पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०३

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R आनन्द-(खुशी भरी आवाज में ताज्जुब के साथ) यह तो भैरोसिह ही है। अब कोई परवाह की बात नहीं है अगर वास्तव में भैरोसिह ही हैं। अपने से थोड़ी ही दूर पर दोनों कुमारों ने भैरोसिह को देखा जो एक कोठरी के अन्दर से निकल कर इन्हीं की तरफ आ रहा था। दोनों कुमार उठ खडे हुए और मिलने के लिए खुशी-खुशीभैरोसिह की तरफ रवाना हुए। भैरोसिह ने भी इन्हें दूर से देखा और तेजी के साथ चल कर इन दोनों भाइयों के पास आया। दोनों भाइयों ने खुशी-खुशीभैरोसिह को गले लगाया और उसे साथ लिए हुए उसी चबूतरे पर चले आए जिस पर इन्द्रानी उनको बैठा गई थी। इन्द्रजीत-(चबूतरे पर बैठ कर) भैरो भाई यह तिलिस्म का कारखाना है यहा फूक-फूकके कदम रखना चाहिए. अस्तु यदि मैं तुम पर शक करके तुम्हें जाचने का उद्योग करु तो तुम्हें खफा न होना चाहिए। भैरो-नहीं नहीं नहीं मैं ऐसा बेवकूफ नहीं हूँ कि आप लोगों की चालाकी और बुद्धिमानी की बातों से खफा होऊँ तिलिस्म और दुश्मन के घर में दोस्तों की जा बहुत जरूरी है। बगल वाला मसा और कमर का दाग दिखनाने के अतिरिक्त बहुत सी बातें ऐसी हैं जिन्हें सिवाय मेरे और आपके दूसरा कोई भी नहीं जानता जैसे लड़कपन वाला मजनू। इन्द्रजीत-(हस कर) यस-बस मुझे जाच करने की कोई जरुरत नहीं रही अब यह बताओ कि तुम्हारा बटुआ तुम्हें 'मिला या नहीं? भैरो-(ऐयारी का बटुआ कुमार के आगे रख कर) आपके तिलिस्मी खजर की बदौलत मेरा यह बटुआ मुझे मिल गया। शुक्र है कि इसमें की कोई चीज नुकसान नहीं गई सव ज्यों की त्यों मौजूद है। (तिलिस्मी खजर और उसके जोड की अगूठी देकर ) लीजिए अपना तिलिस्मी खजर अब मुझे इसकी कोई जरुरत नहीं मेरे लिए मेरा बटुआ काफी है। इन्द्र-(अगूठी और तिलिस्मी खजर लेकर ) अब यद्यपि तुम्हारा किस्सा सुनना बहुत जरुरी है क्योंकि हम लोगों ने एक आश्चर्यजनक घटना के अन्दर तुम्हें छोडा था मगर इस सब के पहिले अपना हाल तुम्हें सुना देना उचित जान पडता है क्योंकि एकान्त का समय बहुत कम है और उन दोनों औरतों के आ जाने में बहुत विलम्ब नहीं है जिनकी बदौलत हम लोग यहा आए हैं और जिनके फेर में अपने को पडा हुआ समझते है। भैरो-क्या किसी औरत ने आप लोगों को धोखा दिया? इन्द्रजीत-निश्चय तो नहीं कह सकता कि धोखा दिया मगर जो कुछ हाल है उसे सुन के राय दो कि हम लोग अपने को धोखे में फसा हुआ समझें या नहीं। इसके बाद कुँअर इन्द्रजीतसिह ने अपना कुल हाल भैरोसिह से जुदा होने के बाद से इस समय तक कह सुनाया। इसके जवाब में अभी भैरोसिह ने कुछ कहा भी न था कि सामने वाले कमरे का दर्वाजा खुला और उसमें से इन्द्रानी को निकल कर अपनी तरफ आते देखा। इन्द्रजीत-(भैरो से ) लो वह आ गई. एक तो यही औरत है, इसी का नाम इन्द्रानी है मगर इस समय वह दूसरी औरत इसके साथ नहीं है जिसे यह अपनी संगी छोटी बहिन बताती है। भैरो-(ताज्जुब से उस औरत की तरफ देखकर) इसे तो मैं पहिचानता हूँ मगर यह नहीं जानता था कि इसका नाम इन्द्रानी है। इन्दजीत-तुमने इसे कब देखा? भैरो-तिलिस्मी खजर लेकर आपसे जुदा होने के बाद बटुआ पाने के सम्बन्ध में इसने मेरी बड़ी मदद की थी जब मैं अपना हाल सुनाऊगा तब आप को मालूम होगा कि यह कैसी नेक औरत है मगर इसकी छोटी बहिन को में नही जानता , शायद उसे भी देखा हो। इतने ही में इन्द्रानी वहा आ पहुंची जहा भैरोसिह और दोनों कुमार बैठे बातचीत कर रहे थे। जिस तरह भैरोसिह ने इन्द्रानी को देखते ही पहिचान लिया उसी तरह इन्द्रानी ने भी भैरोसिह को देखते ही पहचान लिया और कहा, "क्या आप भी यहा आ पहुचे ? अच्छा हुआ क्योंकि आपके आने से दोनों कुमारों का दिल बहलेगा इसके अतिरिक्त मुझ पर भी किसी तरह का शक शुबहा न रहेगा। भैरो-जी हा मै भी यहा आ पहुंचा और आपको दूर से देखते ही पहिचान लिया बल्कि कुमार से कह भी दिया कि इन्होंने मेरी बड़ी सहायता की थी। इन्द्रानी यह तो बताओ कि स्नान सन्ध्या से छुट्टी पा चुके हो या नहीं? भैरो-हा मैं स्नान सध्या से छुट्टी पा चुका हूँ और हर तरह से निश्चिन्त हूँ। इन्द्रानी-(दोनों कुमारों से ) और आप लोग ? इन्द्र-हम दोनों भाई भी। चन्द्रकान्ता सन्तति.भाग १५ ७९५