पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२६

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whe उसके हवाले कर दीजिएगा। इन्द्र -अगर ऐसा हो तो वहुत अच्छी बात है, मगर क्या तुनको ठीक मालूम है कि राजा गोपालसिह का आदमी आयेगा? क्या इस मामले की खबर उन्हें लग गई है? भैरा-जी हा। इन्द्र-पयोंकर? भेरो-सो तो मैं नहीं जानता मगर कमलिनी की जुबानी जो कुछ सुना है वह कह सकता है। इन्द्र--तो क्या तुमसे और कमलिनी से मुलाकात हुई थी? इस समय वे सब कहा है ? भैरो-जी हा हुई थी और मैं आपकी मुलाकात लोगों से करा सकता हू। (हाय का इशारा कर के सब उस तरफ वाले बाग में है और इस समय मे उन्हीं के साथ था (रुक कर और सामने की तरफ दखकर)यह देखिए. राजा गोपालसिह का आदमी आ पहुचा। दोनों भाइयों ने ताज्जुव के साथ उस तरफ देखा। पास्तव में एक आदमी आ रहा था जिसने पास पहुय कर एक चीठी इन्द्रजीतसिह के हाथ में दी और कहा “मुझे राजा गोपालसिह नें आपके पास भेजा है। इन्द्रजीतसिह न उस चीठी को बडे गौर सदया। राजा गोपालसिह का हस्ताक्षर और यास निशान भी पाया। जय निश्चय हो गया कि यह चीठी राजा गोपालसिह ही की लिखी है,तपढ़ के आनन्दसिह का दे दिया। उस पत्र में कवल इतना लिखा हुआ था -- 'आप नानक तथा मायारानी और माधवी की लाश को इस आदमी के हवालेकरके अलग हो जाय और जहा तक जल्दी हो सके तिलिस्म का काम पूरा करें। इन्दजीतसिह ने उस आदमी से कहा 'नानक और ये दोनों लाशें तुम्हारे सुपुर्द है, तुम जो मुनासिब समझा करो, मगर राजा गोपालसिह को कह देना कि कल तक वह इस बाग में मुझसे जरूर मिल लें। इसके जवाब में उस आदमी न "बहुत अच्छा' कहा और दोनों कुमार तथा भैरोसिह वहा स रवाना होकर बावली पर आए। तीनो उस बावली में स्नान करके अपने कपड़े सूखने के लिए पेड़ों पर फैला दिए और इसके बाद ऊपर वाले चबूतरे पर बैठकर बात-चीत करने लगे। दूसरा बयान कुँअर इन्द्रजीतसिह ने एक लम्बी सास लेकर भैरासिंह से कहा - भैरासिष्ठ इस बात का मुझे गुमान मी नहीं हो सकता कि तुम स्वप्न में भी हम लोगों के साथ बुराई करने का इरादा करोगे, मगर तुम्हार झुठ बोलन से हम लोगों को दुखी कर दिया। अगर तुमने झूठ बोलकर हम लोगों को धोये में न डाला होता तो आज इन्दानी और आनन्दी वाले मामले में पड़कर हमन अपन मुह में अपने हाथ से स्याही न मली होती। यद्यपि इन दोनों औरतों के बारे में तरह-तरहके विचार मन मैं उठते थे,मगर इस बात का गुमान कब हो सकता था कि ये दोता मायारानी और माधवी होंगी ! ईश्वर ने बडी कुशल की कि शादी होने के बाद आधी घडी के लिए भी उन दोनों कम्बखतों का साथ हुआ अगर होता तो बडे ही धर्म सकट में जान फंस जाती। में यह समझता हूँ कि राजा गोपालसिर की आज्ञानुसार आजकल तुम कमलिनी वर्गरह का साथ दे रह हो शायद ऐसा करने में भी कोई फायदा ही हागा, मगर इस बात पर हमारा ख्याल कभी नहीं जम सकता कि इतनी पढ़ी-बढीदिल्लगी करने की किसी ने तुम्हें इजाजत दी होगी। नहीं-नहीं इसे दिल्लगी नहीं कहना चाहिए, यह तो इज्जत और हुर्मत को मिट्टी में मिला देने वाला काम है। भला तुम ही बताओ कि किशोरी और कमलिनी वगैरह तथा और लोगों के सामन अव हम अपना मुँह क्योकर दिखायेंग? भैरो-और लोगों की बातें तो जान दीजिए क्योंकि इस तिलिस्म के अन्दर जो कुछ हो रहा है इसकी खबर याहर पालों को हा ही नहीं सकती हा किशोरी कामिनी और कमला वगैरह अवश्य ताना मारेगी क्गेकि उनको इस मामले की पूरी खबर है और वे लोग इसी बगल वाले बाग में मौजूद भी है मगर मै सच कहता है कि इस मामले में मैं बिल्कुल बेकसूर है | इसमें कोई शक नहीं कि कमलिनी की इच्छानुसार मैं बहुत सी बाते आप लोगों से छिपा गया है मगर इन्द्रानी के मामले में मैं भी धोखा खा गया। मैंने ही नहीं बल्कि कमलिगी ने भी यही समझा था कि इन्द्रासी और आनन्दो इस तिलिस्म की रानी है। खैर अब तो जो कुछ होना था वह हो चुका रज का दूर कीजिए और चलिए मैं आपकी कमलिनी वगैरह से मुलाकात कराऊ। देवकीनन्दन खत्री समग्र 1