पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७६८

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इसी तरह बारी-बारीसे सात गठरियॉ नीचे उतारी गई इसक बाद वह नकाबपोश जो सबसे पहिले नीचे उतरा था उसी कमन्द के सहारे ऊपर चढ़ गया और खिड़की बन्द हो गई। 1 नौवां बयान जिस समय राजा गोपालसिह खास बाग के दर्वाजे पर पहुचे उस समय उनके दीवान साहब भी वहाँ हाजिर थे। नकली रामदीन अर्थात लीला इनके हवाले कर दी गई। भेरासिह के सवाल करने पर उन्होंने कहा कि इस लीला ने चार आदमियों को खास बाग के अन्दर पहुचाया है मगर हम नहीं कह सकते कि वास्तव में वे कौन थे । अस्तु राजा साहय और भैरोसिह को यह तो मालूम हो गया कि चार आदमी भी इस बाग के अन्दर घुसे है जो हमार दुश्मन ही होंगे मगर उन्हें उन पाँच सौ फौजी सिपाहियों की शायद ही खबर हो जिन्हें मायारानी ने गुप्त रीति से याग के अन्दर कर लिया था। पहिली दफे जब मायारानी को गापालसिह ने छकाया था तब खुले तौर पर याग में रहती थी मगर अबकी दफ तो वह उस भूल भूलैया बाग में जाकर ऐसा गायब हुई है कि उसका पता लगाना भी कठिन होगा। दीवान साहब ने पूछा भी कि अगर हुक्म हा तो वाग में तलाशी ली जाय और उन आदमियों का पता लगाया जाय जिन्हें लीला ने इस बाग में पहुचाया है मगर राजा साहब ने इसके जवाब में सिर हिला कर जाहिर कर दिया कि यह बात उन्हें स्वीकार नहीं है। कुछ दिन रहते ही राजा गोपालसिह वाग के दूसरे दर्जे में केवल भैरोसिह को साथ लेकर गये और बाग के अन्दर चारों तरफ सन्नाटा पाया। इस समय भैरोसिह और राजा गोपालसिह दोनों ही के साथ में तिलिस्मी खजर मौजूद थे। खास बाग के दूसर दर्ज में दा कुएँ थे जिनमें पानी बहुत ज्यादे रहता था यहाँ तक कि इस बाग के पेड पत्तों को सींचने और छिडकाव का काम इन दोनों में से किसी एक कुएँ ही से चल सकता था मगर सींचने के समय दूर और नजदीक का ख्याल करके या शायद और किसी सबब से बनवाने वाले ने दो बड़े बडे जगी कूए बनवाये परन्तु ये दोनों कूएँ भी कारीगरी और ऐयारी से खाली न थे। भैरोसिह और गोपालसिह छिपते और घूमते हुए पूरब तरफ वाले कूएँ पर पहुचे जिसका घेरा बहुत बड़ा था और नीचे उतरने तथा चढने के लिए करें की दीवार में लोहे की कड़ियाँ लगी हुई थीं। भैरोसिह और गोपालसिह दोनों आदमी कड़ियों के सहारे इस कुएँ में उतर गये। किसी ठिकाने छिपी हुए मायारानी इस तमाशे को देख रही थी! गोपालसिह और भैरोसिह को आते देख वह बहुत खुश हुई और उसे निश्चय हो गया कि अब हम लोग गोपालसिह को मार लेगे। जिस जगह वह बैठी हुई थी वहाँ पर माधवी कुर्वरसिह भीमसेन और ऐयारों के अतिरिक्त बोस आदमी फौजी सिपाहियों में से भी मौजुद थे और बाकी फौजी सिपाही तहखानों में छिपाये हुए थे। पहिले तो मायारानी ने चाहा कि केवल हम ही लाग बीस सिपाहियों के साथ जाकर गोपालसिह को गिरफ्तार कर लें मगर जब उसे कृष्णाजिन्न वाली बात याद आई और यह ख्याल हुआ कि गोपालसिह के पास वह तिलिस्मी खजर और कवच जरुर होगा जो कि रोहतासगढ में उनके पास उस समय मौजूद था जब शेरअली और दारोगा के साथ हम लोग वहाँ गये थे तब इसकी हिम्मत टूट गई और बिना कुल फौजी सिपाहियों को साथ लिए गोपालसिह के पास जाना उचित न जाना। इसी बीच में उसके देखते-देखते गोपालसिह कूएँ के अन्दर चले गये। इस तिलिस्मी याग के अन्दर आने तथा यहाँ से बाहर जाने वाला दर्वाजा जिस तरह बन्द होता है इसका हाल उस समय लिखा जा चुका है जब पहिले दफा इस बाग में मायारानी के ऊपर आफत आई थी और मायारानी ने सिपाहियों के बागी हो जाने पर बाहर जाने का रास्ता बन्द कर दिया था अस्तु इस समय भी उसी ढग से भायारानी ने बाग का दरवाजा वन्द कर दिया और इसके बाद कुल सिपाहियों को तहखान में से निकाल कर माधवी भीमसेन और कुवेरसिह तथा ऐयारों को साथ लिए उस कुएँ पर पहुची,जिसके अन्दर भैरोसिंह को साथ लिए हुए राजा गोपालसिह उतर गए थे। मायारानी ने सोचा था कि आखिर गोपालसिह उस कुएँ से बाहर निकलेंगे ही, उस समय हम लोग उन्हें सहज ही में मार लेंगे बल्कि कूएँ से बाहर निकलने की मोहलत ही न देंगे-इत्यादि मगर जब बहुत देर हो गई और रात हो जाने पर भी गोपालसिह करें के बाहर न निकले तो उसे बडा ही ताज्जुब हुआ । यह खुद कू' के अन्दर झॉक कर देखने लगी और उसी समयचौक करमाधवी से बोली- माया-क्यों बहिन आज ही तुमने भी देखा था कि इस कूएँ में पानी कितना ज्यादा था । माधयी-वशक मैने देखा था कि बीस हाथ से ज्यादे दूरी पर पानी नहीं है तो क्या इस समय पानी कम जान पडता है? देवकीनन्दन खत्री समग्र ७६०