पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

QYT सी काठरी में पाया जिसके बीचो बीच में एक हौज बना हुआ था। उस हौज के चारों तरफ वाली दीवार कई तरह की धातुओं से बनी हुई थी और हौज के बीच में किसी तरह की राख भरी हुई थी। कोठरी की चारों तरफ की दीवारों में से तावे की बहुत सी तारें आई थीं। और वे सब एक साथ होकर उसी हौज के बीच में चली गई थी। इन्द्रजीतसिह ने सर्व से कहा जब ये सब तारे काट दी जायगी तर बाग के चारों तरफ की दीवार करामात से खाली हो जायगी अर्थात् उसमें यह गुण न रहेगा कि उसके छूने से किसी को किसी तरह की तकलीफ हो इसके बाद हम लोग उस दीवार वाले दर्वाज को साफ करके रास्ता निकालेंगे और इस बाग से निकल कर किसी दूसरी ही जगह जायेंगे अस्तु तुम यहा से निकल कर ऊपर चली जाओतब म लोग तार काटने में हाथ लगावें। इन्द्रजीतसिह की आज्ञानुसार सर्पकोठरी से बाहर निकल गई और दोनों कुमारों ने तिलिस्मी खजर से शीध ही उन तारों को काट डाला और बाहर निकल आये।दरवाजा पहिले की तरह बन्द कर दिया और ऊपर से मिट्टी डाल दी, फिर नहर के किनारे आकर तीनों आदमी बैठ गए और बातचीत करने लगे। सर्थ अब दीवार छूने में किसी तरह की तकलीफ नहीं हो सकती? इन्द्र-अभी नहीं धीरे-धीरे दो पहर में उसका गुण जायगा और तब तक हम लोगों को व्यर्थ बैठे रहना पड़ेगा। आनन्द-तब तक ( सर्य की तरफ बता कर ) इनका बचा हुआ हिस्सा सुन लिया जाता तो अच्छा होता । इन्द-नहीं अब इनका किस्सा पिताजी के सामने सुनेंगे। सर्य-अब ता मैं आपके साथ ही रहूगी इसलिए तिलिस्म तोड़ते समय जो कुछ कार्रवाई आप करेंगे या जो तमाशा दिखाई देगा देखूगी मगर यदि आज के पहिले का हाल जब से आप इस तिलिस्म में आये हैं सुना देते तो बडी कृपा होती। मैं भी समझती कि आपकी बदौलत इस तिलिस्म का पूरा-पूरा तमाशा देख लिया । इन्ट--अच्छी बात है ( आनन्दसिह से ) तुम इस तिलिस्म का हाल इन्हें सुना दो। थोडी देर आराम करने तथा जरूरी कामों से छुट्टी पाने के बाद भाई की आज्ञानुसार आनन्दसिह ने अपना और तिलिस्म का हाल तथा जिस ढग से इन्दिरा की मुलाकात हुई थी वह सब सर्व से कह सुनाया इसके साथ ही साथ तिलिस्म के बाहरआज-कल का जैसा जमाना हो रहा था वह सब भी बयान किया। वह सब हाल कहते-सुनतेरात आधी से कुछ ज्यादा चली गई और उस समय इन लोगों ने एक विचित्र तमाशा देखा। इस बाग के उत्तर तरफ जो सटा हुआ मकान था और जिसमें से राजा गोपालसिह और कुमार में बातचीत हुई थी, हम पहिले लिख आये है कि उसमें आगे की तरफ सात खिडकिया थीं इस समय यकायक एक आवाज आने से दोनों कुमारों और सर्दू की निगाह उस तरफ चली गई। देखा कि चीच वाली बड़ी खिडकी (दरवाजा) खुली है और उसके अन्दर रोशनी मालूम होती है। इन लोगों को ताज्जुब हुआ और इन्होंने सोचा कि शायद राजा गोपालसिह आये है और हम लोगों से बातचीत करने का इरादा है मगर ऐसा न था, थोडी ही देर बाद उसके अन्दर दो तीन नकाबपोश चलते फिरते दिखाई दिये और इसके बाद एक नकाबपोश खिडकी में कमन्द अड़ा कर नीचे उतरने लगा। पहिले तो दोनों कुमारों और सर्दु को गुमान हुआ कि खिडकी में राजा गोपालसिह या इन्द्रदेव दिखाई देंगे या होंगे मगर जब एक नकाबपोश कमन्द के सहारे नीचे उतरने लगा तब उनका ख्याल बदल गया और वे सोचने लगे कि यह काम इन्ददेव या गोपालसिह का नहीं बल्कि किसी ऐसे आदमी का है जो इस तिलिसा का हाल नहीं जानता क्योंकि गोपालसिह और इन्द्रदेव तथा इन्दिरा को भी मालूम हई है कि इस बाग की दीवार छूने या बदन के साथ लगाने लायक नहीं है तभी तो इन्दिरा अपनी मा के पास नहीं पहुच सकी थी औ सयं ने यह बात इन्दिरा से कही होगी। इन्द्रजीतसिह ने इसी समय सर्दी से पूछा कि इस याग की दीवार का हाल इन्दिरा को मालूम है । इसके जबाव में सर्प ने कहा जरूर मालूम है मै खुद इन्दिरा से कहा था और इसी सबब से तो वह मेरे पास आज तक न आ सकी नि सन्देह इन्दिरा ने यह यात राजा गोपालसिंह से कही होगी बल्किा वह खुद जानते होंगे इसी से मैं सोचती हू कि ये लोग कोई दूसरे ही है जो इस भेद को नहीं जानते मगर अब तो इस दीवार का गुण जाता ही रहा। तीनों को ताज्जुब हुआ और तीनों आदमी टकटकी लगा कर उस तरफ देखने लगे। जब वह नकाबपोश कमन्द के सहारे नीच उतर आया तब दूसरे नकाबपोश ने वह कमन्द ऊपर खैच ली और उसी कमन्द में एक गठरी याँध कर नीचे लटकाई। दोनों कुमारों और सर्दू को विश्वास हा गया कि इस गठरी में जत्तर कोई आदमी है। जो नकाबपोश नीच आ चुका था उसने गठरी थाम ली और खोल कर कमन्द खाली कर दी मगर जिस कम्बल में वह गठरी बंधी हुई थी उसे इसी के साथ बाँध दिया और कपर वाले नकाबपोश ने खैच लिया। थोड़ी देर बाद दूसरी गठरी लटकाई गई और नीचे वाले नकाबपोश न पहिले "तरह उसे भी थाम लिया और खोल कर फिर कम्बल कमन्द के साथ बाँध दिया। 1 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७५९