पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७७६

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(हाथ से यता कर) दीवार की तरफ गए और कुछ देर तक आपस में बातें करते रहे। इसी बीच में छिपकर उनकी बातें सुनने की नीयत से मैं भी धीरे-धीरे अपनेकोछिपाती हुई उस तरफ बढ़ी मगर अफसोस वहा तक पहुंचन भी न पाई थी। कि एक नकाधांश मेरे सामने आ पहुंचा और उसने उसी ढग से मुझे बेहोश कर दिया जैसा कि मैं अभी कह चुकी हू। शायद उसी बेहोशी की अवस्था में में इस जगह पहुचाई गई। सर्य की बाते सुन कर दोनों कुमार कुछ देर तक सोचते रहे, इसके बाद रार्य का साथ लिए उसी दीवार की तरफ गयेर उर लोगों का जाना सर्प ने बताया था जो कमन्द के सहारे इस वागमें उतरे या उतारे गये था जब वहा पहुध तो देखा कि दोबार की लम्बाई केवीचो-बीचमं एक दर्वाजे का निशान बना हुआ है और उसके पास ही में नीचे की जमीन कुछ सुदी हुई है। आनन्द-(इन्द्रजीतसिंह से देखिए यहा की जमीन उन लोगों ने खौदी और तिलिस्म के अन्दर जान का दरवाजा निकाला है क्योंकि दीवार में अब यह गुण तो रहा नहीं जा उन लोगों का ऐसा करने स रोकता ! इन्द्र-शक यह वाही दर्वाजा है जिस राह से हम लोग तिलिस्म के दूसरे दर्जे में जाने वाले थे। मगर इससता जाना जाता है कि ये लोग तिलिस्म के अन्दर घुस गये ! आनन्द-जरुर एसा ही है और यह काम सिदाय गापाल भाई का दूसरा कोई नहीं कर सकता अन्तु जब में जरूर यह कहन की हिम्मत करुमा कि यह कोई दूसरा नहीं था जिसको हाटे मुताबिक मैं आपको बुलान के लिए मकान के ऊपर चला गया था। इन्द्र-तुन्हारी बात मान लने की इच्छा ता हाती है मगर क्या तुम उस खास निशान को देख कर भी कह सकत हो कि वह चीठी गोपाल भाई की नहीं थी.जा मुझे उस मकान में कमरे के अन्दर मिली थी ! आनन्द-जी नहीं यह तो मै कदापि नहीं कह सकता कि वह चीठी किसी दूसर की लिपी हुई थी, मगर यह ख्याल भी मेरे दिल से दूर नहीं हो सकता कि उन्हीं (गोपालसिह ) की आज्ञा से आपको बुलाने गया था। इन्द्र-हो सकता है तो क्या उहाँन हमलोगों के साथ चालाकी की ? अनर-जा हो। इन्द-यदि ऐसा ही है तो उनकी लिखावट पर भरासा करके यह हम कैसे कह सकते हैं कि किशारी कागिनी इत्यादि इस बाग में पहुंच गई थी। आनन्द-क्या यह हो सकता है कि वह तिलिस्नो किताव जो गोपाल भाई के पास थी हमारे किसी दुश्मन के हाथ लग गई और वह उस किताब की मदद से अपने साथियों सहित बता पहुच करम लामों का नुकसान पहुचाने की नीयत से तिलिस्म के अन्दर चला गया है? इन्द्र-यह सा हो सकता है कि उनकी किताब किसी पुरमन ने चुरा ली हा मगर यह नहीं हो सकता कि उसका मतलब भी हर कोई समझ ले। खुद में दो रितगन्थ का मतलब ठीक ठीक नहीं समझ सकता था, आखिर जब उन्हो बताया तब कही तिलिस्म के अन्दर जागे लाया हुआ (कुछ रुक कर) आज के मामले तो कुछ अजब मेटगे दिखाईद रहे खेर कोई चिन्ता नहीं, आखिर हम लाग ने इस दजि की राह सिलिन्म के अन्दर जाना ही है, चलो फिर जो कुछ हागा देखा जायगा! आनन्द-यधपि सूर्योदय हो जाने के बगरण प्रात कृत्य से छद्री पालेआवश्यक जान पड़ता है यह सोच कर कि क्या जाने कैसा मौका आ पड़े तथापि आज्ञानुसार तिलिस्म के अन्दर चलने के लिए तैयार ह, यलिए। आनन्दसिह की यात सुन कर इन्द्रजीतसिह कुछ गौर में पड़ गए और कुछ सोचने के बाद बोले 'कोई चिन्ता नहीं जो कुछ होगा देखा जायगा। दीवार के नीच जो जमीन खुदी हुई थी उसकी लम्याई घोड़ाई पाच-पाच गज से ज्यादे न थीं। मिट्टी हट जाने के कारण एक पत्थर की पटिया (ताज्जुब नहीं कि वह लोहे या पीतल की हो) दिखाई दे रही थी और उसे उठाने के लिए चीच में लोहे की कड़ी लगी हुईथी, जिसका एक सिरा दीवार के साथ सटा हुआ था। इन्द्रजीतसिह ने कड़ी में हाथ डाल कर जोर किया और उस पटियो (छोटी चहान ) को उठा कर किनार पर रख दिया। नीचे उतरने के लिए सीढिया दिखाई दी और दोनों भाई सर्प को साथ लिए नीचे उतर गए। लगमग बीस सीढी के नीध उतर जानेबाद एक छोटी कोठरी मिली जिसकी जमीन किसी धातु की बनी हुई थी और खूब चमक रही थी। ऊपर दो तीन सूराख (छद) भी इस दा से बने हुए थे जिससे दिन भर उस कोठरी में कुछ देवकीनन्दन खत्री समग्र ७६८