पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७९९

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दि दानों कुमार ताज्जुब के साथ उस तरफ देखने लगे जिधर से आवाज आई थी। उसी समय एक बुढिया उसी तरफ से कमरे के अन्दर आती दिखाई पडी और वहदारोगा के पास आकर फिर बोली, मै बडी ही बदकिस्मत थी जो तुम्हारे साथ ब्याही गई। मैंने जो कहा तुमने कुछ सुना या नहीं? दारोगा-(क्रोध से ) आ गई शैतान की नानी ! दोनों कुमारों ने दखते ही उस बुढिया को पहिचान लिया कि वही बुढिया है जो गैरोसिह की जोरु उस समय बनी हुई थी जव भैरोसिह पागल भया हुआ इसी बाग में हम लोगों को दिखाई दिया था। इन्द्रजीतसिह ने ताज्जुब और दिल्लगी की निगाह से उस बुढिया की तरफ देखा और कहा ' अभी कल की बात है कि तू भैरोसिह पागल की जोरु बनी हुई थी और आज इस दारोगा को अपना मालिक बता रही है। पाँचवाँ बयान कुँअर इन्द्रजीतसिह की बात सुन कर वह बुढिया चमक उठी और नाक भौं चढा कर बोली बुडढी औरतों से दिल्लगी करते तुम्हें शर्म नहीं मालूम होती। इन्द्र-क्या मै झूठ कहता हूँ? बुटिया-इससे बढ़ कर झूठ और क्या हो सकता है ? लोग किसी के पीछे झूठ बोलते है मगर आप मुंह पर झूठ बोल के अपने को सच्या बनाने का उद्योग करते है भला इस तिलिस्म में दूसरा आ ही कौन सकता है ? और वह भैरोसिह कौन है जिसका नाम आपने लिया? इन्द्रजीत-बस-बस मालूम हो गया। मैं अपने को तुम्हारी जुबान से बुड्ढा-(इन्द्रजीतसिह को रोक कर ) अजी आप किससे बातें कर रहे हैं? यह तो पागल है। इसकी बातों पर ध्यान देना आप ऐसे बुद्धिमानों का काम नहीं है। (युढिया से) तुझे यहॉ किसने बुलाया जो चली आई ? तेरे ही दुख से तो भाग कर मैं यहा एकान्त में आ बैठा हूँ, मगरतू ऐसी शैतान की नानी है कि यहाँ भी आए बिना नहीं रहती। सवेरा हुआ नहीं और खान की रट लग गई । बुरुटी अजी तो क्या तुम कुछ खाओ पीओगे नहीं? गुदा-जब मेरी इच्छा होगी तब खा लूँगा तुम्हें इससे मतलब? (दोनों कुमारों से) आप इस कम्बख्त का ख्याल छोडिए और मेरे साथ चले आइए। मैं आपको ऐसी जगह ले चलता है, जहाँ इसकी आत्मा भी न जा सके। उसी जगह हम लोग बात-चीतकरेंगे फिर आप जैसा मुनासिब समझिएगा आज्ञा दीजिएगा। यह बात उस बुड्ढे ने ऐसे ढग से कही और इस तरह पलटा खा कर चल पड़ा कि दोनों कुमारों को उसकी बातों का जबाव देने या उस पर शक करने का मौका न मिला और वे दोनों भी उसके पीछे-पीछे रवाना हो गए। उस कमरे के बगल ही में एक कोठरी थी और उस कोठरी में ऊपर छत पर जाने के लिए सीढियों बनी हुई थी। वह बुडढा दोनों कुमारों को साथ-साथलिए हुए उस कोठरी में और वहाँ से सीदियों की राह चढ कर उसके ऊपर वाली छत पर ले गया। उस मजिल में छोटी-छोटी कई कोठरियों और कमरे थे। युडढे के कहे मुताबिक दोनों कुमारों ने एक कमरे की जालीदार खिडकी में से झॉक कर देखा तो इस इमारत के पिछले हिस्से में एक और छोटा सा बाग दिखाई दिया जो बनिस्बत इस बाम के जिसमें कुमार एक दिन और रात रह चुके थे ज्यादे खूबसूरत और सरसब्ज नजर आता था। उसमें फूलों के पेड बहुतायत से थे और पानी का एक छोटा सा साफ झरना भी बह रहा था जो इस मकान की दीवार से दूर और उस याग के पिछले हिस्से की दीवार के पास था और उसी चश्मे के किनारे पर कई औरतों को भी बैठे हुए दोनों कुमारों ने देखा। पहिले तो कुँअर इन्दजीतसिह और आनन्दसिह को यही गुमान हुआ कि ये औरतें किशोरी और कामिनी और कमलिनी इत्यादि होंगी मगर जब उनकी सूरत पर गौर किया तो दूसरी ही औरतें मालूम हुई जिन्हें आज के पहिले दोनों कुमारों ने कभी नहीं देखा था। इन्द्रजीत-(बुडढे से) क्या ये वे ही औरते है जिनका जिक तुमने किया था और जिनमें से एक औरत का नामतुभने कमलिनी बताया था? बुड्ढा जी नहीं उनकी तो मुझे भी खबर नहीं कि वै कहाँ गई और क्या हुई। आनन्द-फिर ये सब कौन है? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ७९१