पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१

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इसके बाद कुसुम ने दीवान साहब की तरफ देख कर कहा- कुसुम-यदि इस समय इन चित्रों के विषय में कुछ सुना जाय तो अच्छा है। रनवीर-हॉ मेरा जी भी बहले और उन भेदों का पता लगे जिनके जाने विना जी बेचैन हो रहा है। दीवान-हाँ ठीक है, परन्तु ऐसा करने की आज्ञा नहीं है। रनबीर-(ताज्जुब से) किसकी आज्ञा और कैसी आज्ञा? दीवान-जिस समय राजा कुबेरसिह और राजा इन्द्रनाथ ने इस कमरे की ताली मेरे सुपुर्द की थी उस समय अपना और इन तस्वीरों का भेद अच्छी तरह समझाने के बाद मुझे ताकीद करदी थी कि इन तस्वीरों के भेद बीमारी की अथवा रज की अवस्था में आप लोगों से कदापि न कहू, इसलिये जब मैं आपको और कुसुमकुमारी को अच्छी तरह प्रसन्न देलूँगा तभी जो कुछ कहना होगा कहूगा । रनबीर-कुंछ सोधकर) ठीक है यह आज्ञा भी मतलव से खाली नहीं है, खैर । कुसुम-मै भी बडों की आज्ञा मानना उचित समझती हू, अच्छा यदि बालेसिह के विषय में कुछ खबर मिली हो तो कहिये। दीवान-अभी दो घण्टे हुए होंग एक जासूस ने खरर दी थी कि बालेसिह दर्द से बहुत ही बचेन है, रज और गुस्से में और तो कुछ कर न सका केवल कम्बख्त कालिन्दी की नाक काट कर उसे निकाल दिया और आप भी वहाँ से कूच करने की तैयारी कर रहा है। वीरसेन-अब भी यदि यहॉ सेन मागे तो उसकी शामत कहना चाहिये क्योकि वह अपनी सजा को पहुच चुका और अब बहादुरी दिखान योग्य नहीं रहा। दीवान-हाँ जसवन्त के मरने से वह और भी निराश हो गया। वीरसन (रनवीरसिह की तरफ इशारा कर को अहा लडाई के समय इनकी बहादुरी देखने योग्य थी। मुझे तो जन्म भर ऐसा याद रहेगी जैसे आज ही की बात हो। रनवीर-बीरसेन से) हाँ यह तो तुमने ठीक तरह से कहा ही नहीं कि जब कुसुम की खोज में यहाँ से निकले तो क्या क्या हुआ और कुसुम का पता लगाने में क्या क्या कठिनाइयाँ हुई। इसके जवाब में बीरसेन ने अपना कुल हाल अर्थात् घर से निकलना, चारदजे के फाटक पर जाना, पहरवालों की येईमानी का हाल कालिन्दी क जेवरों का मिलना (जो उसने रिश्वत में दिय थे) और चोर दर्वाजे की राह से बाहर जाना इत्यादि क्यान किया। इसके बाद दीवान साहब का इशारा पाकर सय कोई वहाँ से चले गये और केवल बीरसेन और रनवीर उस कमरे में रह गये क्योंकि रात बहुत जा चुकी थी और उन दोनों के लिये आराम करना बहुत मुनासिव था। इस समय एक कमरे में केवल एक शमादान जलता रह गया और बाकी दीवारगीर इत्यादि की बत्तियाँ बुझा दी गई। केवल दो घडी रात बाकी थी जब वीरसेन की आँख खुली और उस समय उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ जव रनबीरसिह की चारपाई खाली देखी। ताज्जुब मे आकर वे सोचने लगे कि है. यह क्या हुआ? रनबीरसिह में तो उठने की भी ताकत नहीं थी ,फिर चले कहाँ गय यदि उठने ली ताकत हो भी तो उन्हें चारपाई पर से उठना उचित न था क्योंकि जख्म पर पट्टी बॅधी थी और हिलने डोलन की उन्हें मनाही कर दी गई थी। आखिर बीरसेन से रहा न गया और पुकार उठे, "कोई है? कमरे का दाजा उढकाया हुआ था मगर उसके वाहर लौडियों बारी बारी से पहरा दे रही थीं। बीरसेन की आवाज सुनते ही एक लौडी दर्वाजा खोल कर कमरे के अन्दर आई मगर वह भी रनवीरसिंह की चारपाई खाली देखकर घबडा गई और ताज्जुब में आकर वीरसेन की तरफ देखने लगी। वीरसेन-(चारपाई पर बैठकर) क्या रनबीरसिह जो वाहर गए है ? लौंडी-जी नहीं, या शायद उस समय बाहर गए हों जब कोई दूसरी लौडी पहरे पर हो । थीरसन-पूछो और पता लगाओ। वे सब लौडियाँ वीरत्तेन के सामने आई जो पहिले पहरा दे चुकी थीं मगर किसी की जुबानी रनवीरसिह के बाहर जाने का हाल मालूम न हुआ। धीर धीरे यह खबर महारानी कुसुमकुमारी के कान तक पहुची और वह घबडाई उस कमरे में आई। वीरसेन की जुबानी सब हाल सुन कर उसका दिल धडकने लगा मगर क्या कर सकती थी। जो कुछ थोड़ी रात वाकी थी वह वात की बात में बीत गई बल्कि दूसरा दिन भी बीत गया मगर रनवीरसिह का कुछ भी पता न लगा। मारी १०८९