पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१६

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फाटक पर आकर पहरे वालों से पूछा। पहरे वालों ने भी उन्हें देखने से इनकार करके कहा कि हम लोगों ने बलभदसिह 'जी को फाटक के बाहर निकलते नहीं देखा । अस्तु हम लोग उनके बारे में कुछ नहीं कह सकते। बलभद्रसिह कहाँ चले गये? आसमान पर उड गये. दीवार में घुस गये या जमीन के अन्दर समा गये क्या हुए ? इस बात ने सभों को तरदुद में डाल दिया। धीरे-धीरे जीतसिह को भी इस बात की खबर हुई। जीतसिह स्वय उस खण्डर वाले मकान में गये और तमाम कमरों कोठरियों और तहखानों को देख डाला मगर बलभद्रसिह का पता न लगा। भूतनाथ से भी तरह तरह के सवाल किये गये मगर इससे भी कुछ फायदा न हुआ। सध्या के समय राजा वीरेन्द्रसिह की सवारी उस तिलिस्मी खण्डहर के पास आ पहुंची और राजा बीरेन्द्रसिह तथा तेजसिह वगैरह सब कोई उसी खण्डर वाले मकान में उतरे। पहर भर रात जाते तक तो इन्तजामी हो हल्ला मचता रहा, इसके बाद लोगों को राजा साहब से मुलाकात करने की नौबत पहुची, मगर राजा साहब ने वहाँ पहुँचने के साथ ही भूतनाथ और बलभद्रसिह का हाल जीतसिह से पूछा था और बलभदसिह के बारे में जो कुछ हुआ था, उसे उन्होंने राजा साहब से कह सुनाया था। पहर रात जाने बाद जब भूतनाथ आज्ञानुसार दार में हाजिर हुआ तब राजा वीरेन्द्रसिह ने उससे पूछा, 'कहो भूतनाथ अच्छे तो हो ? भूतनाथ (हाथ जोड कर ) महाराज के प्रताप से प्रसन्न हूँ। बीरेन्द-सफर में हमको जो कुछ रज और गम हुआ तुमने सुना ही होगा? भूतनाथ-ईश्वर न करे महाराज को कभी रज और गम हो मगर हा समयानुकूल जो कुछ होना था हो ही गया। बीरेन्द्र-(ताज्जुब से ) क्या तुम्हें इस बारे में कुछ मालूम हुआ है ? भूतनाथ-जी हाँ! बीरेन्द्र-कैसे? भूलनाथ-इसका जवाब देना तो कठिन है क्योंकि भूतनाथ बनिस्बत जवान और कान के अन्दाज से ज्यादे काम लेता है। बीरेन्द-(मुस्कुरा कर) तुम्हारी होशियारी और चालाकी में तो कोई शक नहीं है मगर अफसोस इस बात का है कि तुम्हारे रहस्य तुम्हारी ही तरह द्विविधा में डालने वाले है। अभी कल की बात है कि हमको तुम्हारे बारे में इस बात की खुशखबरी मिली थी कि तुम बलभद्रसिह को किसी भारी कैद से छुड़ा कर ले आये, मगर आज कुछ और ही मात सुनाई पड़ रही है। भूतनाथ-जी हों मै तो हर-तरह से अपनी किस्मत की गुत्थी सुलझाने का उद्योग करता हूँ मगर विधाता ने उसमें ऐसी उलझनें डाल दी है कि मालूम पडता है कि अब इस शरीर को चुनारगढ के कैदखाने का आनन्द अवश्य भोगना ही पडेगा। बीरेन्द्र--नहीं-नहीं, भूतनाथ. यद्यपि बलभद्रसिह का यकायक गायब हो जाना तरह-तरह के खुटके पैदा करता है मगर हमे तुम्हारे ऊपर किसी तरह का सन्देह नहीं हो सकता। अगर तुम्हें ऐसा करना ही होता तो इतनी आफत उठा कर उन्हें क्यों छुड़ाते और क्यों यहाँ तक लाते ! अस्तु तुम हमारी खफगी से तो बेफिक रहो मगर इस बात के जानने का उद्योग जरुर करो कि बलभद्रसिह कहा गये और क्या हुए। भूतनाथ-(सलाम कर के) ईश्वर आपको सदैव प्रसन्न रक्खे, मैं आशा करता हूँ कि एक सप्ताह के अन्दर ही बलभद्रसिह का पता लगा कर उन्हें सरकार में उपस्थित करुंगा। बीरेन्द्र-शाबाश अच्छा अब तुम जाकर आराम करो। आज्ञानुसार भूतनाथ वहाँ से उठ कर अपने डेरे पर चला गया और बाकी लोग भी अपने ठिकाने कर दिये गये। जब राजा वीरेन्द्रसिह और तेजसिह अकेले रह गए तब उन दोनों में यों बातचीत होने लगी। यीरेन्द्र-कुछ समझ में नहीं आता कि यह रहस्य कैसा है ? भूतनाथ की बातों से तो किसी तरह का खुटका नहीं होता। तेज-जहाँ तक पता लगाया गया है उससे यही जाहिर होता है कि बलभद्रसिह इस इमारत के बाहर नहीं गए, मगर इस बात पर भी विश्वास करना कठिन हो रहा है। वीरेन्द्र-नि सन्देह ऐसा ही है । तेज-अब देखा चाहिए भूतनाथ एक सप्ताह के अन्दर क्या कर दिखाता है। मीरेन्द-यद्यपि मैने भूतनाथ की दिलजमई कर दी है परन्तु उसका जी शान्त नहीं हो सकता। खैर जो भी हो, मगर तुम उसे अपनी हिफाजत में समझो और पता लगाओ कि यह मामला कैसा है। तेज-ऐसा ही होगा। देवकीनन्दन खत्री समगू 101