पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०६

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. 1 मकरन्द ने स्याह नकाबपोश-जब बटुए का मालिक स्वयम् आ पहुंचा है तो बटुआ देन में मुझे क्योंकर इनकार हो सकता है? हा यदि ये न आते तो मै बटुआ कदापि न देता। पीला मक-जब ये न आते तो मैं भी देख लेता कि तुम वह बटुआ मुझे कैसे नहीं देते,खैर अब इनका बटुआ इन्हें दे दो और पीछा छुडाओ । स्याह नकाबपोश ने बटुआ खोल कर मेरे आगे रख दिया और कहा 'अब तो मुझे छुट्टी मिली? इसके जवाब में मैंने कहा, 'नहीं पहिले मुझे देख लेने दो कि मेरी अनमोल चीजें इसमें है या नहीं। मैंने उस बटुए के बन्धन पर निगाह पड़ते ही पहचान लिया कि मेरे हाथ की दी हुई गिरह ज्यों की त्यों मौजूद है तथापि होशियारी के तौर पर बटुआ खोल कर देख लिया और जव निश्चय हो गया कि मेरी सब चीजें इसमें मौजूद है तो खुश होकर बटुआ कमर में लगा कर स्याह नकाबपोश से बोला ' अब मेरी तरफ से तुम्हें छुट्टी है, मगर यह तो बता दो कि कुमार के पास किस राह से जा सकता हूँ?' इसका जवाब स्याह नकाबपोश ने यह दिया कि यह सब हाल में नहीं जानता तुम्हें जो कुछ पूछना है पीले मकरन्द से पूछ लो इतना कह कर स्याह नकाबपोश न मालूम किधर चला गया और मैं पीले मकरन्द का मुंह देखने लगा। पीले मुझस पूछा, अब तुम क्या चाहते हो? मैं-अपने मालिक के पास जाना चाहता हूँ। पीला मक- तो जाते क्यों नहीं ? मैं क्या उस दरदाजे की राह जा सकूगा जिधर से आया था ? पीला मक-क्या तुम देखते नहीं कि वह दर्वाजा चन्द हो गया है और अब तुम्हारे खोलने स नहीं खुल सकता। मै--तब मै क्योंकर बाहर जा सकता हूँ? इसके जवाब में पीले मकरन्द ने कहा "तुम मेरी सहायता के बिना यहा से निकल कर बाहर नहीं जा सकते क्योंकि रास्ता बहुत कठिन और चक्करदार है खैर तुम मेरे पीछे-पीछचलेआओ मैं तुम्हें यहा से बाहर कर दूंगा। पीले मकरन्द की बात सुन कर मैं उसके साथ-साथजाने के लिए तैयार हो गया मगर फिर भी अपना दिल भरने के लिए मैंने एक दफे उस दांजे को खोलने का उद्योग किया जिधर से उस कमरे में गया था। जब दर्वाजा न खुला तय लाचार हो कर मैंने पीले मकरन्द का सहारा लिया मगर दिल में इस बात का ख्याल जमा रहा कि कहीं वह मेरे साथ दगा न करे। पीले मकरन्द ने चिराग उठा लिया और मुझे अपने पीछे-पीछे आने के लिए कहा तथा मै तिलिस्मी खजर हाथ में लिए हुए उसके साथ रवाना हुआ। पीले मकरन्द ने विचित्र ढग से कई दर्वाजे खोले और मुझे कई कोठरियों में घुमाता हुआ मकान के बाहर ले गया। मैं तो समझे हुए था कि अब आपके पास पहुंचा चाहता हूँ मगर जब बाहर निकलने पर देखा तो अपने को किसी और ही मकान के दर्वाज पर पाया। चारो तरफ सुबह की सुफेदी अच्छी तरह फैल चुकी थी और मै ताज्जुब की निगाहों से चारो तरफ दख रहा था। उस समय पीले मकरन्द ने मुझे उस मकान के अन्दर चलने के लिए कहा मगर इस जगह वह स्वय पीछे हो गया और मुझे आगे चलने के लिए बोला। उसकी इस बात से मुझे शक पैदा हुआ मैंने उससे कहा कि जिस तरह अभी तक तुम मेरे आगे-आगे चलते आये हो उसी तरह अव भी इस मकान के अन्दर क्यों नहीं चलते ? मै तुम्हारे पीछे-पीछे चला । इसके जवाब में पीले मकरन्द ने सिर हिलाया और कुछ कहा ही चाहता था कि 'मेरे पीछे की तरफ से आवाज आई, ओ भैरोसिह,खबरदार !इस मकान के अन्दर पैर न रखना, और इस पीले मकरन्द को पकड़ रखना भागने न पावे । में घूम कर पीछे की तरफ देखने लगा कि यह आवाज देने वाला कौन है। इतने ही में इस इन्दानी पर मेरी निगाह पड़ी जो तेजी के साथ चल कर मेरी तरफ आ रही थी। पलट कर मैने पीले मकरन्द की तरफ देखा तो उसे मौजूद न पाया, न मालूम वह यकायक क्योंकर गायब हो गया। जव इन्द्रानी मेरे पास पहुँची तो उसने कहा, 'तुमने बड़ी भूल की जो उस शैतान मकरन्द को पकड न लिया। उसने तुम्हारे साथ धोखेबाजी की। बेशक वह तुम्हारे बटुए की लालच में तुम्हारी जान लिया चाहता था। ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि मुझे खबर लग गई और मैं दौड़ी हुई यहाँ तक चली आई। वह कम्यख्त मुझे देखते ही भाग गया।' इन्द्रानी की बात सुन कर मै ताज्जुब में आ गया और उसका मुह देखने लगा। सबसे ज्यादे ताज्जुब तो मुझे इस बात का था कि इन्दानी जैसी खूबसूरत और नाजुक औरत को देखते ही वह शैतान मकरन्द भाग क्यों गया। इसके अतिरिक्त देर तक तो मै इन्द्रानी की खूबसूरती ही को देखता रह गया। (मुस्कुरा कर) माफ कीजिए बुरा न मानियेगा, क्योंकि मैं सच कहता हूँ कि इन्द्रानी को मैंने किशोरी से भी बढ कर खूबसूरत पाया। सुबह के सुहावने समय में उसका चेहरा दिन की तरह दमक रहा था । देवकीनन्दन खत्री समग्र ७९८