हुआ था और फौवारा सोने का। अब दोनों कुमारों ने खजर के सहारे उस होज की जमीन का पत्थर उखाडना शुरु किया और जब दो-तीनदिन की मेहनत में सब पत्थर उखड गये तब वह फौवारा भी सहज ही में निकल गया और उसके नीचे एक दर्वाजे का निशान दिखाई दिया। दर्वाजे में पल्ला हटाने के लिए कडी लगी हुई थी और जिस जगह ताला लगा हुआ था.उसके मुंह पर लोहे की एक पतली चादर रक्खी हुई थी जिसे कुअर इन्दजीतसिह ने हटा दिया और उसी तिलिस्मी ताली से ताला खोला जो पुतली के हाथ में से उन्हें मिली थी। दवाजा हटाने पर नीचे उतरने के लिए सीढियाँ दिखाई पड़ी। आनन्दसिह तिलिस्मी खजर हाथ में लेकर रोशनी करते हुए नीचे उतरे और उनके पीछे-पीछेइन्द्रजीतसिह और सर्प भी गए। नीचे पहुच कर उन्होंने अपने को एक छोटी देवकीनन्दन खत्री समग्र ७५८