पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७७३

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ke गोपालसिह ही मालूम पडते थे जिससे कुँअर इन्द्रजीतसिंह को बहुत आश्चर्य हुआ और वे बड गोर से इनकी तरफ देखने लगे। वे चारों आदमी जो पीछ आये थे खाली हाथ न थे बल्कि दो आदमियों की लाशें उठाए हुए थे। धीरे-धीर चल कर वे चारी आदमी उस बनावटी मूरत के पास पहुँच जिसके हाथर्म मशाल थी वे दोनों लाशे उसी के यास जमीन पर रख दी और तब पाचों गोपालसिह मिल करधीर-धीरे कुछ बातें करने लगे जिसे कुँअर इन्द्रजीतसिह किसी तरह सुन नहीं सकते थे। पहिले आदमी को देख कर और गापालसिह समझ कर कुमार ने आवाज देना चाहा था मगर जब और भी चार गोपालसिह निकल आए तब उन्हें ताज्जुब मालूम हुआ और यह समझ कर कि कदाचित इन पाचों में से एक भी गोपालसिह न हो, वे चुप रह गये। उन पाचों गोपालसिह की पोशाके एक ही रंग ढग की थीं, बल्कि उन दोनों लाशों की पोशाक भी ठीक उन्हीं की तरह थी। यधपि उन लाशों का सर कटा हुआ और वहा मौजूद न था मगर उन पाचों गोपालसिह की तरफ ख्याल करके देखने वाला उन लाशों को भी गोपालसिह बता सकता था। कुमार को चाहे इस बात का खयाल हो गया हो कि इन सभों में से कोई भी असली गोपालसिहन होंगे मगर फिर भी वे उन सभी को बड़े ताज्जुब और गौर की निगाह से देखते हुए सोच रहे थे कि इतने गापालसिह बनने की जरुरत क्या पडी और उन दोनों लाशों के साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया गया या किसने किया । जिस दर्वाजे में कुँअर इन्द्रजीतसिह खड़े थे उसी के आगे बाई तरफ घूमती हुई छोटी सीढियाँ नीचे उतर जाने के लिए थीं। कुंअर इन्द्रजीतसिह ने कुछ सोच विचार कर चाहा कि इन सीदियों की राह नीचे उतर कर पाचों गोपालसिह के पास जाय और उन्हें जबर्दस्ती रोक कर असल बात का पता लगावें मगर इसके पडल ही किसी के आने की आहट मालूम हुई और पीछे घूम कर देराने से कुँअर आनन्दसिह पर निगाह पड़ी। इन्दजीत--तुम क्यों चले आये? आनन्द-आपको मैंने कई दफे नीचे से पुकारा मगर आपने कुछ जवाब न दिया तो लाचार यहाँ आना पड़ा। इन्द्रजीत-क्यों ? आनन्द-राजा गोपालसिह की आज्ञा से। इन्द्रजीत-राजा गोपालसिह कहाँ है? आनन्द-उन दानों आदमियों में स जो नीच उतरे थे और जिन्हें आपने बेहोश कर दिया था एक राजा गोपालसिह थे। जब आप ज्पर चढ आए तब मैंन एक की उमाव हटाया और तिलिस्मी खजर को राशनी में चेहरा देखा तो मालूम हुआ कि गापालसिह है। उस समय मुझे इस बात का अफसोस हुआ कि वेहोश करने बाद आपने उनकी सूरत नहीं देखी अगर देखते तो उन्हें छोड कर यहा न आते। खर जब मैंने उन्हें पहिचाना तो होश में लाने के लिय उद्योग करना उचित जाना अस्तु तिलिस्मी खजर के जाडे की अगूठी उनका बदन में लगाई जिससे थोड़ी ही देर बाद वह होश में आये और उठ बैठे। होश में आने वाद पहिले पहिले जो कुछ उनके मुंह से निकला वह यह था कि कुँअर इन्दजीतसिह ने धोखाधाया मुझे बहोश करने की क्या जरूरत थी मै ता खुद उनस मिलन के लिए यहाँ आया था इतना कहकर उन्होंने मेरी तरफ देखा, यद्यपि उस समय चाँदनी वहाँ से हट गई थी मगर उन्होंन मुझे बहुत जल्द पहिचान लिया और पूरा कि 'तुम्हारे यो भाईका ? मैने उनसे कुछ छिपाना उचित न जाना और कह दिया कि इरीका के सहारे उपर चले गए है । सुन कर व बहुत रज हुए और क्रोध से बोले कि "सब काम लड़कपन और नादानी का किया करते है उन्हें बहुत जल्द ऊपर से बुला लो । मैने आपको कई दफे पुकारा मगर आप न योले तब उन्होंने घुडक के कहा कि 'क्यो त्यर्थ दर कर रहे हो, तुम खुद पर जाआ और जल्द बुला लाआ मैने कहा कि मुझे यहाँ स हटने की आज्ञा नहीं है.आप खुद जाइये और बुला लाइये मगर इतना सुन कर वे और भी रज हुए और बोत, अगर मुझमें ऊपर जाने की ताकन होती तो मै तुम्हें इतनाकहता ही नहीं बेहोशी क कारण मेरी रग-रगामजोर हो रही है तुम अगर उनको बुला लाने में विलम्ब करोगे तो पछताओगे बस अप में इससे ज्यादे और कुछ न कहूगाजो ईश्वर की मर्ग होगी और जो तुम लोगों के भाग्य में लिया होगा सो होगा! उनकी बातें ऐसीन थी कि मै सुनता और चुपचाप खड़ा रह जाता आखिर लाचार हाकर आपको युलाने के लिए आना पड़ा। अब आप जल्द चलिए देर न कीजिए। आनन्द सिंह की बातें सुन कर इन्द्रजीतसिह को बहुत रज हुआ और उन्होंने क्रोध भरी आवाज में कहा- इन्द-आखिर तुमसे नादानी हो ही गई? आनन्द-(आश्चर्य से) सो क्या? इन्द्र-तुमने उस दूसरे के चेहरे पर की भी नकाब हटा कर देखा कि वह कौन था? आनन्द-जी नहीं। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७