पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

exi इन्द्रानी-अच्छा तो अब आप लोग कृपा करके उस कमर में चलिए। भैरो-बहुत अच्छी बात है ( दोनों कुमारों से ) चलिए । भैरोसिह को लिए हुए कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह उस कमर में आए जिसे इन्दानी ने इनके लिए खाला था। कुमार ने इस कभरे को देख कर बहुत पसन्द किया क्योंकि यह कमरा बहुत बड़ा और खूबसूरती के साथ सजाया हुआ था। इसकी छत यात ऊची और रंगीन थी, तथा दीवारों पर भी मुसौवर ने अनोखा काम किया था। कुछ दीवारों पर जगल, पहाड खाह, कदारा घाटी और शिकारगाह तथा यहते हुए चश्मे का अनोखा दृश्य ऐसे अच्छे ढग से दिखाया गया था कि देखने वाला नित्य पहरों देखा करे और उसका चित न भरे। मौक-मौके से जगली जानवरों की तस्वीरें भी ऐसी बनी थीं कि देखने वालों का उसा असली होने का धोखा होता था। दीवारों पर बनी हुई तस्वीरों के अतिरिक्त कागज और कपड़ों पर बनी हुई तथा सुन्दर चौखटो में जमी हुई तस्वीरों की भी इस कमरे में कमी न थी। ये तस्वीरे कवल हसीन और नौजवान औरताफी र्थी जिनकी खूबसूरती और भाव का देख कर दखने वाला प्रम से दीवाना हो सकता था। इन्हीं तस्वीरों म इन्द्रानी और आनन्दी की तस्वीरें नी थीं जिन्हें देखते ही कुंअर इन्दजीतसिह हस पड और भैरोसिह की तरफ देख के बोले, "देखो वह तस्वीर इन्दानी की और यह उनकी वहित आनन्दी की है। उन्हें तुमनन देखा होगा । भैरो-जी इनकी छाटी बहिन को तो मैन नहीं देखा। इन्द्र-स्वयम जैसी खूबसूरत है वैसी ही तस्वीर भी बनी है। (इन्दानी की तरफ दख कर) मगर अब हमें इस तस्वीर को देखने की कोई जरूरत नहीं ! इन्दानी-(हस कर शक क्योंकि अब आप स्वतन्त्र और लड़के नहीं रहे। इन्द्रानी का जवाब सुन मेरोसिह तो खिलखिला कर हस पडा मगर आनन्दसिह ने मुश्किल से हंसी रोकी इस कमरे मेरोशनी का सामान (दीवारगीर डाल हाडी इत्यादि) भी पेशकीमत खूबसूरत और अच्छ ढग से लगा हुआ था। सुन्दर बिछावन और फर्श के अतिरिक्त चादी और सोने की कई कुर्सिया भी उस कमरे में मौजूद थी जिन्हें देखकर कुँअर इन्द्रजीतसिह ने एक सोने की कुर्सी पर बैठन का इरादा किया मगर इन्द्रानी ने सभ्यता के साथ रोक कर पहिले आप लोग भाजन कर लें क्योंकि भोजन का सब सामान तैयार है और ठडा हो रहा है। इन्द-भोजन करने की तो इच्छा नहीं है। इन्द्रानी-(चेहरा उदास बना कर) तोपिर आप हमारे मेहमान ही क्यों बने थे? क्या आप अपने को वेमुरौवत और झूठा बनाया चाहते है। इन्दानी ने कुमार को हर तरह से कायल और मजबूर करके माजन करन के लिए तैयार किया। इस कमर में छोटासा एक दर्वाजा दूसरे कमर में जाने के लिए बना हुआ था इसीराह से दोनों कुमार भैरोसिह को लिए हुए इन्द्रानी कमरे में पहुंची। यह कमरा बहुत ही छोटा और राजाओं के पूजा पाठ तथा भोजन इत्यादि के योग्य बना हुआ था। कुमार ने देखा कि दोनों भाइयों के लिए उत्तम से उत्तम भोजन का सामान चादी और सोने के बर्तनों में तैयार है और हाथ में मुन्दर पखा लिए आनन्दी उसकी हिफाजत कर रही है। इन्द्रानी न आनन्दी के हाथ से पखाले लिया और कहा, भैरासिह भी आ पहुंचे है इनके वास्ते भी सामान बहुत जल्द ले आओ।" आज्ञा पात ही आनन्दी चली गई और थोड़ी देर में कई औरतों के साथ भोजन का सामान लिए लोट आई। करीने से सब सामान लगाने बाद उसने उन औरतों को विदा किया जिन्हें अपने साथ लाई थी। दोनों कुमार और भैरोसिह भोजन करने के लिए बैठे, उस समय इन्दजीतसिह ने भेद भरी निगाह से भैरोसिह की तरफ देखा और भैरोसिह ने भी इशारे में ही लापरवाही दिखा दी। इस बात को इन्दानी और आनन्दी ने भी ताड लिया कि कुमार को इस भोजन में बेहोशी की दवा का शक हुआ मगर कुछ बोलना मुनासिव न समझ कर चुप रह गई। जब तक दोनों कुमार भोजन करते रहे तब तक आनन्दी पखा हाकती रही। दोनो कुमार इन दोनो औरतों का बर्ताव देख कर बहुत खुश हुए और मन में कहने लगे कि ये औरतें जितनी खूबसूरत है उतनी ही नेक भी हैं, जिनके साथ याही जायगी उनके बडभागी होने में कोई सन्देह नहीं (क्योंकि ये दोनों कुमारी मालूम होतो थीं)। भोजन समाप्त होने पर आनन्दी ने दोनों कुमारों और भैरोसिह के हाथ धुलाये और इसके बाद फिर दोनों कुमार और भैरोसिह इन्द्रानी और आनन्दी के साथ उसी पहिले वाले कमरे में आये। इन्दानी ने कुँअर इन्द्रजीतसिह से कहा अब थोडी देर आप लोग आराम करें और मुझे इजाजत दें तो इन्द्रजीत-मेरी जी तुम लोगों का हाल जानने के लिए बेचैन हो रहा है इसलिए मै नही चाहता कि तुम एक पल के कहा- देवकीनन्दन खत्री समग्र