पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७७४

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hen इन्द-तब तुम्हें कैसे विश्वास हुआ कि यह राजा गोपालसिट ही है? जब चेहरे पर से नकाब हटा कर देखा ही था तो पानी से मुहें धोकर भी देख लेना थारक्या तुम भूल गये कि राजा गोपालतिह के पास भी इसी तरह का तिलिस्मी खजर मौजूद है अस्तु उनके ऊपर इस खजर का असर क्यों होने लगा था ? आनन्द-( सिर नीचा करके ) वेशक मुझस भूल इन्द्र--भारी भूल हुई !(छोटे वाग की तरफ यता कर) दखो यहाँ पाँच राजा गोपालसिह है या तुम कह सकत हा किये पाँचौ राजा गोपालसिह है। आनन्दसिह ने उस छोटे बगीचे की तरफ झाक कर देखा और कहा "वेशक मामला गरबड़ है ! इन्द-खैर अब तो हमें लौटना ही पडा हम चाहते थे कि इन सभों का कुछ भेद मालूम करे मगर खैर । इतना कह कर इदजीतसिह लौट पडे और उस कमर को लाघ कर दूसरे कमरे में पहुये जिसमें व सातो खिड़कियों थीं 1 यकायक इन्द्रजीतसिह की निगाह एक लिफाफे पर पड़ी जिसे उन्होंने उठा लिया और विराग के पास ले जाकर पदा। लिफाफा बन्द था और उस पर यह लिया हुआ था- इन्दजीतसिह और आनदसिह जोग लिया गाप लामिह कुमार ने लिफाफा फाड कर पीठी निकाली और देखते ही कहा इस चीठी पर किसी तरह का शक नहीं हो सकता बेशक यह भाई साहय के हाथ की लिखी है और मामूली पिशान भी है। इस याद में सिटी घने लगे। आनन्दसिह ने देखा कि चीठी पढते-पढ़ते इन्टजीतसिह के चेहर का रग कई दफे बदला और जैस-जेस पड़ते जात थे रज की निशानी बढ़ती जाती थी। वे जब कुल चीटी पढ़ चुके तो एक लम्बी सास लेफर बोल अफरगेस बड़ी भूल हुई और चीठी वह पढन के लिए आनन्दसिह का हाथ में दी। आनन्दसिह ने धोठी पदी यह लिसा हुआ था - किशोरी कामिनी लक्ष्मीदेवी कमला लाडिली और इन्दिरा को आपके पास तिलिस्म में भलते है। देखिये इन्हें सम्हालिए और एक क्षण के लिए भी इनसे अलग न होइए। मुन्दर हमारे तिलिस्मी याग में घुसी हुई है. हम आठ आना उसक कब्जे मे आ गय है। लीला ने धाखा देकर हमार कुछ भेद मालूम कर लिए जिसका सवम और पूरा-पूरा हाल लक्ष्मीदवी या कमलिनी की जुबानी आपको मालूम होगा जिन्हें हमने सब कुछ बता और समझा दिया है। कई बातो के ख्याल से सभी को बेहोश करके कमन्द द्वारा आपके पास पहुचाते है यवरदार एक क्षण के लिए भी इन लोगों से अलग ने हो और किसी बापटी गापालसिह का विश्वास - आज कम से कम वीस-पचीस आदमी गोपालसिंह बने हुए कारवाई कर रह है। हम जरा तरदुद में पडे हुए है मगर कोई चिन्ता नहीं भैरोसिंह हमार साथ है। आप भाग के इस दर्जे को ताड कर दूसरी जगह पविये और यह काम रात भर के अन्दर होना चाहिये । शिवराम गोपाल मेराधशि सुलेख। चोठी पढ़ कर आनन्दसिर को भी रडा अफसारा हुआ और अपने किए पर पछताने लगे। सब तो यों है कि दानो ही भाइयों को इस बात का अफसोस हुआ कि किशोरी कामिनी इत्यादि को अपन पास आ जाने पर भी देखे और होश में लाये विना छोड कर इधर चले आये और व्यथ की शझट में पड़े याति दोनों कुमार किशोरी और कामिनी की मुलाकात से बढकर दुनिया में किसी चीज को पसन्द नहीं करते थे। दाना कुमार जल्दी-जल्दी उस कामरे के बाहर हुए और उस खिडकी में पहुंचे जिसमें कमन्द लगा हुआ छोड आये थे मगर आश्चर्य और अफसोस की बात है कि अब उन्होंने उस काम्न्द का खिडकी में लगा हुआ न पाया जिसके सहारे वे नीचे उतर जाते शायद किसी नीचे वाले ने उस कमद को छुड़ा लिया था। बारहवॉ बयान राजा गोपालसिह मे जब रामदीन को चीठी और अगूठी देकर ज्भानिया भेजा था तो यद्यपि चीठी में लिख दिया था कि परसों रविवार को शाम तक हमलोग वहाँ ( पिपलिया घाटी) पहुच जायग मगर रामदीन को समझा दिया था कि रविवार को पिपलिया घाटी पहुचना, हमने यों ही लिख दिया है। वास्तव में हम वा सोमवार को पहुधेग। अस्तु तुम भी सोमवार को पिपलिया घाटी पहुधना, जिसमें ज्यादे देर तक हमारे आदमियों को वहां ठहर कर तकलाफ न उठानी पड़े और दो सौ सवारों की जगह केवल बीस सवार लाना। यह बात असली रामदीन को तो मालूम थी और वह मारा न जाता तो बेशक रथ और सवारों को लेकर राजा साहब की आज्ञानुसार सोमवार को ही पिपलिया घाटी पहुचता मगर नकली रामदीन अर्थात लीला तो उन्हीं बातों को जान सकती थी जो चीठी में लिखी हुई थी,अस्तु वह रविवार ही को रय और दो सौ फौज लेकर पिपलिया घाटी जा पहुची और जब सोमवार को राजा साहब वहा पहुचे तो बोली 'आरपर्य है कि आपके देवकीनन्दन खत्री समग्र