पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९७

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भी दोनों कुमारों को पहिचान कर प्रणाम किया और कहा, 'मैं किसी दुश्मन का होना अनुमान करके भागा था, मगर जब आवाज सुनी तो पहिचान कर रुक गया । मै कल से आप दोनों भाईयों को खोज रहा हूँमगर पता ग लगा सका क्योंकि तिलिस्मी कारखाने में बिना बूझे दखल देना उचित न जान कर अपनी बुद्धिमानी या जबर्दस्ती से किसी दर्वाजे को खोल न सका और इसलिए बाग में भी पहुंचने की नौबत न आई। कहिए आप लोग कुशल से तो हैं । इन्द-हॉ हम लोग बहुत अच्छी तरह है तुम बताओ कि यहाँ कब कैसे क्यों और किस तरह से आए नानक-कमलिनीजी से मिलने के लिए घर से निकला था मगर जब मालूम हुआ कि वे राजा गोपालसिंह के साथ जमानिया गई तब मैं राजा गोपालसिह के पास आया और उन्हीं की आज्ञानुसार यहाँ आपके पास आया हूँ| इन्द्र-किनकी आज्ञानुसार ? राजा गोपालसिह की या कमलिनी की ? नानक कमलिनी की आज्ञानुसार। नानक की बात सुन कर आनन्दसिह ने एक भेद की निगाह इन्द्रजीतसिह पर डाली और इन्द्रजीतसिह ने कुछ मुस्कुराहट के साथ आनन्दसिह की तरफ देख कर कहा- 'बाग की तरफ जो दर्वाजे पड़ते हैं उन्हें खोल दो चाँदनो हो जाय। आनन्दसिह ने दर्वाजे खोल दिए और फिर नानक के पास आकर पूछा, हॉ तो कमलिनीजी की आज्ञानुसार तुम यहाँ आए? नानक-जी हॉ। आनन्द-कमलिनी को कहाँ छोडा? नानक-राजा गोणलसिह के तिलिस्मी बाग में। इन्द्र-वह अच्छी तरह से तो है न? नानक-जी हॉ बहुत अच्छी तरह से है। आनन्द-घोर्ड पर से गिरने के कारण उनकी टागे जो टूट गई थी वह अच्छी हुई ? नानक-यह खबर आपको कैसे मालूम हुई? आनन्द-अजी वाह मेरे सामने ही तो घोडे पर से गिरी थीं भैरोसिह ने उनका इलाज किया था अच्छी हो गई थी मगर कुछ दर्द बाकी था जब मैं इधर चला आया। नानक-जी हाँ अब तो वह बहुत अच्छी हैं। आनन्द-(हस कर ) अच्छा यह तो बताओ कि तुम किस रास्ते से यहा आए हो? नानक-उसी बुर्ज वाले रास्ते से आया हूँ। आनन्द-मुझे अपने साथ ले चलकर' वह रास्ता बता तो दो। नानक बहुत अच्छा चलिए मै बता देता हूँ, मगर मुझसे कमलिनीजी ने कहा था कि जब तुम बाग में जाओगे तो लौटन का रास्ता बन्द हो जाएगा। आनन्द-यह तो उन्होंने ठीक ही कहा था। हम दोनों भाइयां को भी उन्होंने यह कहला भेजा था कि मै नानक को तुम्हारे पास भेजूंगी तुम उसकी जुबानी सब हाल सुन कर हिफाजत के साथ उसे तिलिस, के बाहर कर देना । नानक-(कुछ शर्माना सा होकर) जी ईईई, आप तो दिल्लगी करते हैं, मालूम होता है आपको मुझ पर कुछ शक है और आप समझते है कि मैं आपके दुश्मन का ऐयार हूँ और नानक की सूरत बन आया हूँ, अस्तु आप जिस तरह चाहें मेरी आजमाइश कर सकते है ! इतने ही में एक तरफ से आवाज आई 'जब तुम कमलिनीजी के भेजे हुए आए हो तो आजमाइश करने की जरुरत ही क्या है ? थोड़ी देर में कमलिनी का सामना आप ही हो जाएगा ! इस आवाज ने दोनों कुमारों को तो कम मगर नानक को इद से ज्यादे परेशान कर दिया। उसके चेहरे पर हवाई सी उड़ने लगी और वह घबड़ा कर पीछे की तरफ देखने लगा। इस कोठरी में से दूसरी कोठरी में जाने के लिए जो दर्वाजा था वह इस समय मामूली तौर पर बन्द था इसलिए किसी गैर पर उसकी निगाह न पड़ी अतएव उस दर्वाजे को खोल कर नानक अगली कोठरी में चला गया मगर साथ ही आनन्दसिह ने भी वहाँ पहुँच कर उसकी कलाई पकड ली और कहा वस इतने ही में घबड़ा गए । इसी हौसले पर तिलिस्म के अन्दर आए थे । आओ-आओ हम तुम्हें बाग में ले चलते हैं जहाँ निश्चिन्ती से बैठ कर अच्छी तरह बातें कर सकेंगे। इसी समय दो दर्वाजे खुले और स्याह लबादा ओढ़े हुए चार-पाचआदमी उसके अन्दर से निकलाआयेजो नानक को जबर्दस्ती घसीट कर ले गए. साथ ही वे दर्वाजे भी उसी तरह बन्द हो गए जैसे पहिले थे। दोनों कुमारों ने भी कुछ सोच चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १ ७८९