पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८१९

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इन्द्रजीत-हॉ लिया जाता है मगर जमीन के उस हिस्से में जो बीच वाली या खास जलसे वाली इमारत से कुछ दूर हा क्योंकि मेंहदी जब फूलती है तो अपने सिवाय और फूलों की खुशबू का आनन्द लेन की इजाजत नहीं देती। आनन्द-जैसे कि अब भैरोसिह को हम लोग अपने साथ चलने की इजाजत न देंगे। भैरो-( चौक कर) है इसका क्या मतलब ? आनन्द-इसका मतलब यही है कि अब आप थोडी देर के लिए हम दोनों भाइयों का पिण्ड छोडिये और कुछ दूर हटकर उधर की रविशों पर पैर थकाइए। भैरो-(कुछ चिढ कर ) क्या अब मुझे ऐसे साथी और ऐयार से भी बात छिपाने की नौबत आ गई। 1 आनन्द-(इन्द्रजीतसिह का इशारा पा कर ) हाँ और इसलिए कि यात छिपाने का कायदा तुम्हारी तरफ से जारी हो गया। भैरो-सो कैसे? आनन्द-अपने दिल से पूछो। भैरो-क्या मैं वास्तव में भैरोसिह नहीं हूँ? आनन्द-तुम्हारे भैरोसिह होने में कोई शक नहीं है बल्कि तुम्हारी बातों की सच्चाई में शक है। भैरो-यह शक कब से हुआ? आनन्द-जब से तुमने स्वयम कहा कि राजा गापालसिह न तुम्हें इस तिलिस्म में पहुँचातीसमय ताकीद कर दी थी कि सब काम कमलिनी की आज्ञानुसार करना यहा तक कि यदि कमलिनी तुम्हें सामना हो जाने पर भी कुमार से मिलने के लिए मना करे तो तुम कदापि न मिलना । * भैरो-(कुछ सोच कर) हा ठीक है मगर आपको यह कैसे निश्चय हुआ कि मैंने राजा गोपालसिह की बात मान ली इन्द्र-यह इसी से मालूम हो गया कि तुमने अपने बटुए का जिक्र करते समय तिलिस्मी खजर का जिक्र छोड दिया। भैरो-( कुछ सोच कर और शर्मा कर ) वेशक यह मुझसे भूल हुई। आनन्द-कि उस तिलिस्मी खजर के लिए भी कोई अनूठा किस्सा गढ कर हम लोगों को सुना न दिया। भैरो-(और भी शर्मा कर) नहीं ऐसा नहीं है उस समय मै इतना कहना भूल गया कि ऐयारी के बटुए के साथ-साथ वह तिलिस्मी खजर मुझे उस नकाबपोश या पीले मकरन्द से नहीं मिला उन्होंने कसम खा कर कहा कि तुम्हारा खंजर हममें से किसी के पास नहीं है। आनन्द-हा-और तुमने मान लिया । भैरो-(हिचकता हुआ) इस जरा सी भूल के हो जाने पर ऐसा न होना चाहिए कि आप लोग अपना विश्वास मुझ पर से उठा लें। इन्दजीत- नहीं नहीं इससे हम लोगों का ख्याल ऐसा नहीं हो सकता कि तुम भैरोसिह नहीं हो या अगर हो भी तो हमारे दुश्मनों के साथी बन कर हमे नुकसान पहुचाया चाहते हो? कदापि नहीं। हम लोग अभी तुम्हारा उतना ही भरोसा रखते हैं जितना पहिले रखते थे मगर कुछ देर के लिए जिस तरह तुम असली बातों को छिपाते हो उसी तरह हम भी छिपावेंगे। अभी भैरोसिह इस बात का जवाब सोच ही रहा था कि सामने से एक औरत आती हुई दिखाई पड़ी। तीनों का ध्यान उसी तरफ चला गया। कुछ पास आने और ध्यान देने पर दोनों कुमारों ने उसे पहिचान लिया कि इसे हम इस बाग में आने के पहिले इन्द्रानी और आनन्दी के साथ नहर के किनारे देख चुके है। आनन्द-यह भी उन्हीं औरतों में हैं जिन्हें हम लोग इन्द्रानी और आनन्दी के साथ पहले बाग में नहर के किनारे देख चुके है। इन्दजीत-बेशक मगर सब कि सय एक ही खानदान की मालूम पडती है यद्यपि उम्र में इन सभी के बहुत फर्क नहीं आनन्द-देखा चाहिए यह क्या सन्देशा लाती है।

  • देखिये सत्रहवा भाग चौदहवा बयान ।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १८ ८११