पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९१

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cert हुक्म पाते ही लालची सिपाही जिसे विश्वास था कि हमारे जमादार को कुछ मिल चुका है और मुझे अवश्य मिलेगा कमरे के अन्दर घुस गया और बहुत देर तक तारासिह का शागिर्द इधर-उघरटहलता रहा। इसी बीच में उसने देखा कि एक आदमी कई दफ इस तरफ आया मगर किसी को टहलते देख कर लौट गया। बहुत देर के बाद कमरे से दो आदमी बाहर निकले एक तोतारासिह का दूसरा शार्गिद और दूसरा स्वयम् सौदागर भेषधारी तारासिह। तारासिह के हाथ में सिपाही का ओढना मौजूद था जिसे अपने शागिर्द को जो पहरा दे रहा था दकर उसने कहा इसे ओढ कर तुम एक किनारे सो जाओ अगर कोई तुम्हारे पास आकर येहाशी की दवा भी सुघावे तो बेखटके सूघ लेना और मुझको अपने से दूर न समझना । तारासिह के शागिर्द ने ओढना ले लिया और कहा- 'जब से मै टहल रहा हू तब से दो तीन दफे दुश्मन आया मगर मुझे होशियार देख कर लौट गया। तारा-हां काम में कुछ देर तो जरूर हो गई है। मै उस सिपाही को बेहोश करके अपनी जगह सुला आया हूँ और चिराग गुल कर आया हूँ। (हाथ से इशारा करके) अब तुम इस खम्भे के पास लेट जाओ (दूसरे शागिर्द से) और तुम उस दर्वाजे के पास लेटो मै भी किसी ठिकाने छिप कर तमाशा देखूगा। तारासिह की आज्ञानुसार उसके दोनों शागिर्द बताए हुए ठिकाने पर जाकर लेट गए और ताससिह अपने दर्वाजे से कुछ दूर जाकर एक दूसरे मुसाफिर की कोठरी के आगे लेट रहा मगर इस ढग से कि अपने तरफ की सब कार्रवाई अच्छी तरह देख सके। - आधे घण्टे के बाद तारासिह ने देखा कि दो आदमी उसके दरवाजे पर आकर खडे हो गए है जिनकी सूरत अधेरे के सबब दिखाई नहीं देती और यह भी नहीं जान पडता कि वे दोनों अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए हैं या नहीं। कुछ अटक कर उन दोनों आदमियों ने तारासिह के आदमियों को देखा भाला, इसके बाद एक आदमी कमरे का दर्वाजा खोल कर अन्दर घुस गया और आधी घडी के बाद जब वह कमरे के बाहर निकला तो उसकी पीठ पर एक बड़ी सी गठरी भी दिखाई पडी। गठरी पीठ पर लादे हुए अपने साथी को लेकर वह आदमी सराय के दूसरे भाग की तरफ चला गया। जब वह दूर निकल गया तो तारासिह अपने दरवाजे पर आया और शागिर्दो को चैतन्य पान पर समझ गया कि दुश्मन ने उसके आदमी को बेहोशी की दवा नहीं सुघाई थी। तारासिह के दोनों शागिर्द उठे मगरतारासिह उन्हें उसी तरह लेटे रहने की आज्ञा देकर अपने कमरे के अन्दर चला गया और भीतर से दर्वाजा बन्द कर लिया। रोशनी करने क बाद तारासिह ने देखा कि दुश्मन ने उसकी कोई चीज नहीं चुराई है, वह केवल उस सिपाही को उठा कर ले गया है जिसे तारासिह अपनी सूरत का सौदागर बना कर अपनी जगह लिटा गया था। तारासिह अपनी कार्रवाई पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने कमरे के बाहर निकल कर अपने शागिर्दो को उठाया और कहा हमारा मतलय सिद्ध हो गया अब इसमें कोई सदेह नहीं कि कम्बख्त नानक अपनी मुराद पूरी हो गई समझ के इत्ती समय सराय का फाटक खुलवा कर निकल जायगा और मै भी ऐसा ही चाहता हूँ। अस्तु अव उचित है कि तुम दोनों में से एक आदमी ता यहा पहरा द और एक आदमी सराय के फाटक की तरफ जाय और छिप कर मालूम करे कि नानक कब सराय के बाहर निकलता है। जिस समय वह सराय के बाहर हो उसी समय मुझे इत्तला मिले। इतना कहकर तारासिह कमरे के अन्दर चला गया और भीतर से दर्वाजा बन्द कर लेने के बाद कमरे की छत पर चढ गया इसलिए कि वह कमरे के ऊपर से अपने मतलब की बात बहुत कुछ देख सकता था। इस समय नानक की खुशी का कोई ठिकाना ना था। वह समझे हुए था कि हमने तारासिह को गिरफ्तार कर लिया, अस्तु जहा तक जल्द हो सके सराय के बाहर निकल जाना चाहिए। इसी खयाल से उसने अपना डेरा कूच कर दिया और सराय के फाटक पर आकर जमादार को बहुत कुछ कह सुन के यादे दिला के दर्वाजा खुलवाया और बाहर हो गया। तारासिह को जब मालूम हुआ कि नानक सराय के बाहर निकल गया तब उसने अपने यहा चोरी हो जाने की खबर नशहूर करने के बन्दोबस्त किया। उसके पास जो सन्दूक थे, जिनमें कीमती माल होने का लोगों या जमादार को गुमात था उनका ताला तोड़ कर खोल दिया क्योंकि वास्तव में सन्दूक बिल्कुल खाली केवल दिखाने के लिए थे। इसके बाद अपने नौकरों को होशियार किया और खूब रोशनी कर के चोर चोर' का हल्ला मचाया और जाहिर किया कि हमारी लाखों रुपये की चीज (जवाहिरात ) चोरी हो गई। चोरी की खबर सुन वेचारा जमादार दौडा हुआ तारासिह के पास आया जिसे देखते ही तारासिह ने रोनी सूरत बना कर कहा, 'देखो जमादार मैं पहिले ही कहता था कि मेरे असबाब की खूब हिफाजत होनी चाहिए ! आखिर मेरे यहा चोरी हो ही गयी ।मालूम होता है कि तुम्हारे सिपाही ने मिल कर चोरी करवा दी क्योंकि तुम्हारा सिपाही दिखाई नहीं देता । कहो अब हम अपने लाखों रुपये के माल का दावा किस पर करें ! चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ७८३