पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१७

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R दसवां बयान मायारानी ने जव समझा कि वे फौजी सिपाही इस बाग के बाहर हो गये और गोपालसिह को भी वहाँ न देखा तब हिम्मत करके अपने ठिकाने से निकली और पुन बाग में आकर उस तरफ रवाना हुई जिधर उस गोपालसिह को बेहोश छोड आई थी जो उसके चलाए हुए तिलिस्मी तमचे की गोली के असर से बेहोश होकर बारामदे के नीचे आ रहा था मगर वहॉ पहुँचने के पहिले ही उसने उस दूसरे कूए के ऊपर एक गोपालसिह को देखा जिसे फौजी सिपाहियों ने मिट्टी से पाट दिया था। मायारानी एक पेड की आड में खडी हो गई और उसी जगह से तिलिस्मी तमचे वाली एक गोली उसने इस गोपालसिह पर चलाई। गोली लगते ही गोपालसिह लुढक कर जमीन पर आ रहा और मायारानी दौडती हुई उसके पास जा पहुंची। थोड़ी देर तक उसकी सूरत देखती रही. इसके बाद कमर से खजर निकाल कर गोपालसिह का सर काट डाला और तब खुशी भरी निगाहों से चारों तरफ देखने लगी यद्यपि उसे पूरा विश्वास न था कि मैंने असली गोपालसिह को मार डाला है। यद्यपि दिन बहुत चढ चुका था मगर अभी तक उसे जरुरी कामों से निपटने या कुछखाने-पीने की परवाह न थी या यों कहिए कि उसे इन बातों की मोहलत ही नहीं मिल सकी थी। गोपालसिह की लाश को उसी जगह छोड़ कर वह बाग की तीसरे दर्जे में जाने की नीयत से अपने दीवानखाने में आई और उसी मामूली राह से बाग के तीसरे दर्जे में चली गई जिस राह से एक दिन तेजसिह वहाँ पहुँचाये गये थे। वहाँ भी उसने दूर ही से नम्बर दो वाली कोठरी के दर्वाजे पर एक गोपालसिह को बैठे बल्किकुछ करते हुए देखा। मायारानी ताज्जुब में आकर थोडी देर तक तो उसगोपालसिहको देखती रही इसके बाद उसे भी उसी तिलिस्मी तमञ्चे वाली गोली का निशाना बनाया। जब वह भी बेहोश होकर जमीन पर लेट गया तब मायारानी ने यहाँ पहुँच कर उसका भी सर काट डाला और एक लम्बी सास लेकर आप ही आप बोली, "क्या अब भी असली गोपालसिहन मरा होगा मगर अफसोस उस एक गोपालसिह पर तो ऐसी गोली ने कुछ भी असर न किया था। कदाचित असली गोपालसिह वही हो इसके जवाब में किसी ने कोठरी के अन्दर से कहा "हाँ असली गोपालसिह यह भी न था और असली गोपालसिह अभी तक नहीं भरा। इस बात ने मायारानी का कलेजा दहला दिया और वह कापती हुई ताज्जुब के साथ कोठरी के अन्दर देखने लगी। अकस्मात कोठरी के अन्दर से निकलते हुए नानक पर मायारानी की निगाह पड़ी। नानक को देखते ही मायारानी का पुराना क्रोध (जो नानक के बारे में था ) पुन उसके चेहरे पर दिखाई देने लगा। वह कुछ देर तक तो नानक को देखती रही और इसके बाद उसे तिलिस्मी गोली का निशाना बनाना चाहा मगर नानक मायारानी की अवस्था देखकर हस पडा और बोला, क्या अब भी आप मुझे अपना पक्षपाती नहीं समझती ? माया-क्यों ? तूने कौन सा ऐसा काम किया है जिससे मैं तुझे अपना पक्षपाती समझू? नानक क्या आपको इस बात की खबर न लगी होगी कि राजा वीरेन्द्रसिह और उनके खानदान तथा ऐयारों से मेरी गहरी दुश्मनी हो गई ? मेरा बाप गिरफ्तार करके दोषी ठहराया गया बीरेन्द्रसिह के ऐयारों ने उसे बहुत तग किया और इसी के साथ ही मेरी भी बहुत बड़ी बेइज्जती की। मेरा बाप अपने बचाव को फिक्र कर रहा है और मैं उन सभों स बदला लेने का बन्दोबस्त कर रहा हूँ। इस समय मैं इसलिए यहाँ आया हूँ कि आप मेरी सहायता करें और मै आपका साथ दूं। माया-यदि तेरा कहना वास्तव में सच है तो बड़ी खुशी की बात है। नानक जो कुछ मैं कह रहा हूँ उसके सच होने में किसी तरह का सन्देह न कीजिए मे उन लोगों की बुराई में जान तक खर्च करने का सकल्प कर चुका हूँ। माया-यदि तू पहिले ही मेरी बात मान चुका होता तो आज मुझे और तुझे दानों ही को यह दिन देखना नसीब न होता। खैर आज भी अगर तू राह पर आ जाय तो हम लोग मिल-जुल कर बहुत कुछ कर सकते है। नानक-उन दिनों मुझे हरी-हरी सूझती थी और उस दरवार से बहुत कुछ पाने की आशा थीं मगर इस बात की खबर न थी कि उनके ऐयार अपनी मण्डली के सिवाय किसी नये या दूसरे ऐयार को अपने दर में देखना पसन्द नहीं करते। मुझे कमलिनी ने जितनी उम्मीदें दिलाई थीं उनका एक अश भी पूरा न निकला उल्टे मेरा बाप दोषी ठहराया गया। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ८०९