पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 इन्द्रानी-जी हा, मैं अच्छी तरह जानती हूँ इस वाग के पीछे सटा हुआ एक और तिलिस्मी बाग है सभों को लिए हुए कमलिनी उसी में चली गई है और उसी में रहती है। इन्द्रजीत-क्या हम लोगों का तुम उनके पास पहुंचा सकती हो ? इन्द्रानी-जी नहीं। इन्दजीत-क्यों। इन्द्रानी-वह वाग एक दूसरी औरत के आधीन है जिससे बढ कर मेरी दुश्मन इस दुनिया में काई नहीं । इन्द-ता क्या उस बाग में कभी नहीं जातीं? इन्द्रानी-जी नहीं क्योंकि एक तो दुश्मन के ख्याल मे मेरा जाना वहां नहीं हाता दूसरे उसने रास्ता भी बन्द कर दिया है इसी तरह मै उसके पक्ष-पातियों को अपने बाग में नहीं आने देती। इन्द-तो हमारी उनकी मुलाकात क्योंकर हो सकती है? इन्द्रानी-यदि आप उन सभों से मिला चाहें तो तीन-चार दिन और सब्र करें क्योंकि अब ईश्वर की कृपा से ऐसा प्रबन्ध हो गया हे कि तीन-चार दिन के अन्दर ही वह बाग मेर कब्जे में आ जाय और उसका मालिक मेरा कैदी बने। मेरे दारोगा ने तो कमलिनी को उस बाग में जाने से मना किया था मगर अफसोस कि उसने दारोगा की बात न मानी और धोख में पड कर अपने को एक ऐसी जगह फसाया जहा से हम लोगों का सम्बन्ध कुछ भी नहीं है। इन्द्र-तो क्या तुम लोग राजा गोपालसिह के आधीन नहीं हो? इन्द्रानी-हम लोग जरूर राजा गोपालसिह के आधीन है और मै यह जानती हूँ कि आप यहा के तिलिस्म तोडने के लिए आए हे अस्तु इस बात को भी जानते होंगे कि यहा के बहुत से ऐसे हिस्से हैं जिन्हें आप तोड नहीं सकेंगे। इन्द्र--हाँ जानते है। इन्दानी-उन्हीं हिस्सों में से जो टूटने वाले नहीं हैं कई दर्ज ऐसे है जो केवल सैर तमाशे के लिए बनाए गए है और वहा जमानिया का राजा प्राय अपने मेहमानों को भेज कर सैर तमाशा दिखाया करता है अस्तु इसलिए कि वह जगह हमेशा अच्छी हालत में बनी रहे हम लोगों के कब्जे में दे दी गई है और नाममात्र के लिए हम लोग तिलिस्म की रानी कहलाती हैं मगर हा इतना तो जरूर है कि हम लोगों को सोना चादी और जवाहिरात की (यहा की बदौलत) कमी नहीं इन्द्र-जिन दिनों राजा गोपालसिह को मायारानी ने कैद कर लिया था उन दिनों यहाँ की क्या अवस्था थी? मायारानी भी कभी यहा आती थी या नहीं? इन्दानी-जी नहीं मायारानी को इन सब बातों और जगहों की कुछ खबर ही न थी इसलिए वह अपने समय में यहा कभी नहीं आई और तब तक हम लोग स्वतन्त्र बने रहे। अब इधर से आपने राजा गोपालसिह को कैद से छुडा कर हम लोगों को पुन जीवनदान दिया है तब से केवल तीन दफे राजा गोपालसिह यहा आए हैं और चौथी दफे परसों मेरी शादी में यहा आवेंगे । इन्द्र-(चौक कर ) क्या परसों तुम्हारी शादी होने वाली है ? इन्दानी-(कुछ शर्मा कर ) जी हा मेरी और ( आनन्दी की तरफ इशारा करके) मेरी इस छोटी बहिन की भी। इन्द-किसके साथ? इन्द्रानी-सो तो मुझे मालूम नहीं । इन्द-शादी करने वाले कौन है तुम्हारे मा बाप होंगे? इन्द्रानी-जी मेरे मा बाप नहीं केवल गुरुजी महाराज हैं जिनकी आज्ञा मुझे मा बाप की आज्ञा से भी बढ कर माननी पडती है। भैरो-(इन्द्रानी से ) इस तिलिस्म के अन्दर कल परसों में किसी और का ब्याह भी होने वाला है? इन्द्रानी नहीं। भैरो-मगर हमने सुना है। इन्दानी-कदापि नहीं, अगर ऐसा होता तो हम लोगों को पहिले खबर होती। इन्द्रानी का जवाब सुन कर भैरोसिह ने मुस्कुराते हुए कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह की तरफ देखा और दोनों कुमारों ने भी उसका मतलब समझ कर सर नीचा कर लिया। इन्द्रजीत-(इन्दानी से ) क्या तुम लोगों में पर्दे का कुछ ख्याल नहीं रहता? इन्द्रानी-पर्दे का खयाल बहुत ज्यादे रहता है मगर उस आदमी से पर्दे का बर्ताव करना पाप समझा जाता है चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ८०१ ५१