पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०१

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Get - सामने ठहरन देता। यहा पर यदि ऐसी केवल एक औरत होती तो हम उसकी खूबसूरती के बारे में कुछ लिखते भी मगर एक दम से सात ऐसी औरतों की तारीफ में कलम चलाना हमारी ताकत के बाहर है जिन्हें प्रकृति ने खूबसूरत बनाने के समय हर तरह पर अपनी उदारता का नमूना दिखाया हो। कुअर इन्द्रजीतसिह ने जब उन औरतों को अपनी तरफ क्रोध भरी निगाहों से देखते देखा तो एक औरत से मुलायम और गम्भीर शब्दों में कहा हमलोग तुम्हारे पास किसी तरह की तकलीफ देने की नीयत से नहीं आए हैं बल्कि यह कहने के लिए आए हैं कि किस्मत ने हम लोगों को अकस्मात् यहा पहुंचा कर तुम लोगों का मेहमान बनाया है। हमलोग लाचार होकर और राह भूले हुए मुसाफिर है और तुम लोग यहाँ की रहने वाली और दयावान् हो, क्योंकि जिस ईश्वर ने तुम्हें इतना सुन्दर बना कर अपनी कारीगरी का नमूना दिखाया है उसने तुम्हारे दिल को कठोर बना कर अपनी भूल का परिचय कदापिन दिया होगा, अतएव उचित है कि तुम लोग ऐसे समय में हमारी सहायता करो और बताओ कि अब हम दोनों भाई क्या करें और कहाँ जाये ? औरतें खुशामद पसन्द तो होती ही है | कुंअर इन्द्रजीतसिह की मीठी और खुशामद भरी बातें सुन कर उन सभों को बढी हुई त्यौरिया उतर गई और होठों पर कुछ मुस्कुराहट दिखाई देने लगी। एक ने जो सबसे चतुर-चचल और चालाक जान पड़ती थी, आगे बढ़ कर कुअर इन्दजीतसिह से कहा जब आप हमारे मेहमान बनते है और इस बात का विश्वास दिलाते हैं कि हमारे साथ दनान करगे तो हम लोग भी नि सन्देह आपको अपना मेहमान स्वीकार करके जहा तक हो सकेगा आपकी सहायता करेंगी, अच्छा ठहरिए हम लोग जरा आपुस में सलाह कर लें । इतना कह कर वह चुप हो गई उन लोगों ने आपुस म धीर धीरे कुछ बातें की और इसके बाद फिर उसी औरत ने इन्द्रजीतसिह की तरफ देखकर कहा- औरत-(हाथ का इशारा करक) उस तरफ एक छोटा सा पुल बना हुआ है, उसी पर से होकर आप इस पार चरो आइए। इन्द-क्या इस नहर में पानी बहुत ज्यादा है ? औरत-पानी तो ज्यादा नहीं है मगर इसमें लोहे के तेज नोक वाले गोखर बहुत पडे है इसलिए इस राह सेआपका आना असम्भव है। इन्द्र-अच्छा तो हम पुल से होकर आवेंगे। इतना कह कुमार उस तरफ रवाना हुए जिधर उस औरत ने हाथ के इशारे से पुल का होना बताया था। थोडी दूर जाने बाद एक गुजान और खुशनुमा झाडी के अन्दर वह छोटा सा पुल दिखाई दिया। इस जगह नहर के दोनों तरफ पारिजात के कई पेड थे जिनकी डालियों ऊपर से मिली हुई थी और उस पर खूबसूरत फूल पत्तो वाली बेलें इस ढग से चढी हुई थीं कि उनकी सुन्दर छाया में छिपा हुआ वह छोटा सा पुल बहुत खूबसूरतऔर स्थान बडा रमणीक मालूमहोताथा इस जगह से न तो दोनों कुमार उन औरतों को देख सकते थे और न उन औरतों की निगाह इन पर पड़ सकती थी। जब दोनों कुमार पुल की राह पार उतर कर और घूम फिर कर उस जगह पहुँचे जहाँ उन औरतों को छोड आए थे तो केवल दो औरतों को मौजूद पाया जिनमें से एक तो वही थी जिससे कुअर इन्द्रजीतसिह से बातचीत हुई थीं ओर दूसरी उससे उम्र में कुछ कम मगर खूबसूरती में कुछ ज्यादे थी। बाकी औरतों का पता न था कि क्या हुई और कहा गई। कुँअर इन्दजीतसिह ने ताज्जुब में आकर उस ओरत से जिसने पुल की राह इधर आने का उपदेश किया था पूछा 'यहाँ तुम दोनों के सिवाय और कोई नहीं दिखाई देता सब कहा चली गई? औरत-आप को उन औरतों से क्या मतलब? इन्द्रजीत-कुछ नहीं यों ही पूछता हूँ। औरत-(मुस्कुराली हुई ) वे सब आप दोनों भाइयों की मेहमानदारी का इन्तजाम करने चली गई अब आप मेरे साथ चलिए। इन्दजीत-कहाँ ले चलोगी? औरत-जहाँ मेरी इच्छा होगी जब आपने मेरी मेहमानी कबूल ही कर ली तब इन्दजीत-खैर अब इस किस्म की बातें न पूलूंगा और जहाँ ले चलोगी चला चलूंगा। औरत-(मुस्कुरा कर } अच्छा तो आइए। दोनों कुमार उन दोनों औरतों के पीछे-पीछेरवाना हुए। हम कह चुके है कि जहाँ ये औरतें बैठी थीं वहाँ से थोडी ही दूर पर एक छोटा सा मकान बना हुआ था। वे दोनों औरते कुमारों को लिए उसी मकान के दरवाजे पर पहुंची जो इस चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८