पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२४

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चन्द्रकान्ता सन्तति उन्नीसवां भाग पहिला बयान अटठारह भाग के अन्त में हम इन्दानी और आनन्दी का मारा जाग लिय आय और यह भी लिख चुके है कि कुमार के सवाल करने पर नानक ने अपना दाप स्वीकार किया और कहा-'इन दानों का महाभारा और पाने का काम किया है ये दोनों घड़ी शैतान थी। एक तो इसके मारे जाने ही सदो कुमार दुसी ही रह से दूसरे मारक के इस उदण्ड क साथ जादनेनन उन्हें अपन आप से बाहर कर दिया। कुँअर आनन्दसिंह नलवार को जज पर जा कर 4: भाई की तरफ दरा अथात इशारे में पूछा कि यदि आज्ञा ही तो नाक का दो दुआ कर दिया जाय। र आन-fit के इस भाव का नानक भी समझ गया और हरता हुआ बोला आचर्य है कि it को मार कार भी पापी टहराया गया ! इन्दजीत-क्या ये दाना हमारी दुरामा या? नानक-बेशक! इन्दजीत-इसका सात क्या है? नानक केवल ये दोनों लाश इन्द्रजीत-इसका क्या मतलब? नानक-यही किया दातो का चेहरा साफ कर । पर आपको मालूम हसायमाके दागे सारा और माधवी थी। इन्दजीत-(चौंक कर ताज्जुब स) है मायारानी और माent नानक ( बात पर जार देकर जी हा मायारा और माधको ! इन्द्रजीत-( आश्चय और क्रोध से जूट दारागा की तरफ ६९ २) आय सुतरनाक था का रहा है? 'दारोगा-ही कदापि नहीं नानक झूठा है। नानक-( लापरवाही से ) कोई हर्ज नहो यदि कुमार बाग तो बहुत जल्ममातून हा जगा कि यूठा कौन है ! दारोगा-शका काई हर्ज नहीं में अनी नावली में से जल लाकर और इनका चराधार अपने को सम्मा साबित करता है। इतना कहकर दारोगा जोश दिखाता हुआ पावली की तरफ चला गया और फिर लौट कर न आया। पाठक आप समझ सकते है कि नानक की बातो कुंअर इदजीतसिट और आनन्दसिह कोमल कलेजो के साथ कैसा बर्ताव किया होगा? आनन्दी और इन्दानी वास्तव मे मायारानी और माधयी है इस यातना कुमारी को हद से ज्यादा वेर्धन कर दिया और दोनों अपने किए पर पाते हुए को और लज्जा भरी निगाहों से रावर एक दूसरे को देखते हुए मन में सोचने लगे कि हाय हम दो स फैसो मूल हो गई । यदि कहीं मह हाल कमसिनो और लाडिलो तथा किशोरी और कागिनी को मालूम हा गया तो क्या वे सर मारे तातो पो हम लोगों के कलेजों को चलनी न कर डागी। अफसास उस बुड़ते दारोगा ही ने नही पल्कि हमारे सच्चे साभी भैरोसिंह ने भी हमारे साथ दगा की। उसने कहा था कि इन्द्रानी ने मेरी सहायता की थी इत्यादि पर यह कदापि सम्भव नहीं कि मायारानी भैगेतिह की सहायता करे। अफसोस क्या अब यह जमाना आ गया कि सच्चे ऐयार भी अपने मालिका के साथ दगा करे ! कुछ देर तक इसी तरह की याते दोनों कुमार सोधते और दारोगा के आने का इन्तजार करते रहे। आखिर आनन्दसिह ने अपन बडे भाई से कहा, "मालूम होता है कि वह कम्बख्त बुड्ढा दारोगा डर के मारे भाग गया यदि आज्ञा हो तो मै जाकर पानी लाने का उद्योग कसे। इसके जवाब में कुँअर इन्दजीतसिह ने पानी लाने का इशारा किया और आनन्दसिह बावली की तरफ रवाना हुए। थोड़ी ही देर में कुअर आनन्दसिह अपना पटूका पानी से तर कर ले आए और यह वाहते हुए इन्द्रजीतसिइ के पात्त पहुचे-"वेशक दारोगा भाग गया। देवकीनन्दन खत्री समग ८१६