पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूत-जिस समय मैंने बलभद्रसिह को छुडाया था उस समय उन्हें विश्वास नहीं हाता था कि मैं उनके साथ नेकी कर रहा हू, बडी मुश्किल से तो उन्हें विश्वास दिलाया। इस समय आप जानते है कि वे भी जाग रहे हैं, आप खुद ही उन्हें धैठ रहने के लिए कह आए हैं, अब मै उन्हें जबर्दस्ती बेहोश करूँगा तो उनके दिल में क्या आवेगा क्या वे यह नहीं समझेंगे कि भूतनाथ ने नेकनीयती के साथ मेरी जान नहीं बचाई थी । आदमी-अगर ऐसा समझेंगे तो समझे तुम सोच क्या रहे हो । क्या मरा हुक्म न मानोगे ? भूत-मेरा क्या मजाल जो आपका हुक्म न मानें। इतन ही में उत्ती तरह का स्याह लबादा ओहे और भी एक आदमी वहाँ आ पहुंचा। भूतनाथ समझ गया कि वह आदमी इसी का साथी है और कल भी यहाँ आया था। इस नए आए हुए आदमी ने पहिले आदमी से खास बोली (भाषा) में कुछ बात-चीत की जिसे भूतनाथ कुछ भी न समझ सका, इसके बाद उसने परदा हटा के अपनी सूरत भूतनाथ को दिखा दी। अब भूतनाथ के ताज्जुब का कोई ठिकाना न रहा और वह एक दम घबडा के वोला नहीं-नहीं, में जागता नहीं हूँ बल्कि जो कुछ देख रहा हूँ सब स्वप्न है। दूसरा आदमी-भूतनाथ तुम पागल हो गए हो । भूत-वशक यही बात है या ता में स्वप्न दख रहा हू या पागल हो गया हूँ। पहिला आदमी-न तो तुम स्वप्न देख रहे हो और न पागल ही हा गए हो जो कुछ देख सुन रहे हो सब ठीक है। अच्छा अब तुम हम लोगों के साथ आआ किसी दूसरी जगह अँधेरे में खडे हाकर बातचीत करंग यहाँ केवल इसलिए खडे हा गये थे कि तुम्हे अपनी सूरत दिखा दें। इतना कह कर वे दोनों आदमी भूतनाथ का हाथ पकडे हुए दूसरे दालान में चले गए जहा बिलकुल अधकार था और यहा वात-चीत करने लगे। इस जगह उन तीनों में जगे कुछ बातें हुई वह ऐयारी भाषा में हुई इसलिए लिख न सके मगर आगे चल कर इन बातों का जो कुछ नतीजा निकलेगा पाठकोंको मालूम हो जायगा। हॉइतना कह देना जरूरी है कि डेढ घण्टे तक उन तीनों में खूब चातें होती रही इस बीचे में दो दफे भूतनाथ क बडे जोर से हॅसने की आवाज आई ताज्जुब नहीं कि वह आवाज बलभद्रसिह के कानों तक भी पहुंची हो। इसके बाद भूतनाथ वहाँ से रवाना होकर बलभद्रसिह के पास आया दखा कि अभी तक वह बैठे हुए है और भूतनाथ का इन्तजार कर रहे है। भूतनाथ को देखते ही बलभद्रसिह बोले आओ-आओ भूतनाथ मेरे पास बेठ जाओ और बताओ कि क्या हुआ । वह आदमी कोन था जो तुम्हें ल गया था ? में सा विचित्र हाल आपसे कहता हूँ। यह कहता हुआ भूरगाथ बलभद्रसिह के पास बैठ गया, मगर इस तरह पर सट कर बैठा कि उसकी कमर में लगा तिलिस्मी खजर बलभद्रसिह के बदन के साथ छू गया और वह उसी समय काप कर बेहोश हो गये। बलभद्रसिह के बेहोश हो जाने के बाद भूतनाथ ने उनकी गठरी बोधी ओर नीचे उतार कर दोनों विचित्र आदमियों के पास ले गया। उन दोनों ने उसी तिलिस्मी चबूतरे के पास पहुंचा देने के लिए कहा और भूतनाथ उसे तिलिस्मी चबूतरे के पास ले गया तब वे दोनों आदमी बलभद्रसिह को लेकर चबूतरे के अन्दर चल गये, चबूतरे का पल्ला बन्द हो गया और भूतनाथ कुछ सोचता विचारता अपनी चारपाई पर आकर लेट रहा। नौवां बयान सवेरा हो जाने पर जब भूतनाथ और बलभद्रसिह से मिलने के लिए पन्नालाल तिलिस्मी खण्डहर के अन्दर नम्बर दावाले कमरे में गये तो भूतनाथ को चारपाई पर सोय पाया और बलभद्रसिह को वहॉन देखा। पन्नालाल ने भूतनाथ को जगा कर पूछा आज तुम इस समय तक खुर्राटे ले रहे हो, यह क्या मामला है ! भूतनाथ-बलभद्रसिह जी ने गप्प-शप्पमें तीन पहर रात बैठे ही बैठे बिता दी इसलिए सोने में बहुत कम आया और अभी तक आँख नहीं खुली आइये वैठिये पन्ना-बलभद्रसिह जी कहाँ है? भूतनाथ-मुझे क्या खवर, इसी जगह कही होंगे, मुझे तो अभी आपने सोते से जगाया है। पन्ना-मगर मैने तो उन्हें कहीं भी नहीं देखा। भूतनाथ-किसी पहरे वाले से पूछिये, शायद हवा खान के लिए कहीं बाहर चले गये हो। वलभदसिह को वहॉन पाकर पन्नालाल को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और मूतनाथ भी घबडाया सा दिखाई देने लगा। पहिले तो पन्नालाल और भूतनाथ दोनों ही ने उन्हें खण्डहर वाले मकान के अन्दर खोजा मगर जब कुछ पता न लगातब . - चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ tou