पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०५

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f लिए भी कहीं जाओ जब तक कि मेरी बातों का पूरा-पूराजवाब न दे लो ! मगर यह तो बताओ कि तुम लोग भोजन कर चुकी हा या नहीं। इन्दानी-जी अभी तो हम लोगों ने भोजन नहीं किया है जैसी मर्जी हो इन्द्रजीत-तब मैं इस समय नहीं रोक सकता, मगर इस बात का वादा जरूर ले लूगा कि तुम घण्टे भर से ज्यादे न लगाओगी और मुझे अपने इन्तजार का दु ख न दोगी। इन्द्वानी-जी मै वादा करती हूँ कि घण्टे भर के अन्दर ही आपकी सेवा में लौट आऊगी। इतना कहकर आनन्दी को साथ लिए हुए इन्द्रानी चली गई और दोनों कुमार तथा भैरोसिह को बातचीत करने का मौका दे गई। छठवां बयान इन्दानी और आनन्दी के चले जाने के बाद कुअर इन्द्रजीतसिह आनन्दसिह और भैरोसिह में यों बातचीत होने लगी -1 इन्द्रजीत-(भैरो से) असल बात जो कुछ इन्दानी से पूछा चाहता था उसका मौका तो अभी तक मिला ही नहीं। भैरो यही कि तुम कौन और कहा की रहने वाली हो इत्यादि इन्द्र-हा और किशोरी, कामिनी इत्यादि कहा है तथा उनसे मुलाकात क्योंकर हो सकती है ? आनन्द--(भैरौस) इस बात का कुछ पता तो शायद तुम भी द सकोगे क्योंकि हम लागों के पहिले तुम इन्द्रानी को जान चुके हो और कई ऐसी जगहों में भी घूम चुके हो जहा हम लोग अभी तक नहीं गए है। इन्द्र-हा पहिले तुम अपना हाल तो कहो ! भैरो-सुनिए- अपना बटुआ पाने की उम्मीद में जब मैं उस दर्वाजे के अन्दर गया तो जाते ही मैने उन दोनों को ललकार के कहा मैं भैरोसिह स्वय आ पहुंचा। इतने ही में वह दर्वाजा जिस राह से मैं उस कमरे में गया था बन्द हो गया। यद्यपि उस समय मुझे एक प्रकार का भय मालूम हुआ परन्तु बटुए की लालच ने मुझे उस तरफ देर तक ध्यान न देने दिया और सीधा उस नकाबपोश के पास चला गया जिसकी कमर में मेरा बटुआ लटक रहा था। मैं समझे हुए था कि पीला मकरन्द' अर्थात् पीली पोशाक वाला नकाबपोश स्याह नकाबपोश का दुश्मन तो है ही अतएव स्याह नकाबपोश का मुकाबला करने में, पीले मकरन्द से मुझे कुछ मदद अवश्य मिलेगी मगर मेरा ख्याल गलत था। मेरा नाम सुनत ही वे दोनों नकाबपोश मेरे दुश्मन हो गए और यह कह कर मुझसे लडने लग कि यह ऐयारी का बदुआ अब तुम्हें नहीं मिल सकता जब रहेगा तो हम दोनों में से किसी एक के पास ही रहेगा। परन्तु मै इस बात से भी हताश न हुआ। मुझे उस बटुए की लालच ऐसी कब न थी कि उन दोनों के धमकाने से डर जाता और अपने बटुए के पान से नाउम्मीद होकर अपने बचाय की सूरत देखता इसके अतिरिक्त आपका तिलिस्मी खजर भी मुझे हताश नहीं होने दता था अस्तु मैं दोनों के वारों का जयान उन्हें देन और दिल खोल कर लड़ने लगा और थोड़ी ही देर में विश्वास करा दिया कि राजा बीरेन्द्रसिह के ऐयारों का मुकाबला करना हसी खेल नहीं है। थोडी देर तक तो दोनों नकाबपोश मेरा बार बहुत अच्छी तरह बचाते चले गये मगर इसके बाद जब उन दोनों ने देखा कि अब उनमें वार बचान की कुदरत नहीं रही और तिलिस्मी राजर जिस जगह बैठ जायगा दो टुकडे किए बिना न रहेगा तब पीले मकरन्द ने ऊंची आवाज में कहा भैरोसिह ठहरो-ठहरो जरा मेरी बात सुन लो तब लड़ना। ओ स्याह नकाब वाल क्यों अपनी जान का दुश्मन बन रहा है ? जरा ठहर जा और मुझे भैरोसिंह से दो-दो बातें कर लेने दे। पीले मकरन्द की बात सुन कर स्याह नकाबपोश ने और साथ ही मैने भी लडाई से हाथ खैचे लिया भगर तिलिस्मी खजर की रोशनी को कम होने न दिया। इसके बाद पीले मकरन्द ने मुझसे पूछा, 'तुम हम लोगों से क्यों लड रहे हो? मै (स्याह नकायपोश्च की तरफ बता कर ) इसके पास मरा ऐयारी का बटुआ है जिस में लिया चाहता हूँ। पीला मकरन्द-तो मुझसे क्यों लड़ रहे हो? मैं-मैं तुमसे नहीं लडता बल्कि तुम खुद ही मुझसे लड़ रहे हो । पीला मक-(स्याह नकाबपोश से) क्यों अब क्या इरादा है इनका बटुआ खुशी से इन्हें दोगे या लड कर अपनी जान दागे?

'बहुत ठीक सत्य वचन! चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ७९७