पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७८९

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lart पास पहुंचने पर जमादार ने उस जवहरी को एक रोआबदार और अमीर आदमी पाकर सलाम किया और सलाम का जवाब पाने बाद बोला, 'कहिए क्या है ?" जवही मालूम होता है कि इस सराय की हिफाजत महाराज की तरफ से तुम्हारे ही सुपुर्द है और वे फाटक पर रहने वाले सिपाही सब तुम्हारे ही आधीन है। जमादार-जी हो। जवहरी-तो पहरे का इन्तजाम क्या है? किस ढग से पहरा दिया जाता है? जमादार-मेरे पास बारह सिपाही है जिनके दीन हिस्से कर देता हूँ, चार-चारआदमीएक-एक दफे घूम कर पहरा देते हैं। जवहरी-एक साथ रह कर? जमादार-जी नहीं चारो अलग-अलग रहते है, घूमते समय थोडी-थोड़ी देर में मुलाकात हुआ करती है। जय-मगर ऐसा तो (कुछ रुक कर ) यो खडे बातें करना मुनासिब न होगा आओ कमरे में जरा वैठ जाओ हमें तुमसे कई जरूरी बातें करनी हैं। इतना कह कर जवहरी कमरे के अन्दर चला गया और उसके पीछे-पीछेजमादार भी यह कहता हुआ चला गया कि 'कुछदेर तक आपके पास ठहरने में हर्ज नहीं है मगर ज्यादे देर तक वह कमरा कुछ तो पहिले ही से दुरुस्त था और कुछ जवहरी साहब ने अपने सामान से उसे रौनक दे दिया था। फर्श के एक तरफ बड़ा सा ऊनी गालीचा विछा हुआ था उसी पर जाकर जेवहरी साहब बैठ गए और जमादार भी उन्हीं के पास मगर गालीचे के नीचे बैठ गया। बैठने के साथ ही जवहरी साहब ने जेब में से पाच अशर्फिया निकाली और जमादार की तरफ बढा के कहा अपने फायदे के लिए मैं तुम्हारा समय नष्ट कर रहा हूँ और करूँगा। अस्तु उसका हर्जाना पहिले ही दे देना उचित है। जमादार-नहीं-नहीं इसकी क्या जरूरत है इतने समय में मेस कोई हर्ज न होगा! जव-समय का व्यर्थ नष्ट होना ही हर्ज कहलाता है, मैं जिस तरह अपने समय की प्रतिष्ठा करता हूँ उस तरह दूसरे के समय की भी। जमा-हा ठीक है मगर मैं तो. --आपका जव-नहीं-नहीं इसे अवश्य लेना होगा। यो तो जमादार ऊपर के मन से चाहे जो कहे मगर अशर्फी देख कर उसके मुह में पानी भर आया। उसने सोचा कि यह जवहरी एक मामूली बात के लिए जब पाच अशर्फिया देता है तो अगर मै इसका करुगा तो बेशक बहुत बड़ी रकम मुझे देगा। ऐसा देने वाला तो आज तक मैने देखा ही नहीं अस्तु इस रकम को हाथ से न जाने देना चाहिए। जमा- अशर्फिया लेकर ) कहिए क्या आज्ञा होती है? जव-हा तो चार आदमी का पहरा वधा है? जमा-जी हा। जव-तो तुम्हें तो न घूमना पडता होगा? जमा-जी नहीं मै अपने ठिकाने उसी फाटक में बैठा रहता हूँ और बाकी के आठ आदमी भी मेरे पास ही सोए रहते है। जय पहरा बदलने का समय होता है तो घण्टे की आवाज से होशियार करके दूसरे चार को पहरे पर भेज देता हूँ और उन चारों को बुला कर आराम करने की आज्ञा देता हूँ। आप अपना मतलब तो कहिए । जव-मेरा मतलब केवल इतना ही है कि मैं आज चार दिन का जागा हुआ हूँ, सफर में आराम करने की नौबत नहीं आई मगर आज सब दिन की कसर मिटाना अर्थात अच्छी तरह सोना चाहता हूँ। जमा-तो आप आराम से सोइए कोई हर्ज नहीं। जव-मै क्योकर येफिीक साथ सो सकता हू ! मरे साथ बहुत बड़ी रकम है। (कमरे में रक्खे हुए सन्दूकों की तरफ इशारा करके) इस सभों में जवाहिरात की चीजें भरी हुई है। जब तक भरे मन माफिक इनकी हिफाजत का बन्दोबस्त न हो जायगा तब तक मुझ नींद ही नहीं आ सकती। जमा-आप इन्हें बहुत बड़ी हिफाजत के अन्दर समझिए क्योंकि इस सराय के अन्दर से कोई चोरी करके बाहर नहीं निकल सकता इसलिए कि फाटक बन्द करक ताली में अपने पास रखता हूँ और सिवाय फाटक के दूसरे किसी तरफ से किसी के निकल जाने का रास्ता ही नहीं है। 1 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ७८१