पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९

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बात की बात में रनबीरसिह किले के अन्दर पहुचाये गए और वेहोश वालेसिह अपने खेमें में पहुचा दिया गया। दोनों मालिकों के बेकाम हो जाने से लडाई बन्द हो गई और फौजें अपने अपने ठिकाने लौट गई। तेईसवां बयान बालेसिह के जख्म पर जर्राहों ने दवा लगा कर पट्टी बाधी मगर वह आठ पहर तक बहोश पडा रहा. इसके बाद होश में आया तरह तरह की बातें सोचने लगा। वह अपने दिल में बहुत शर्मिन्दा था कि केवल थोडे से सिपाहियों को साथ' लेकर रनवीरसिह ने उसे नीचा दिखाया और देखते देखते महारानी कुसुमकुमारी को बचा ले गया । यद्यपि उसके दिल ने कह दिया था कि अब रनबीरसिह के मुकाबले में तेरी जीत न होगी ओर तुझे हर तरह से नीचा देखकर यहाँ से लौट जाना पडेगा मगर वह अपने क्रोध को किसी तरफ दवा न सकता था और बहुत ही खिजलाया हुआ था।इस समय जब कि उसमें उठने की सामर्थ्य बिल्कुल न थी वह कर ही क्या सकता था ? हॉ चारो तरफ ध्यान दौडाने पर उसे कालिन्दी का खयाल आया जिस हिफाजत से रखने का लिये अपने आदमियों के सुपुर्द कर चुका था। उसने कालिन्दी को अपने सामने तलय किया और विना कुछ कहे या पूछे एक आदमी को हुक्म दिया कि इस औरत की नाक काट लो और छोड दो, जहाँ जी आवे चली जाय। इसके बाद बालेसिह क्या करेगा और अपना क्रोध किस पर निकालेगा सो जिक्रछोड कर हम इस जगह कालिन्दी का कुछ हाल लिखते है। कालिन्दी जिसे अपने रूप पर इतना घमण्ड था आज नकटी होकर कुरूपा स्त्रियों की पक्ति में बैठने योग्य हो गई। उसे बहुत लाज्जुब था कि बालेसिह ने मेरे साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया मगर वह इसका सबब कुछ पूछन सकी और उस समय जान बचा कर वहाँ से निकल जाना ही उसने उचित जाना। इस समय जब कि उसे नकटी करके बालेसिह ने निकाल दिया था रात लगभग दो घन्टे के जा चुकी थी। रोती और अपने किये पर अफसोस करती वह नमकहराम औरत नाम पर कपड़ा रक्ख वालेसिह के लश्कर से बाहर निकाली और सीधी पूरब की तरफ चल निकली। इस समय कोई उसका यार और मददगार न था बल्कि यों कहना चाहिये कि उसे खाने तक का ठिकाना न था क्योंकि वह अपने जेवर भी चोरदर्वाजे क पहरे वालों को रिश्वत में दे चुकी थी और अब केवल एक मानिक की अगूठी उसकी उगली में रह गई थी। वह केवल एक मामूली साडी पहिर हुए थी जो मर्दानी पोशाक बदलने के लिये कम्बख्त जसवन्त ने उसे दी थी और असल में वह जसवन्त की ही धोती थी। उदास और अपने किये पर पछताती हुई कालिन्दी को यकायक ख्याल आया कि और कोई तो महारानी के डर से मुझे अपने घर में घुसने न दगा मगर यहाँ से दो कांस की दूरी पर हरिहरपूर मौजे के जमींदार की लड़की जमुना मेरी सखी है और मुझे बहुत चाहती है शायद यह मेरी कुछ मदद कर सके तो ताज्जुब नहीं अस्तु इस उसी के पास चलना उचित है। कालिन्दी यही सोचती चली जा रही थी मगर हरिहरपुर का रास्ता उसे मालूम न था, वह बिल्कुल ही नहीं जानती थी कि मेरी मखी का घर किधर है ..र किस राह से जाना होगा हॉ इतना जानती थी कि एक नदी रास्ते में पडेगी । कालिन्दी के नाक से अभी तक खून जारी था और दर्द से उसका जी बेचैन हो रहा था। थोड़ी ही देर में एक नदी के किनारे पहुची और उस समय उसे मालूम हुआ कि उसके पीछे पीछे कोई आ रहा है। कालिन्दी ने धूम कर देखा तो दो आदमियों पर निगाह पडीरात अंधेरी थी और कालिन्दी मी घबडाई हुई थी इसलिये उन आदमियों की सूरत शक्ल के विषय में वह विशेष ध्यान न दे सकी बल्कि डर के मारे कॉपने लगी और खडी हो गई। उस समय व दोनों आदमी भी रुके और एक ने आगेबढ के कालिन्दी से कहा डरो मत मै खूब जानता हूं कि तुम्हारा नाम कालिन्दी है और तुम इस समय नदी के पार जाया चाहती हो मगर बिना डोंगी के तुम नदी के पार नहीं जा सकती हो। हम दोनों आदमी मल्लाह है. यहॉ से थोडी ही दूर पर हमारी डोंगी है उस पर सवार करा के तुमको नदी के पार उतार देंगे। इतना कह कर उसने अपने साथी की तरफ देखा और कहा जाओ डोंगी इसी जगह ले आओ।" कालिन्दी-(डरी हुई आवाज में) तुमन कैसे जाना कि मैं पार जाऊगी और विना मुझसे पूछे अपने साथी को डोगी लाने के लिए क्यों भेज दिया? मल्लाह-मुझे खूब मालूम है कि आप पार उतरेंगी और इस पार रहना आपके लिए अच्छा भी नहीं है। कालिन्दी ने इस बात का कुछ भी जवाब न दिया और चुपचाप खड़ी रहकर नदी की तरफ देखती रही। थोडी ही देर में वह दूसरा मल्लाह डॉगी को लिये हुए उसी जगह आ पहुचा । सोचती विचारती कालिन्दी उस डोंगी पर सवार हुई और आँचल से थोडा सा कपडा फाड कर पानी से तर करके अपनी नाक पर पट्टी बाँधी। एक मल्लाह खेने लगा और कुसुम कुमारी १०८७