पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०

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दूसरा चुपचाप बैठ गया। यद्यपि कालिन्दी दोनों मल्लाहों से डरी हुई थी परन्तु उसे आशा थी कि दोनों मल्लाह उसे नदी के पार पहुचा देंगे, लेकिन ऐसा न हुआ, क्योंकि जब डॉगी नदी के बीचोबीच में पहुची तो मल्लाहों ने खेवा माँगा। कालिन्दी-मेरे पास तो कुछ भी नहीं है खेवा कहाँ से हूँ। मल्लाह-(डांगी को बहाव की तरफ ले जाकर) खेवे ही की लालच से तो तुम्हें पार उतारत हे जब तक खवा न ले लेंगे पार न जायगे। कालिन्दी-तो डोंगी बहाव की तरफ क्यों लिये जाते हो? मल्लाह-खेवा वसूल करने की नीयत से? कालिन्दी-जय मेरे पास कुछ हई नहीं है तो खेवा कहाँ से देंगे? मल्लाह-कोई जेवर हो तो दे दो। कालिन्दी-जेवर भी नहीं है। मल्लाह--जेवर भी नहीं है तो चुपचाप बैठी रहो, जहाँ हमारा जी चाहेगा तुम्हें ले जायगे और जिस तरह हो सकेगा खेवा वसूल करेंगे। मल्लाह की आखिरी बात सुनते ही कालिन्दी सुस्त हो गई और डर के मारे कॉपने लगी। उसे निश्चय हो गया कि ये लोग बदमाश है और मुझे तग करेंगे। जैसे जैसे डोंगी बहाव की तरफ तेजी के साथ जा रही थी कालिन्दी के कलेजे की धड़कन ज्यादे होती जाती थी। आखिर बहुत मुश्किल से अपने को सम्हाला और वह मानिक की अगूठी जो उसकी बची बचाई पूजी थी और इस समय उसकी उगली में थी उतार कर एक मल्लाह की तरफ बढाती हुई योली, अच्छा यह एक . अगूठी मेरे पास है. इसे ले लो और मुझे बहुत जल्द पार उतार दो। इसके जवाब में मल्लाह (जो चुपचाप बैठा हुआ था) 'बहुत अच्छा ' कहके उठा और अगूठी अपने हाथ में लेकर कालिन्दी के सामने खडा हो गया। कालिन्दी-अब खडे क्यो हो ? किश्ती पार ले चलो ! मल्लाह-अब केवल इसलिये खडे है कि तुझ कम्बख्त को अपना परिचय दे दें। कालिन्दी-(धवडा कर) परिचय कैसा? मल्लाह ने एक चोर लालटेन जिसे अपने बगल में छिपाये हुए था निकाली और उसके मुह पर से ढकना हटाके उसकी रोशनी अपने चेहरे पर डाली। उसका चेहरा देखते ही कालिन्दी चिल्ला कर उठ खडी हुई और घबडा कर पीछे हटती हटती बेहोश होकर गिर पड़ी। चौबीसा बयान आज फिर रनवीरसिह को जख्मी होकर चारपाई का सहारा लेना पड़ा और आज बेचारी कुसुमकुमारी के लिए पुन वही मुसीवत की घडी आ पहुची जो थोडे ही दिन पहिले रनवीरसिह के जख्मी होने की बदौलत आ चुकी थी। पहिले तो कम्बख्त और नमकहराम जसवन्त ने फरेब देकर इन्हें जख्मी किया था आज बालेसिह के हाथ से जख्मी होकर तकलीफ उठा रहे है मगर इस जख्म की इन्हें परवाह नहीं बल्कि एक प्रकार की खुशी है क्योंकि चोट खाने के साथ ही अपने दुश्मन से बदला ले चुके थे और उसे सदैव के लिये बेकार कर चुके थे। जिस कमरे में पहिले मुसीबत के दिन काटे थे आज य उस कमरे में नहीं है, बल्कि आज उस कमरे में चारपाई के ऊपर पड़े हैं जिसमें अपने जीवन वृत्तान्त की तस्वीरें देख कर ताज्जुब में आये थे। एक सुन्दर और नर्म विछावन वाली चारपाई पर रनबीरसिह पड़े हुए है सिर्हाने की तरफ येचारी कुसुम थेठी है, सामने की तरफ चारपाई पर बहादुर वीरसेन पड़ा हुआ है बीच में दीवान सुमेरसिह जो इन तीनों को अपने ही बच्चों के बराबर समझते थे बैठे बाते कर रहे है और थोड़ी ही दूर पर पाँच सात कमसिन और खूबसूरत लौडियों हाथ याँधे खडी है। इस समय दीवान साहब थे क्योंकि इसके पहिले के बखेडे में जो किले के अन्दर हुआ था जख्मी हो चुके थे, तथापि इस योग्य थे कि बैठ कर इन लोगों से बातचीत कर सकते। रात लगभग पहरभर के जा चुकी है। उस चित्रवाले विचित्र कमरे में रोशनी बखूबी हो रही है जिसकी दीवार पर की तस्वीरें चारपाई पर लेटे रहने की अवस्था में भी रनवीरसिह बखूबी देख सकते है। इस समय जिस तस्वीर पर अपनी निगाहें दौडा रहे थे उसके देखने से रनवीरसिह के चेहरे पर कुछ खुशी सी झलक रही थी। थोडी देर तक सन्नाटा रहा . देवकीनन्दन खत्री समग्र १०८८