पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२७

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इन्द्रजीत- नहीं अभी मैं उन लोगों से मुलाकात न करूँगा कुछ दिन के बाद देखा जायगा। आनन्द--जी हा मेरी भी यही राय है। अफसोसमाधवी की बनावटी कलाई पर भी उस समय कुछ ध्यान नहीं गया यद्यपि यह एक मामूली और छाटी बात थी। भैरो-नहीं-नहीं ऐसा खयाल न कीजिए जब आप अपना दिल इतना छोटा कर लेंगे तब किसी भारी काम का क्योंकर करेंगे? इसे भी जान दीजिए आप यह बताइये कि इसमें किशोरी या कमलिनी वगैरह का क्या कसूर है जो आप उनसे मुलाकात तक भी न करेंगे? शादी-ब्याह का शौक बढा आपको और भूल हुई आपसे कमलिनी ने भला क्या किया? ( चौककर ) खेर आप उनके पास न जाइए, वह देखिए कमलिनी खुद ही आपके पास चली आ रही है । कुँअर इन्दजीतसिह और आनन्दसिह ने अफसोस और रज से झुका सिर उठा करदखा तो कमलिनी पर निगाह पडी जो धीरे-धीरे चलती और मुस्कुराती हुई इन्हीं लोगों की तरफ आ रही थी। तीसरा बयान, 1 नानक को लिए हुए मायारानी दूसरी तरफ चली गई मगर जिस जगह जाना चाहती थी वहा पहुचने के पहिले ही उसने पुन एक गोपालसिह को अपने से कुछ दूर पर देखा और उसी समय तिलिस्मी तमचे में गोली भर कर निशाना सर किया। गोली उसके घुटने पर लग कर फूट गई और उसमें से निकला हुआ बेहोशी का धूआ उसके चारो तरफ फैल गया मगर उसका असर गोपालसिह पर कुछ न हुआ गोपालसिह तेजी के साथ लपककर मायारानी के पास चले आय और बोले 'मै वह नकली गोपालसिह नहीं है जिस पर इस तमचे का कुछ असर हो. मैं असली गोपालसिह हू और तुझसे यह पूछने के लिए आया हू कि बता अब तेरे साथ क्या सलूक किया जाय? यह कैफियत देख कर मायारानी घबडा गई और उसे निश्चय हो गया कि अब उसकी मौत सामने आ खडी हुई है जो एक पल के लिए भी उसका मुलाहिजा न करेगी अस्तु वह गोपालसिह की बात का कुछ जवाव न दे सकी और नानक की तरफ देखने लगी। गोपालसिह ने यह कहकर कि 'नानक की तरफ क्या देख रही है मेरी तरफ देख !एक तमाचा उसके गाल पर इस जोर से मारा कि वह इस सदमे को बर्दाश्त न कर सकी ओर चक्कर खा कर जमीन पर बैठ गई। गोपालसिह ने अपनी जेब में से कुछ निकाल कर उसे जबर्दस्ती सुंघाया जिससे वह बेहोश होकर जमीन पर लेट गई। इसके बाद गोपालसिह ने नानक की तरफ जो- डर के मारे खडा काप रहा था देखा और कहा- गोपाल-कहो नानक तुम यहा कैसे आ गये क्याइस भुवनमोहिनी के प्रेम में कमी ता नहीं हो गई या मनोरमा को खोजते हुए तो नहीं आ गए? नानक (डरता हुआ हाथ जोड कर ) जी मैं कमलिनी जी से मिलने के लिए आया था क्योंकि वे मुझ पर कृपा रखती है और जब-जब मुझे ग्रहदशा आकर घेरती है तब सहायता करती हैं। मुझे यह खबर लगी थी कि वे इस बाग में आई है। गोपाल-मगर यहा आकर कमलिनी की जगह मायारानी से मदद मागने की नौबत आ गई, बल्कि क्या ताज्जुब कि इसी के साथ तुम यहा आये भी हो । नानक जी नहीं मेरा इसका साथ भला क्योंकर हो सकता है क्योंकि यह मेरी पुरानी दुश्मन है और इसने धोखा देकर मेरे बाप को ऐसी आफत में डाल दिया है कि अभी तक उन्हें किसी तरह छुटकारा नहीं मिलता। गोपाल-वह सब जा कुछ है मै खूब जानता हू। तुमने अपने बाप के लिए जो कुछ काशिश को वह भी किसी से छिपी नहीं है तथा तारासिह ने तुम्हारे यहा जाकर जो कुछ तुम्हारा हाल मालूम किया है वह भी मुझे मालूम है। अच्छा अब मैं तुम तारासिह से बदला लेने यहा आये हो। मगर यह तो बताओ कि किस राह से तुम यहा आए? नानक-जी नहीं यह बात नहीं , भला मै तारासिह से क्या बदला ले सकूगा तारासिह हीसे नहीं बल्कि राजा वीरेन्द्रसिह क किसी भी एयार का मुकाबला करने की हिम्मत मेरे में नहीं मगर तारासिह ने जो कुछ सलूक मेरे साथ किया है उसका रज जरूर है और मैं कमलिनी स इसी बात की शिकायत करने यहा आया था क्योंकि मुझे उनका वडा भरोसा रहता है और यहा आने का रास्ता भी उन्होंने ही उस समय मुझे बताया था जब कम्बख्त मायारानी की बदौलत आप यहाँ कैद थे और पागल बने हुए तेजसिह यहाँ आए हुए थे। गोपाल हा ठीक है मगर मैं समझता हू कि साथ ही इसके तुम उन भेदों के जानने का भी इरादा करके आए होंगे जो गूगी रामभोली की बदौलत यहा आने पर तुमने देखा था समझा कि - चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८१९