पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८००

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Wh बुड्ढा-इन सभों के बारे में इससे ज्यादे और मै कुछ नहीं जानता कि य सब राजा गोपालसिह की रिश्तेदार है और किसी खास सबब से राजा गापालसिह ने इन लोगों को यहा रख छोडा है। इन्द्रजीत-ये सब यहाँ कब से रहती हैं। पुड्दा-सात वर्ष से। इन्द्रजीत-इनकी खबरगीरी कौन करता है और खान पाने तथा कपडे लत्ते का इन्तजाम क्योंकर होता है ? बुडढा-इसकी मुझे भी खबर नहीं। यदि में इन सभों स कुछ वात-चीतकरता या इनक पास जाता तो कदाचित् कुछ मालूम हो जाता मगर राजा साहब ने मुझे सख्त ताकीद कर दी है कि इन सभों से कुछ बातचीत न करूं बल्कि इनके पास भी न जाऊँ। इन्द्रजीत-खैर यह बताओ कि हम लाग इनके पास जा सकता है या नहीं? बुड्ढा-इन सभों के पास जाना न जाना आपकी इच्छा पर है मैं किसी तरह की रुकावट नहीं डाल सकता और न कुछ राय ही द सकता हूँ। इन्द्रजीत-अच्छा इस बाग में जाने का रास्ता तो यता सकत हा? बुड्ढा-हाँ मै खुशी से आपको रास्ता बता सकता हूँ मगर स्वय आपके साथ वहाँ तक नहीं जा सकता इसक अतिरिक्त यह कह देना भी उचित जान पड़ता है कि यहाँ से उस याग में जाने का रास्ता बहुत पचोदा और खराब है इसलिए वहाँ जाने में कम से कम एक पहर तो जरूर लगेगा। इसस यही बेहतर होगा कि यदि आप उस बाग में या उन सों के पास जाना चाहते है तो कमन्द लगा कर इस खिडकी की राह से नीचे उतर जाय। ऐसा आप किया चाहें तो आज्ञा दें मैं एक कमन्द आपको ला दूं। इन्द्रजीत-हाँ यह बात मुझे पसन्द है यदि कमन्द ला दोतो हम दोनों भाई उसी के सहारे नीचे उतर जायें। वह बुडढा दोनों कुमारों को उसी तरह उसी जगह छोड़ कर कहीं चला गया और थोड़ी देर में एक बहुत बडी कमन्द हाथ में लिए हुए आकर बोला लीजिए यह कमन्द हाजिर है। इन्दजीत-(कमन्द लेकर ) अच्छा तो अब हम दोनों इस कमन्द के सहारे उस बाग में उतर जाते है। युड्ढा-जाइय मगर यह बताते जाइये कि आप लोग यहाँ से लौट कर कर आवेग ओर मुझ आपका यहाँ की सैर कराने का मौका कब मिलेगा? इन्द्रजीत-सो तो में ठीक नहीं कह सकता मारतुम यह बता दो कि अगर हम लोटे तो यहाँ किस राह से आवे ? बुडडा इसी कमन्द के जरिये इसी राह से आ जाइयेगा में यह खिडकी आपके लिए सुली छोड दूंगा। आनन्द-अच्छा यह यताओ कि भैरासिह की भी कुछ खबर है ? बुड्ढा-कुछ नहीं। इसके बाद दोनों कुमारों ने उस युउढे से कुछ भी न पूछा और खिडकी खोलन के बाद क्मन्द लगा कर उसी के सहारे दोनों नीये उतर गये। दोनों कुमारों ने यद्यपि उन औरतों को ऊपर से बखूबी देख लिया था क्योंकि वह बहुत दूर नहीं पडती थीं मगर इस बात का गुमान न हुआ कि उन औरतों ने भी उन्हें उस समय यो कमन्द के सहारे नीचे उतरती समय देखा या नहीं। जब दोनों कुमार नीचे उतर गये तो कमन्द को भी खैच कर साथ ले लिया और टहलते हुए उस तरफ रवाना हुए जिधर चश्मे के किनारे बैठी हुई ये औरते कुमार ने देखी थीं। थोड़ी देर में कुमार उस चश्मे के पास जा पहुंचे और उन औरतों को उसी सरभ हुए पाया। कुमार चश्मे के इस पार थे और वे सब औरतें जो गिनती में सात थीं चश्मे के उस पार सब्ज घास के ऊपर बैठी हुई थीं। किसी गैर को अपनी तरफ आते देख वे सब औरतेचोकन्नी होफर उठ खडी हुइ और बड़े गौर के साथ मगर क्रोध भरी निगाहों से कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह की तरफ देखने लगी। जिन जगह वे औरतें बैठी थीं उससे थोडी ही दूर पर दक्खिन तरफ बाग की दीवार के साथ ही एक छोटा सा मकान मामला हुआ था जो पेडों की आड में होन के कारण दोनों कुमारों कोऊपर से दिखाई नहीं दिया था मगर अब नहर के किनारे जाने पर बखूबी दिखाई दे रहा था। • ने औरतें जिन्हें मुमार ने देखा था सब की सब नौजवान और हसीन थीं। यद्यपि इस समय वे सब बनाव श्रृगार और जेवरों के ढकोसलों से खाली थीं मगर उनका कुदरती हुस्न ऐसा न था जो किसी तरह की खूबसूरती को अपने देवकीनन्दन खत्री समग्र ७९२