पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२०

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दि इतने मे वह औरत कुमार के पास आ पहुची और हाथ जाडकर दोनों कुमारों की तरफ दखती हुई बोली इदानी और आनन्दी ने हाथ जोडकर आप दानों से इस बात की माफी मागी है कि अब वे दोनों आप लोगों के सामने हाजिर नहीं हो सकती इन्द्रजीत-(ताज्जुब स) सो क्यों ? औरत-उन्हें इस बात का बहुत रज है कि वे आप लोगों की खातिरदारी अच्छी तरह स न कर सकी और उनक गुरु महाराज ने उन्हें आप लोगों का सामना करन से रोक दिया। इन्द्रजीत-आखिर इसका कोई सवय भी है? औरत-इसके सिवाय ता और काई सवय नहीं जान पडता कि उन दोनों की शादी आप दोनों भाइयों के साथ हाने वाली है। इन्द्रजीत-( ताज्जुब के साथ ) मुझसे और आनन्द से । औरत-जी हा। इन्दजीत-तब तो यह खासी जबर्दस्ती है। औरत-जी हा। इन्द्रजीत-क्या उनके गुरु महाराज में इतनी सामर्थ्य है कि अपनी इच्छानुसार हम लोगों के साथ बर्ताव करें ? औरत-जी हा। इन्दजीत- ( झुझलाकर ) कभी नहीं कदापि नहीं । आनन्द-ऐसा हा ही नहीं सकता (औरत सं. जो जान के लिए अपना मुह फेर चुकी थी ) क्या तुम जाती हो? औरत-जी हा। इन्दजीत-बस इतना ही कहने के लिए आई थी? औरत-जी हा1 इन्दजीत-क्या भेजने वालों ने तुम्हे कह दिया था कि जी हा के सिवाय और कुछ मत बोलना ? औरत-जी हा। इन्द्रजीतसिह की झुझलाहट देखकर उस औरत का भी हसी आ गई और वह मुस्कुराती हुई जिधर से आई थी उधर ही चली गई तथा थोडी दूर जाकर नजरों से गायब हो गई। तब भैरोसिह ने दिल्लगी के तौर पर कुमार से कहा आप लागों की खुशकिस्मती का कोई ठिकाना है ! रम्भा और उर्वशी के समान औरतें जबर्दस्ती आप लोगों के गले मदी जाती है तिस पर मजा यह कि आप लोग नखरा करते है। ऐसा ही है तो मुझे कहिए मै आपकी सूरत जलकर व्याह कर लू। इन्दजीत-तब कमला किसके नाम की हाडी चढावगी? भैरो-अजी कमला से क्या जाने कर मुलाकात हो और क्या हो ! यह तो परोसी हुई थाली ठहरी। इन्द्रजीत--टीक है मगर भैरोसिह जहा तक मेरा है, मै समझता हूँ कि तुम्हे इस व्याह-शादीवाले मामले की कुछ न कुछ खबर जरूर है। भैसे अगर खबर हो भी तो अब मै कुछ कहने का साहस नहीं कर सकता। आनन्द-सो क्यों। भैरो-इसलिए कि आप लोग मुझे झूठा समझ चुके है। इन्द-सो तो जरूर है। भैरो-(चिढ़कर ) अगर ऐसा ही खयाल है तो अब मैं आप लोगों के साथ रहना भी मुनासिब नहीं समझता। इन्द्र-मेरी भी यही राय है। भैरो-अच्छा ता (सलाम करता हुआ ) जय माया की ! इन्द्र-जय माया की। आनन्द-जय माया की मगर यह तो मालूम हो कि आप जायगे कहा ? भैरो-इससे आपको कोई मतलब नहीं। इन्द-हा साहव इसस हम लोगों को मतलब नहीं आप जाइए और जल्द जाइए। इसके जवाब में भैरोसिह ने कुछ भी न कहा और वहा से रवाना होकर पूरय तरफ वाली इमारत के नीचे वाली एक कोठरी में घुस गया इसके बाद मालूम न हुआ कि भैरोसिह का क्या हुआ या वह कहा गया । उसके जाने बाद दोनों देवकीनन्दन खत्री समग्र ८१२