पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१८

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माया-भूतनाथ पर जो कुछ इल्जाम लगाया गया है मुझे उसकी पूरी-पूरीखवर लग युकी है। अब भूतनाथ बिना मेरी मदद के किसी तरह अपनी जान नहीं बचा सकता और न वह बलभद्रसिह का ही पता लगा सकता है। सबताया है कि भूतनाथ ने मुझे भी बड़ा धोखा दिया। नानक-उन दिनों जो कुछ उन्होंने किया सो किया क्योंकि कगलिनी की दिलाई हुई उम्मीदों ने उन्हें भी अन्धा कर दिया था मगर अब तो उन्हें कमलिनी स भी दुश्मनी हो गयी है और मै भी यह सुन कर कि कमलिनी वगैरह का राजा गोपालसिह न इसी याग में लाकर रक्या है उससे बदला लेने का ययाल करके यहा आया हूँ। माया-यहाँ का रास्ता तुझे किसन बताया। नानक-यहाँ के बहुत से रास्तों का हाल कमलिनी न ही मुझे बताया था, मैं एक दफे यहाँ पहिले भी आ चुका हूँ। माया-कर नानक-जब तेजरिह को आपने कद किया था और जब बडूल ने आकर आप लोगों को छकाया था। माया(उन बातों की याद से कांप कर ) तब तो तुम्हें मालूम होगा कि वह चण्डूल कौन था। नानक वह कमलिनी थी और मैं उसके साथ था। माया-(कुछ सोचकर) हा ठीक है। तब तो तुम्हें अच्छा अच्छा तुम मेरे पास आआ, पहिले में निश्चय कर लूँ कि तुम ईमानदारी से साथ देने के लिए तैयार हो या यह सब बातें धोखा दन के लिए कह रहे हा इसके याद अगर तुम सच्चे निकले तो हम दोनों आदमी मिल कर बहुत बड़ा काम कर सकेंगे और तुम्हें भी बहुत सी खैर तुम इधर आओ और मेरे साथ एकान्त में चलो। नानफ-(मायारानी के पास आकर ) और यहा तीसरा कौन है जो हम लोगों की बात सुनगा ! माया-चाहे न हो मगर शक तो है। मायारानी नानक को लिए दूसरी तरफ चली गई। ग्यारहवाँ बयान सध्या होने में अभी दो घण्ट से कुछ ज्यादे देर थी जर कुअर इन्दजीतसिह अनन्दसिह और भैरासिह कमर से बाहर निकल कर बाग के उस हिस्से में घूमने लग जो तरह-तरह के खुशनुमा पेड़. फूल पत्तो. गमलो और फैली हुई लताओं सुन्दर और सुहावना मालूम पडता था क्योंकि इन तीनों को इन्द्रानी के मुँह निकले हुए व शब्द वसूची याद थे कि मगर आप लोग किसी मकान के अन्दर जाने का उद्योग न करें । 'भैरो--( घूमते हुए एक फूल तोड़ कर ) यहाँ एक ता बागीचे के लिए बहुत कम जमीन छोड़ी गई है दूसर जा कुछ जमीन छाडी गई है उसमें भी काम खूबी और खूबसूरती के साथ नहीं लिया गया है जहाँ पर जिस इग के पड़ होने चाहिये वैसे नहीं लगाए गए है। आनन्द वाग के शौकिन लोग प्राय बेला चमेली जुही और गुलाव इत्यादि खुशबूदार फूलों के पेड क्यारियों के बीच में लगाते है। इन्द्रजीत-ऐसा न होना चाहिए क्यारियों के अन्दर केवल पहाडी गुल यूटो के ही लगान में मजा है. जूही बेला मातिया इत्यादि देशी खुशबूदार फूलों को विशों के दोनों तरफ लगाना चाहिये जिसमे सैर करने वाला घूमता-फिरता जब चाहे एक दो फूल तोड के सूघ सके। आनन्द-यशक ऐसा न होना चाहिए कि युशबूदार फूल तोडन की लालच में कहाँ सैर करने वाला बुद्धि विसर्जन करके क्यारी के बीच में पैर रक्खे और सूरो समेत फिल्ली तक जमीन के अन्दर जा रहे क्योंकि सियाव का पानी क्यारियो में जमा होकर कीचड करता है इसलिए क्यारियों के बीच में उन्हीं पेड़ पौधों का होना आवश्यक है जिन्हें केवल दखन ही से तृप्ति हो जाय और जिनमें ज्यादै सर्दी और पानी के बर्दाश्त करने की ताकत हो। भैरो-मेरी भी यही राय है. मार साथ ही इसके यह भी कहूँगा कि गुलाब के पेड रविशों के दोनों तरफ न लगाने चाहिए जिसमें कॉटों की बदौलत सैर करने वाले के (यदि वह भूल से कुछ किनारे की तरफ जा रहे ता) कपड़ों को दुगति हो जाय उसके लिए क्यारी अलग ही हानी चाहिए जिसकी जमीन बहुत नम न हो। इन्द्रजीत-ठीक है इसी तरह चमेली के पेड़ों की कतार भी ऐसी जगह लगाना चाहिए जहा टट्टी बना कर आड कर दन का इरादा हो। भैरो-आड का काम तो मेंहदी की टट्टी से भी लिया जाता है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ८१०