पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२५

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उसी पटूके के जल से दोनों लाशों का चेहरा साफ किया गया और उसी समय मालूम हो गया कि नानक ने जो कुछ कहा सब सच है अर्थात् वे दोनों लाशें वास्तव में मायारानी तथा माधवी की ही हैं। अब दोनों भाइयों के रज और गम का कोई हद न रहा। सकतेकीहालत में खडे हुए पत्थर की मूरत की तरह वे उन दोनों लाशों की तरफ देख रहे थे। कुछ देर बाद कुँअर आनन्दसिह ने एक लम्बो सॉस लेकर कहा, 'चाह रे भैरोसिह, जब तुम्हारा यह हाल है तब हम लोग किस पर भरोसा कर सकते हैं । इसके जवाब में पीछे की तरफ से आवाज आई, 'भैरोसिह ने क्या कसूर किया है जो आप उस पर आवाज कस रहे दोनों कुमारों ने घूम कर देखा ता भैरोसिह पर निगाह पडी। भैरोसिह ने पुन कहा जिस दिन आप इस बात को सिद्ध कर देंग कि भैरोसिह ने आपके साथ दगा की उस दिन जीते जी भैरोसिह को इस दुनिया में कोई भी न देख सकेगा। इन्द्रजात-आशा तो ऐसी ही थी. मगर आज कल तुम्हारे मिजाज में कुछ फर्क आ गया है। भैरो-कदापि नहीं। इन्द्रजीत-अगर ऐसा न होता तो तुम बहुत सी बातें मुझसे छिपा कर मुझे आफत में न डालते। भैरो-(कुमार के पास जाकर) मैने कोई बात आपसे नहीं छिपाई और जो कुछ आप समझे हुए है वह आपका भ्रम इन्दजीत-क्या तुमने नहीं कहा था कि इन्द्रानी तुम्हें इस तिलिस्मी में मिली थी और उसने तुम्हारी सहायता की थी? भैरो-कहा था और बेशक कहा था। इन्द्रजीत-(उन दोनों लाशों की तरफ इशारा करके) फिर यह क्या मामला है? तुम देख रहे हा कि ये किसकी लाशें है? भैरो-मैं जानता हू कि ये मायारानी और माधवी की लाशें है जो नानक के हाथ से मारी गई हैं, मगर इससे मेरा कोई कसूर साबित नहीं होता और न मेरी बात ही झूठी होती है। सम्भव है कि इन दोनों ने जिस तरह आपको धोखा दिया उसी तरह आपका मित्र और साथी समझ कर मुझे भी धोखा दिया हो। इन्द्रजीत (कुछ सोच कर ) खैर एक नहीं मैं और भी कई बातों में तुम्हें झूठा साबित करुंगा। भैरो-दिल्लगी के शब्दों को छोडकर आप मेरी एक बात भी झूठी साबित नहीं कर सकते। इन्द्रजीत-सो सब कुछ नहीं इन मैंचीली बातों को छोडकर तुम्हें साफ-साफ मेरी बातों का जवाब देना होगा! भैरो में बहुत साफ-साफ आपकी बातों का जवाब दूंगा, आप जो कुछ पूछना हो पूर्छ। इन्दजीत-तुम हम लोगों से विदा होकर कहाँ गए थे अब कहाँ से आ रहे हो और इन लाशों की खबर तुम्हें कैसे मिली? भैरो-आप तो एक साथ बहुत से सवाल कर गए जिनका जवाब मुख्तसर में हो ही नहीं सकता। बेहतर होगा कि आप यहा स चलकर उस कमरे में या और किसी ठिकाने बैठे और जो कुछ मैं जवाब देता हूँ उसे गौर से सुनें । मुझे पूरा यकीन है कि नि सन्दह आप लोगों के दिल का खुटका निकल जायगा और आप लोग मुझे बेकसूर समझेंगे. इतना ही नहीं में और भी कई बातें आपसे कहूगा इन्द्रजीत-इन दोनों लाशों को ओर नानक को यों ही छोड़ दिया जाय? भैरो-क्या हर्ज है अगर यों ही छोड़ दिया जाय ! नानक-जब कि मैने आप लोगों के साथ किसी तरह की बुराई नहीं की है तो फिर मुझे बेबसी की हालत में क्यों छोड जाते हैं ? यदि मुझे कुछ इनाम न मिले तो कम से कम कैद से तो छुट्टी मिल जाय ! इन्द्रजीत-ठीक है, मगर अभी हमें यह मालूम होना चाहिए कि तू इस तिलिस्म के अन्दर क्योंकर और किस नीयत से आया था क्योंकि अभी उसी बाग में तेरी बदनीयती का हाल मालूम हो चुका जब दरोगा ने पकड़ा था। नानक-मगर आपको दारोगा की बदनीयती का हाल भी तो मालूम हो चुका है। भैरो-इस पचडे से हमें कोई मतलब नहीं अभी राजा गोपालसिह का आदमी इसको लेने के लिए आता होगा इसे 1 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ५२