पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२८

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नानक-जी हा इसमें कोई शक नहीं कि में उन भेदों को भी जानना चाहता हू, परन्तु यह यात विना आपकी कृपा क गोपाल-नहीं-नहींउन भैदों का जानना तुम्हारे लिए बहुत ही मुरिकल है क्योंकि तुम्हारी गिनती ईमानदार ऐयारों में नहीं हो सकती। यद्यपि यह सब हाल मुझे मालूम है, लाडिली ने तुम्हारा अपूग हाल पूरा-पूराधयान किया था और उसी को रामभोली समझकर तुम यहाँ आए भी थे मगर जो कुछ तुमने यहा आकर देखा उसका सवव वयान करना मै उचित नहीं समझता फिर भी इतना जरूर कहूगा कि वह अनोखी तस्वीर जो दारोगा वाले अजायबघर के बगले में तुमने देखी थी वास्तव में कुछ न थी या अगर थी तो केवल तुम्हारी रामभोली की निरी शरारत । नानक-और वह कूए वाला हाथ? गोपाल-वह तुम्हारे बुजुर्ग धनपत का साया था। (कुछ सोचकर) मगर नानक. मुझे इस बात का अफसोस है कि तुम अपनी जवानी हिम्मत, लियाकत और एयारी तथा बुद्धिमानी का खून बुरी तरह कर रहे हो। इसमें कोई शक नहीं कि अगर तुम इश्क और मुहब्बत के झगड़ों में न पडे होते तो समय पर अपने बाप की सहायता करने लायक होते। अब भी तुम्हारे लिए उचित यही है कि तुम अपने खयालों को सुधारकर इज्जत पैदा करने की कोशिश करो और किसी के साथ दुश्मनी करने या बदला लेने का खयाल दिल से दूर कर दो। इस थोड़ी सी जिन्दगी में मामूली ऐशोआराम के लिए अपना परलोक विगाडना पढ़े-लिखे बुद्धिमानों का काम नहीं है। अच्छे लोग मौत और जिन्दगी का फैसला एक अनूठे ढग पर करते हैं। अपने खयाल है कि दुनिया में वह कभी मरा हुआ तब तक न समझा जायगा जब तक उनका नाम नेकी के साथ सुना या लिया जायगा और जिसने अपने माथे पर बुराई का टीका लगा लिया. वह मुर्दे से भी बढ कर है। दुष्ट लोग यदि किसी कारण मनुष्य को चींटी समझने लायक हो भी जाय तो भी कोई बात नहीं मगर ईश्वर की तरफ से वे किसी तरह निश्चिन्त नहीं हो सकते और अपने-अपने कामों का फल अवश्य पाते है। क्या इन्हीं राजा वीरेन्दसिह और मेरे किस्से से तुम यह नसीहत नहीं ले सकते ? क्या तुम मायारानी माधवी अग्निदत्त और शिवदत्त वगैरह से भी अपने को बढ़कर समझते हो और नहीं जानते कि उन लोगों का अन्त किस तरह हुआ और हो रहा है? फिर किस भरोसे पर तुम अपने को बुरी राह चलाया चाहते हो ? नि सन्देह तुम्हारा बाप बुद्धिमान है जो एक नामी और अदभुत शक्ति रखने वाला अमीर ऐयार होने और हर तरह की बेइज्जती सहने पर भी राजा वीरेन्द्रसिह का कृपापात्र बनने का ध्यान अपने दिल से दूर नहीं करता और तुम उसी भूतनाथ के लड़के हो जो अपने दिल काबू में नहीं रख सकते ! इस तरह की बहुत सी नसीहत भरी यातें राजा गोपालसिह ने इस ढग से नानक को कहीं कि उसके दिल पर असर कर गई वह राजा गोपालसिह के पैरों पर गिर पडा और जब उन्होंने उसे दिलासा देकर उठाया तो हाथ जोड़ के अपनी डबडबाई हुई आँखें नीचे किए हुए बोला, मेरा अपराध क्षमा कीजिये ! यद्यपि मै क्षमा मागने योग्य नहीं है परन्तु आपकी उदारता मुझे क्षमा देने योग्य है। अब मुझे अपनी ताबेदारी में लीजिये और हर-तरह से आजमाकर देखिये कि आपकी नसीहत का असर मुझ पर कैसा पड़ा और अब मैं किस तरह आपकी खिदमत करता हूं।' इसके जवाब में गोपालसिह ने कहा "अच्छा हम तुम्हारा कसूर माफ करके तुम्हारी दर्खास्त कबूल करते हैं। तुम मेरे साथ आओ और जो कुछ मैं कहू सो करो। चौथा बयान कमलिनी को देखकर दोनों कुमार शर्माए और मन में तरह-तरह की बातें सोचने लगे। देखते-देखते कमलिनी उनके पास आ गई और प्रणाम करके बोली. आप यहा जमीन पर क्यों बैठे है? उस कमरे में चलकर पैठिए जहा फर्श बिछा है और सब तरह का आराम है।' इन्द्र-मगर वहा अधकार तो जरूर होगा? कम-जी नहीं,वहा बखूबी रोशनी हो रही होगी (मुस्कुरा कर) क्योंकि यहाँ की रानी के मर जाने से यह याग एक सुघड रानी के अधिकार में आ गया है और उसने आपकी खातिर में रोशनी जरूर कर रक्खी होगी। इन्द्र-(कुछ शर्मिन्दगी के साथ) बस रहने दीजिए मै यहाँ की रानियों का मेहमान नहीं बनता जो कुछ बनना था सो बन चुका, अब तो तुम्हारी दिल्लगी का निशाना बनूगा । कमलिनी-(हाथ जोड के ) मेरी क्या मजाल जो आपसे दिल्लगी करू, अच्छा आप मेरे मेहमान बनिए और यहा से उठिये। देवकीनन्दन खत्री समग्र ८२०