पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

द रहा था। बेशक चोरी करने के लिए ही इस सिपाही को इसने गिरफ्तार किया होगा। अव इसका मुकदमा थोडी देर में निपटने वाला नहीं है और इस समय बहुत देर भी हो गई है अस्तु तुम इसे और इसके साथियों को कैदखाने में भेज दो तथा इसका माल असबाब इसी सराय की किसी कोठरी में बन्द करके ताली मुझे दे दो और सराय के सब मुसाफिरों को छोड दो। (तारासिह के शागिर्द की तरफ देख के) क्यों साहब अब मुसाफिरों को रोकने की तो काई जरूरत नहीं है ! तारासिह का शाo-बेशक बेचारे मुसाफिरों का छोड देना चाहिए क्योंकि उनका कोई कसूर नहीं। मेरा माल इसी ने चुराया है। अगर इसके असबाब में से कुछ भी न निकलेगा तो भी हम यही समझेंगे कि सराय से बाहर दूर जाकर इसने किसी ठिकाने चोरी का माल गाड दिया है। दीवान-वशक ऐसा ही है । (जमादार से ) अच्छा जो कुछ हुक्म दिया गया है उसे जल्द पूरा करो। जमादार-जो आज्ञा । वात की बात में वह सराय मुसाफिरों से खाली हो गई। नानक हवालात में भेज दिया गया और उसका असबाब एक कोठरी में रख कर ताली दीवान साहब को दे दी गई। उस समय तारासिह के दोनों शागिर्दो ने दीवान साहब से कहा- शैतान का मामला दो एक दिन में निपटता नजर नहीं आता इसलिए हम लोग भी चाहते हैं कि यहाँ स जाकर अपने मालिक को इस मामले की खबर दें और उन्हें भी सर्कार के पास ले आवें अगर ऐसा न करेंगे तो मालिक की तरफ से हम लोगों पर बड़ा दोष लगाया जायगा। यदि आप चाहें तो जमानत में हमारा माल असबाब रख सकते है। दीवान-तुम्हारा कहना बहुत ठीक है। हम खुशी से इजाजत देते हैं कि तुम लोग जाआ और अपने मालिक को ले आओ जमानत में तुम लोगों का माल असवाव रखना हम मुनासिब नहीं समझते इसे तुम लोग ले आओ। तारासिह के दोनों शा०-(दीवान साहब को सलाम करके) अपने बडी कृपा की जो हम लोगों को जाने की आज्ञा दे दी हम लोग बहुत जल्द अपने मालिक को लेकर हाजिर होंगे। तारासिह के दोनों शागिर्दो ने भी डेरा कूच कर दिया और बेचारे नानक को खटाई में डाल गए। देखा चाहिए अब उस पर क्या गुजरती है। वह भी इन लोगों से बदला लिए बिना रहता नजर नहीं आता। चौथा बयान भैरोसिह के चले जाने के बाद दर्वाजा बन्द हो जाने से दोनों कुमारों को ताज्जुब ही नहीं हुआ बल्कि उन्हें भैरोसिह की तरफ से एक प्रकार की फिक्र लग गई। आनन्दसिह ने अपने बड़े भाई की तरफ देख कर कहा अब इस रात के समय भैरासिह के लिए हम लोग क्या कर सकते हैं? इन्द्रजीत-कुछ भी नहीं। मगर भैरोसिंह के हाथ में तिलिस्मी खजर है वह यकायक किसी के कब्जे में न आ सकेगा। आनन्द-पहिले भी तो उनके पास तिलिस्मी खजर था बल्कि ऐयारी का बटुआ भी मौजुद था तब उन्होंने क्या कर लिया था? इन्द्रजीत-सोतो ठीक कहते हो तिलिस्म के अन्दर हर तरह से बचे रहना मामूली काम नहीं है मगर रात के समय अब हो ही क्या सकता है। आनन्द-मेरी राय है कि तिलिस्मी खजर से इस छोटे से दरवाजे को काटने का उद्योग किया जाय शायद इन्द्रजीत-अच्छी बात है कोशिश करो। आनन्दसिह से तिलिस्मी खजर का वार उस छोटे से दरवाजे पर किया मगर कोई नतीजा न निकला आखिर दोनों भाई लाचार होकर वहाँ से हटे और किसी दालान में एक किनारे बैठ कर बातचीत में रात बिताने का उद्योग करने लगे। रात के साथ ही साथ दोनों कुमारों की उदासी भी कुछ कुछ जाती रही और फूलों की महक से बसी हुई सुबह की ठण्डी हवा ने उद्योग और उत्साह का सचार किया। दोनों के पराधीन और चुटीले दिलों में किसी की याद ने गुदगुदी पैदा कर दी और बारह पर्दे के अन्दर से भी खुशबू फैलाने वाली मगर कुछ दिनों तक नाउम्मीदी के पाले स गन्धहीन हो गई कलियों पर आशारुपी वायु के झपेटे से बहक कर आए हुए श्रृगार रुपी भ्रमर इस समय पुन गुजार करने लग गये। क्या आज दिन भर की मेहनत से भी अपने प्रेमी का पत्ता न लगा सकेंगे? क्या आज दिन भर के उद्योग की सहायता से भी इस छोटी सीमगरअनूठी रंगशाला के नेपथ्य में से किसी को खोज निकालने में सफल मनोरथ न होंगे? क्या चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ७८७