पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७७५

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ort . आने में पूरे आठ पहर की देर हुई !" यह सुनते ही राजा साहब समझ गये कि यह असली रामदीन नहीं है, उसी समय से उन्होंने अपनी कार्रवाई का ढग बदल दिया और लीला तथा मायारानी का सबबदोबस्त मिट्टी में मिल गया! वे उसी समय दो चार चातें करके पीछे लौट गए और दूसरे दिन औरतों को अपने साथनलाकर केवल भैरोसिह और इन्द्रदेव को साथ लिए हुए पिपलिया घाटी में आए। इस जगह यह भी लिख देना उचित जान पड़ता है कि दूसरे दिन पिपलिया घाटी में पहुच कर लीला के लाए हुए सवारों के साथ रथ पर चढ़ कर जमानिया पहुचने वाले गोपालसिह असली न थे,बल्कि नकली थे और भैरोसिह ने लीला के साथ जो सलूक किया वह असली राजा गोपालसिह के इशारे से था। अब हमार पाठक यह जानना चाहते होंगे कि यदि वह राजा गोपालसिह नकली थे तो असली गोपालसिह कहा गये या वह किस सूरत में गय? तो इसके जवाब में केवल इतना ही कह देना काफी होगा कि असली गोपालसिह नकली गोपाल के साथ इन्द्रदेव की सूरत बन कर रथ परसवार हुएथेऔर जमानिया पहुचने के पहिले ही नकली गोपालसिह को समझा बुझा कर रथ से उतर किसी तरफ चले गय थे। यह सब हाल यद्यपि पिछले के बयानों से पाठकों को मालूम हो गया होगा परन्तु शक मिटाने के लिये यहा पुन लिख दिया गया। राजा गोपालसिह के होशियार हो जाने के कारण मायारानी ने तिलिपी बाग में तरह तरह के तमाशे देखे जिसका कुछ हाल तो लिखा जा चुका है और बाकी आगे चल कर लिखा जायगा क्योंकि इस समय हम इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का हाल लिखना उचित समझते हैं। कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह ने जब खिडकी में कमन्द लगा हुआ न पाया तो उन्हें ताज्जुब और रज हुआ। थोड़ी देर तक खडे उसी बाग की तरफ देखते रहे और तब आनन्दसिह से बोले 'क्या हम लोग यहा से कूद नहीं सकते? आनन्द क्यों नहीं कूद सकते । अगर इस बात का ख्याल हो कि नीचा बहुत है तो कमरबन्द खोल कर इस दरवाजे के सींकचे में बाध और उसके सहारे कुछ नीचे लटक कर कूदने में मालूम भी न पडेगा। इन्द-हा तुमने यह बहुत ठीक कहा, कमरबन्दों के सहारे हमलोग आधी दूर तक तो जरूर ही लटक सकते है मगर खराबी यह है कि दोनों कमरबन्दों से हाथ धोना पड़ेगा और इस तिलिस्म में नहाने धोने का सुभीता इन्हीं की बदौलत है। खैर कोई चिन्ता नहीं लगौटे से भी काम चल सकता है, अच्छा लाओ कमरबन्द खोलो। दोनों भाइयों ने कमरबन्द खोलने के बाद दोनों को एक साथ जोडा और उत्तका एक सिरा दर्वाजे में लगे हुए सीकचे के साथ बाध कर दोनों भाई बारी बारी से नीचे लटक गये। कमरबन्द न आधी दूर तक दोनों भाइयों को पहुंचा दिया. इसके बाद दोनों भाइयों को कूद जाना पड़ा। कूदने के साथ ही नीचे एक झाडी के अन्दर से आवाज आई, "शावाश! इतनी ऊचाई से कूद पडना आप ही लोगों का काम है। मगर अब किशारी कामिनी इत्यादि से मुलाकात नहीं हो सकती । जितने आदमी कमन्द के सहारे इस बाग में लटकाये गये थे और जिन सभों को यहा छोड आनन्दसिह अपने भाई को बुलाने के लिए ऊपर गय थे उन सभों की मौजूद न पाकर और इस शाबाशी देने वाली आवाज को सुन कर दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ। दानों भाई चारो तरफ धूम-धूम कर देखने लगे मगर किसी की सूरत नजर न पडी, हा एक पेड़ के नीचे सर्य को बेहोश पडे हुए जरुर देखा जिससे उन दोनों का ताज्जुब और भी ज्यादे हो गया। इन्द्र--( आनन्दसिह से ) यह सब खराबी तुम्हारी जरा सी भूल के सयब से हुई । आनन्द-नि सन्देह ऐसा ही है। इन्द्र-पहिले सर्प को होश में लाने की फिक्र करो शायद इसकी जुबानी कुछ मालूम हो। इतना कह कर आनन्दसिह सर्य को होश में लान का उद्योग करने लगे। थोड़ी देर में सर्प की बेहोशी जाती रही और इतने ही में सुबह की सुफेदी ने भी अपनी सूरत दिखाई। इन्दजीत-( सर्य से ) तुम्हे किसने बेहोश किया ? गर्य--एक नकाबपाश ने आकर एक चादर जबर्दस्ती मेरे ऊपर डाल दी जिससे मैं बेहोश हो गई। मैं दूर से सब तमाशा देख रही थी। जब आप कमन्द के सहारे ऊपर चढ गय और उसके कुछ देर बाद छोटे कुमार भी आपको कई दफे पुकारने बाद उसी कमन्द के सहारे ऊपर चढ़ गये तब उन्हीं में से एक नकाबपोश ने उन सभों सचेत किया जो (हाथ का इशारा करके) उस जगह बेहोश थे या जो ऊपर से लटकाए गये थे। इसके बाद सब कोई मिल कर उस चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७६७