पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७७०

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३ - थीं मगर ऐयारों के लिए यह कोई मुश्किल बात न थी इसीलिए मायारानी के पक्ष वालों को भय हुआ और उन्होंने चाहा कि अपने फौजी आदमियों में से कुछ को ऊपर बुला लें और ऐसा करने के लिए अजायबसिह को कहा गया । अजायबसिह फौजी सिपाहियों को लाने के लिए चला गया मगर मकान के नीचे न जा सका और तुरन्त लौट आकर बोला, जाने का हर दरवाजा बन्द है कोई तरकीबमायारानी करें तो शायद वहाँ तक पहुंचने की नौबत आवे? अजायबसिह की इस बात ने सभों को चौका दिया और साथ ही इसके सभी को अपनी-अपनी जान की फिक पड़ गई। मायारानी के दिलाये हुए भरोसे से जो कुछ उम्मीद की जडालोगों के दिलों में जमी थी वह हिल गई और अब अपने किए पर पछताने की नौबत आई मगर मायारानी अब भी आत बनाने से न चूकी यह कहती हुई अपनी जगह से उठी कि 'कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह इस तिलिस्म को तोड़ रहे है इसलिए ताज्जुब नहीं कि ये सब बातें कुछ उन्हीं से सम्बन्ध रखती हों। मायारानी स्वय नीचे उतरी मगर जान सकी और अजायवसिह की तरह लाचार होकर बैरंग लौट आई। उस समय उसके दिल में भी तरह तरह के खुटके पैदा हुए और वह ताज्जुब की निगाह से उन लोगों की तरफ देखने लगी जो उनके मुकाबले में एकाएक आकर अब गिनती में पचीस हो गए थे। थोडी देर बाद वे ऊपर से कूदते-फादत मायारानी की तरफ आते हुए दिखाई दिए । उस समय मायारानी और उसके सगी-साथी सभी उठ खड़े हुए और अपनी-अपनी जाने बचाने की नीयत से तलवारे खैव-खैर मुस्तैद हो गये। बात की बात में वे पचीसों आदभी उस छत पर चले आए जिस पर मायारानी थी मगर मायारानी या उसके साथियों से किसी ने कुछ भी न कहा बल्कि उनकी तरफ ऑख उठा कर देखा भी नहीं और मस्तानी चाल से चलते हुए छत के नीचे उतर गए। इन लोगों ने भी यह सोच कर कि वे लोग गिनती में हमसे ज्याद है रोक-टोकन किया मगर इस बात का ख्याल जरूर रहा कि नीचे जाने के रास्ते तो सब बन्द है खुद मायारानी भी न जा सकी और लौट आई इन सभी को भी नि सन्देह लोट आना पड़ेगा, मगर थोडी देर में यह गुमान जाता रहा जब कि पचीसो नीचे उतर कर याग के बीच में चलते हुए दिखाई दिए। माधवी ने समझा कि हमारे फौजी सिपाही उन लोगों को जरुर टोकेंगे और वास्तव में बात ऐसी ही थी। उन पचीसों को बाग में देख फौजी सिपाहियों में खलबली मच गई और बहुतों ने उठ कर उन लोगों को रोकना चाहा मगर वे लोग देखते ही देखते पेडों की झुरमुट में घुस कर ऐसागायव हुए कि किसी का पता भी न लगा और सब लोग आश्चर्य से देखते रह गए। उस समय माधवी ने मायारानी से कहा यहिन यहा तो मामला चेदर नजर आता है। भाया-कुछ समझ में नहीं आता कि ये संग कौन थे. यहा क्यों आये और हमलोगों को बिना रोक-टोयोइस तरह क्यों और कहाँ गायब हो गये ! माधवी-यह तो ठीक ही है मगर मैं पूछती हूं कि आप तिलिस्म की रानी कहला कर भी इस माग का हाल क्या जानती है ? मै तो समझती हूं कि कुछ भी नहीं जानती खास अपने कमरे का मामूली दरवाजागी आपसे नहीं खुलता और हमलोगों की जान मुफ्त में जाया चाहती है ! भीम--अब आपकी कोई कार्रवाई हमलोगों को भरोसा नहीं दिला सकती। भाया-इस समय मै मजबूर हो रही है इसलिए टेढी सीधी जो जी में आने सुनाओ लेकिन अगर इस मकान के नीचे उतरने की नौबत आयेगी तो दिखा दूंगी कि मैं क्या कर सकती है। कुर्वर-नीचे जाने की नौबत ही क्यों आवेगी गैर लोग आवें और चले जाय मगर यहाँ की रानी होकर तुम कुछ न कर सको यह बड़े शर्म की बात है। मायारानी इसका जवाब कुछ दिया ही चाहती थी कि सीढ़ी की तरफ से आवाज आई, 'तुम लोगों के कलपने पर मुझे दया आती है अच्छा आओ हम दर्वाजा खोल देते हैं. तुम लोग नीचे उतर आओ और अपनी जान बचाओ।" इसके बाद सीढी वाले दर्वाजे के खुलने की आवाज आई। सभों को ताज्जुब हुआ और सीढी की तरफ जाते डर मालूम हुआ मगर यह सोच कर कि यहॉ पडे रहने से भी जान बचने की आशा नहीं है सभों ने जी कड़ा करके नीचे उतरने का इरादा किया। वास्तव में दरवाजे जो बन्द हो गये थे खुले हुए दिखाई दिये और सब कोई जल्दी के साथ नीचे उतर गये, उस समय मायारानी ने एक लम्बी सॉस लेकर कहा, अब कोई चिन्ता नहीं।" बाकर-मगर यह न मालूम हुआ कि दरवाजाखोलने वाला कौन था? यारअली और उसने हम लोगों के साथ यह नेकी का बर्ताव क्यों किया? इतने ही में ऊपर से आवाज आई," दर्वाजा खोलने वाला मै हू।" सभों ने घबरा कर ऊपर की तरफ देखा। एक आदमी मुँह पर नकाब डाले बरामदे से झाँकता हुआ दिखाई दिया। . देवकीनन्दन खत्री समग्र ७६२