पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९३

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सौदागर (तारासिह) चला जायगा यह जान कर जमादार अपने दिल में बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि इनके रहने से उसे अपना कसूर प्रकट हो जाने का डर भी था। जमादार से और भी कुछ बातें करने के याद तारासिह अपने दोनों शागिर्दो को एकान्त में ले गया और हर तरह की बातें समझाने के बाद यह भी कहा तुम लोग मेरे चले जाने के बाद किसी तरह घबडाना नहीं और मुझे हर वक्त अपने पास मौजूद समझना। इन सब बातों से छुट्टी पाकर तारासिह अकेले ही वहा से रवाना हो गया। तीसरा बयान तारासिह के चले जाने के बाद सराय में चोरी की खबर घडी तेजी के साय फैल गई। जितने मुसाफिर उसमें उतरे हुए थे सब रोके गये। राजदीवान को भी खयर हो गई वह भी बहुत से सिपाहियों को साथ लेकर सराय में आकर मौजूद हुआ। खूब हो हल्ला मचा, चारो तरफ'तलाशीऔरतहकीका की कार्रवाई होने लगी, मगर सभों को निश्चय इसी बात का था कि चार सिवाय उसके और कोई नहीं है जो रात रहते ही फाटक खुलवा कर सराय के बाहर निकल गया है। पहरे वाल सिपाही के गायब हो जाने से और भी परशानी हो रही थी। चोर की गिरफ्तारी में कई सिपाही तो जा ही चुके थे मगर दीवान साहब के हुक्म से और भी बहुत से सिपाही भेजे गये, आखिर नतीजा यह निकला कि दोपहर के पहिले ही हजरत नानकपरसाद गिरफ्तार हो कर सराय के अन्दर आ पहुँचे जो अपने खयाल में तारासिह को गिरफ्तार कर ले गये थे और अभी तक सौदागर का चेहरा धो कर देखने भी न पाये थे मगर उन कृपानिधान को ताज्जुब था तो इस बात का कि वे चोरी के कसूर में गिरफ्तार किए गये थे। अभी तक दीवान साहय सराय क अन्दर मौजूद थे। नानक के आते ही चारों तरफ से मुसाफिरों की भीड आ जुटी और हर तरफ से नानक पर गलियों की बौछार होने लगी। जिस कमरे म तारासिह उतरा हुआ था उसी के आगे वाले दालान में सुन्दर फर्श के ऊपर दीवान साहब विराज रहे थे और उनके पास ही तारासिह के दोनों शागिर्द भी अपनी असली सूरत में बैठे हुए थे। सामने आते ही दीवान साहब ने क्रोध भरी आवाज में नानक से कहा, "क्यों ये तेरा इतना बड़ा हौसला हो गया कि तू हमारी सराय में आकर इतनी बड़ी चोरी करे !! नानक-(अपने को बेतहर फसा हुआ देख हाथ जोडके) मुझ पर चोरी का इलजाम किसी तरह नहीं लग सकता, मुझ यह मालूम होना चाहिये कि यहा किसकी चोरी हुई हैं और मुझ पर चोरी का इलजाम कौन लगा रहा है ? दीवान-(तारासिह के दोनो शागिर्द की तरफ इशारा करके) इनका माल चोरी हो गया है और यहा के सभी आदमी तुझे चोर कहते है। नानक-झूठ बिल्कुल झूठ। तारासिह का एक शागिर्द (दीवान से ) यदि हर्ज न हो तो पहिले इसका चेहरा धुलवा दिया जाय। दीदान-क्या तुम्हें कुछ दूसरे ढग का भी शक है ? अच्छा (जमादार से ) पानी मगा कर इस चोर का चेहरा धुलवाओ। जमादार-जो हुक्म। नानक चेहरा धुलवा के क्या कीजिएगा? हम ऐयारों की सूरत हरदम बदली ही रहती है खास कर सफर में। दीवान-तू ऐयार है । ऐयार लोग भी कहीं चोरी करते है ? नानक जी मै कह चुका हूँ कि चोरी का इलजाम मुझ पर नहीं लग सकता। तारा का एक शागिर्द-चारी तो अच्छी तरह सापित हो जायगी जरा अपने माल असबाब की तलाशी तो होने दो। (दीवान से) लीजिए पानी भी आ गया अब इसका, चहरा धुलवाइये। जमादार--(पानी की गगरी नानक के सामने धर के) लो अब पहिले अपना चेहरा साफ कर डालो। नानक मैं अभी अपना चेहरा साफ कर डालता हूँ, चेहरा धोने में मुझे कोई उज़ नहीं है क्योंकि में पहिले ही कह चुका हूं कि ऐयारों की सूरत प्राय बदली रहती है और मैं भी एक ऐयार हूँ। इतना कह कर नानक ने अपना चेहरा साफ कर डाला और दीवान साहब से कहा, 'कहिए अब क्या हुक्म होता है?' दीवान-अब तुम्हारी तलाशी ली जायगी। नानक-तलाशी देने में भी मुझे कुछ उज़ न होगा मगर मुझे पहिल उन चीजों की फिहरिश्त मिल जानी चाहिए जो चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ७८५