पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९०

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041 के समय . जव-ठीक है मगर आखिर बहुत सवेरे फाटक खुलता ही होगा। कौन ठिकाना में कई दिनों का जागा व गहरी नींद | में सो जाऊ और मेरे आदमी भी मुझे येफिक्र दख खुर्राटे लेने लगें और दिन चढ तक आख ही न खुले तो ऐसी हालत में कोई चारी करेगा भी तो पात समय फाटक खुलने पर उसका निकल जाना कोई बडी यात न होगी। जमा-ठीक है, भगर में वादा करता हूँ कि सुबह में आपसे पूछ कर फाटक खोलूगा । जव हो सकता है परन्तु कदाचित चोरी हो ही जाय और चोर पकडा भी जाय तो मुझे राजा या किसी राजकर्मचारी के पास सबूत देन के लिए जाना पड़गा और एसा हाने से मेरा बहुत बड़ा हर्ज होगा ताज्जुब नहीं कि राजा साहब या राजकर्मचारी मुझे ठहरने की आज्ञा दे मगर में एक दिन भी नहीं रुक सकता इत्यादि यहुत सी बातों को साथ कर में चाहता हूँ कि चोरी होने का शक ही न रह और में आराम के साथ टाग फैला कर सोऊ और यह बात यदि तुम चाहो ता सहज ही में हो सकती है इसक बदले में मैं तुम्हें अच्छी तरह खुश कर दूंगा। जमा-कोई चिन्ता नहीं मैं अपने सिपाहियों को हुक्म दे दूंगा कि चार में से एक आदमी सिर्फ आपके दरवाजे पर और तीन आदमी तमाम सराय में घूम -घूम कर पहरा दिया करें। जक-बस-बस इतने ही से मै बेफिक्र हो जाऊगा। अपने सिपाहियों को यह भी ताकीद कर देना कि मरे सिपाहियों को सोने न दें । यद्यपि मै भी अपने आदमियों का जागने के लिए सख्त ताकीद कर दूंगा मगर वे कई दिन के जागे हुए है नीद आ जाय तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है। हा एक तर्फीब मुझ और मालूम है जो इससे भी सहज में हो सकती है अर्थात् तुम स्वय अकेले भी यदि यहा अपने सोने का बन्दायस्त रक्खोग तो तमाम रात यहाअमन-चमन बना रहेगा. पहरा बदलने जमा-में आपका मतलब समझ गया मगर नहीं ऐसा करने से मेरी बदनामी हो जायगी मुझे हरदम फाटक पर मोजूद रहना चाहिए क्योंकि रात भर में पचासो दफ लोग फाटक पर मेरे पास तरह-तरहकी फरियाद करने आया करते है। खैर आप इस वार मे चिन्ता न कीजिए मैं आपके माल असघाव की निगहबानी का पूरा इन्तजाम कर दूंगा अगर आपका कुछ नुकसान हो तो मेरा जिम्मा । कुछ और बातचीत करने के बाद जमादार अपने स्थान पर चला गया और थोड़ी देर बाद प्रतिज्ञानुसार उसने पहरे का बन्दावस्त भी कर दिया। पाठक यह सौदागरमहा हमारे उपन्यास का कोई नवीन पान नहीं है बल्कि बहुत प्राचीन पात्र तारासिह है जो नानक की चालचलन का पता लगा के चुनारगढ लौट जा रहा है। इसे इस बात का विश्वास हो गया है कि नानक मेरा पीछा करेगा और एयारी के कायदे को छय्यर पर रख के जहा तक हो सकैमा मुझे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा इसलिए वह इसढग से सफर कर रहा है।हकीकत में तारासिह का खयाल बहुत ठीक थानानक तारासिह को नुकसान पहुंचाने, बल्कि जान से मार डालने की कसम खा चुका था। केवल इतना ही नहीं बल्कि वह अपने बाप का तथा राजा बीरेन्दसिह का भी विपक्षी बन गया था क्योंकि अब उसे किसी तरफ से किसी तरह की उम्मीद नरही थी। अस्तु वह (नानक) भी अपने शागिदों को साथ लिए हुए तारासिह के पीछे-पीछेसफर कर रहा है और आज उसका भी डेरा इसी सराय में पडा है क्योंकि पहिले ही से पता लगाए रहने के कारण वह तारासिह की पूरी खबर रखता है और जानता है कि ताससिह सौदागर बन कर इसी सराय में उतरा हुआ है। नानक यद्यपि तारासिह को फसाने का उद्योग कर रहा है मगर उसे इस बात की खबर कुछ भी नहीं है कि तारासिह भी मेरी तरफ से गाफिल नहीं है और उसे मेरारती-रत्ती हाल मालूम है । अस्तु देखना चाहिए अब किसकी चालाकी कहा तक चलती है। रात आधी से ज्याद हो चुकी है। सराय के अन्दर बिल्कुल सन्नाटा तो नहीं है मगर पहरा देने वालों के अतिरिक्त बहुत कम आदमी ऐस है जिन्हे अपनी काठरी के बाहर की खबर हो। सराय का बड़ा फाटक बन्द है। पहरे के सिपाहियों में से. एक तो तारासिह (सौदागर) के दरवाजे पर टहल रहा है और बाकी के तीन घूम-घूम कर इस बहुत बड़ी सराय के अन्दर पहरा दे रहे है । तारासिह के साथ-साथ दो आदमी ता इसके शागिंद है और दो नौकर ऐसे भी हैं जिन्हें तारासिह ने रास्ते में ही तनख्वाह मुकर्रर करके रख लिया था मगर ये दोनो नौकर तारसिह के सच्चे हाल को कुछ भी नहीं जानते इन्हें कवल इतना ही मालूम है कि तारासिह एक अमीर सौदागर है। इस समय ये दोनों नौकर कमरे के बाहर दालान में पडे। खर्राटे लेरह हैं और तारामिह तथा उसके शागिर्द कमरे के अन्दर बैठे आपुस में कुछ बातचीत कर रहे हैं। कमरे का दर्वाजा मिडकाया हुआ है। तारासिंह का एक शागिर्द कमरे के बाहर निकला और उसने चारो तरफ निगाह दौड के बाद पहरे वाले सिपाहीसे कहा तुम्हें सौदागर साहब बुला रहे है जाओ सुन आओ, तब तक तुम्हारे बदले में पहरा देता हू। अन्दर जाकर दर्वाजा भिडका देना खुला मत रखना। देवकीनन्दन खत्री समग्र ७८२