पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

S हम लोग डरते ही नहीं। आनन्द-जी हा जरूर ऐसा करना चाहिए। दवा तो हम लोगों के पास मौजूद ही है और ईश्वर की कृपा से कमरे का दर्वाजा भी खुला है। दोनों भाइयों ने कमर से एक डिबिया निकाली जिसमें किसी तरह की दवा थी और उसे खाने के बाद कमरे के बाहर निकला ही चाहते थे कि ऊपर वाले छोटे छोटे दर्वाजों में से एक दर्वाजा खुला और पुन उसी नौजवान बुढ़िया के खसम भैरोसिह की सूरत दिखाई दी। दोनों माई रुक गये और आनन्दसिह ने उसकी तरफ देख कर कहा, "अब आप यहा क्यों आ पहुच? भैरो-आपके हाल-चालकी खबर लेने और साथ ही इसके अपनी नौजवान औरत की तरफ से आपको ज्याफत का न्योता देने आया है। मालूम होता है कि वह तुम लोगों पर आशिक हो गई है तभी खातिरदारी का बन्दोबस्त कर रही है। उसने तुम लोगों के लिये कितनी अच्छी-अच्छी चीजें खाने की तैयार की है और अभी तक बनाती ही जाती है। आनन्द-(हस कर) और उन चीजों में जहर कितना मिलाया है? भैरो-केवल डेढ छटाक, मैं उम्मीद करता हू कि इतने से तुम लोगों की जान जायगी। आनन्द-आपकी इस कृपा के लिए मै धन्यवाद देता हूँ और आपसे बहुत ही प्रसन्न होकर आपको कुछ इनाम दिया चाहता हूँ, आप मेहरबानी करके जरा यहा आइय तो अच्छी यात है। भैरो बहुत अच्छा, इनाम लेने में देर करना मले आदमियों का काम नहीं है। इतना कह कर भैरोसिह वहा से हट गया और थोड़ी ही देर बाद सदर दर्वाजे की राह से कमरे के अन्दर आता हुआ दिखाई दिया। जब कुँअर आनन्दसिह के पास आया तो बोला, "लाइये क्या इनाम देते है। आनन्दसिह ने फुर्ती से तिलिस्मी खजर उसको हाथ पर रख दिया जिसके अत्तर से वह एक दफे कापा और बेहोश होकर जमीन पर लम्बा हो गया। तब आनन्दसिह ने अपने भाई से महा 'अब इसे अच्छी तरह जाच कर देख लेना चाहिये कि यह भैरोसिह ही है या कोई और? इन्द्रजीत-हा अव बखूबी पता लग जायगा, पहिले इसके दाहिनी बगल वाला देखो। आनन्दसिह(भैरोसिह की बगल देख कर) देखिये मसा मौजुद है। अब कमर वाला दाग देखिये- लीजिए यह भी मौजूद है। इसके भैरोसिंह होने में अब मुझे तो किसी तरह का सन्देह नहीं रहा । इन्द्रजीत अब सन्देह हो ही नहीं सकता, मैने इस मसे को अच्छी तरह खंच कर भी देख लिया अच्छा इसे होश में लाना चाहिये। इतना कह कर इन्द्रजीतसिह ने अपना वह हाथ जिसमें तिलिस्मी खजर के जाड़े की अगूठी धी मैरोसिंह के बदन पर फेरा । भैरोसिह तुरन्त होश में आकर उठ बैठा और ताज्जुब से चारों तरफ देखता हुआ बोला. 'वाह-वाह ! मैं यहा क्योंकर आ गया और आप लोगों ने मुझे कहा पाया?' आनन्द-मालूम होता है अब आपका पागलपन उतर गया? भैरो-(ताज्जुब से) पागलपन कैसा? इन्दजीत-इसके पहिले तुम किस अवस्था में थे और क्या करते थे कुछ याद है ? भैरो-मुझे कुछ भी याद नहीं? इन्द्रजीत-अच्छा यताओ कि तुम इस तिलिस्म के अन्दर कसे आ पहुंचे। भैरो-केवल मुझी को नहीं बल्कि किशोरी, कामिनी, कमला, लक्ष्मीदेवी लाडिली, कमलिनी और इन्दिरा को मी राजा गोपालसिह ने इस तिलिस्म के अन्दर पहुचा दिया है, बल्कि मुझे तो समके आखीर में पहुचाया है। आपके नाम की एक चीठी भी दी थी मगर अफसोस ! आपसे मुलाकात होने न पाई और मेरी अवस्था बदल गई। इन्द्रजीत-वह चीठी कहा है? भैरो-- (इधर-उधर देख कर) जब मेरे बटुए ही का पता नहीं तो चीठी के बारे में क्या कह सकता हू आनन्द-मगर यह तो तुम्हें याद होगा कि उस चीठी में क्या लिखा था ? भैरो-क्यों नहीं, मेरे सामने ही तो वह लिखी गई थी। उसमें कोई विशेष बात न थी केवल इतना ही लिखा था कि उस गुप्त स्थान से किशोरी कामिनी इत्यादि को लेकर मैं जमानिया जा रहा था,मगर मायारानी की कुटिलता के कारण अपने इरादे में बहुत कुछ उलट फेर करना पड़ा। जब यह मालूम हुआ कि मायारानी तिलिस्मी बाग के अन्दर घुस गईहै,तब लाचार सब औरतों को तिलिस्म के अन्दर पहुचाताहूँ। बाकी हाल भैरोसिह से सुन लेना -बस इतना लिखा था। मालूम होता है कि पहिले का हाल वह आपसे कह चुके है। इन्द्रजीत-हा पहिले का बहुत कुछ हाल वह हमसे कह चुके है। + ! देवकीनन्दन खत्री समग्र ७७२